दीनाभाना न होते तो बहुजन आंदोलन को कांशीराम नहीं मिलते
बामसेफ के संस्थापक सदस्य दीनाभाना जी ने बामसेफ संस्थापक अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब को बाबासाहब के विचारो से प्रेरित किया। मा.कांशीराम साहब ने बाबासाहब के विचारों को पूरे भारत में फैलाया। आज पूरे देश मे जय भीम, जय मूलनिवासी की जो आग लगी है उसमे चिंगारी लगाने का काम हमारे महापुरूष मा.दीनाभाना जी ने किया है। मा. दीनाभाना साहब का जन्म 28 फरवरी 1928 को राजस्थान के सीकर जिले के बगास गांव में एक गरीब भंगी परिवार में हुआ था। यह बड़े जिद्दी किस्म के शख्स थे। 1956 में आगरा में डॉ.बाबासाहब द्वारा दिया गया वो भाषण सूना जिसमें डॉ.बाबासाहब ने कहा था कि ‘‘मुझे पढ़े-लिखे लोगां ने धोखा दिया’’ यह बात सुनकर दीनाभाना साहब ज्यादा विचलित होने लगे। वही से उन्होंने संकल्प लिया कि वे बाबासाहब के उस कारवां को आगे बढ़ायेंगे जिस कारवां को वो बड़ी ही कठिनाईयों से यहां तक लायें हैं। सच तो यही है कि समाज के प्रति त्याग पुरूषों के लिए एक भाषण ही काफी है।
दीनाभाना जी ने बाबासाहब के विचार जाने समझे और बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद भटकते भटकते पूना आ गये और पूना मे गोला बारूद फैक्टरी (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) मे सफाई कर्मचारी के रूप मे सर्विस प्रारंभ की। मा. कांशीराम साहब रोपड़ (रूपनगर) पंजाब निवासी क्लास वन ऑफिसर थे। लेकिन कांशीराम जी को बाबासहाब कौन हैं? यह पता नही था। उस समय अंबेडकर जयंती की छुट्टी को लेकर दीनाभाना जी ने इतना बड़ा हंगामा किया जिसकी वजह से दीनाभाना जी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
इस बात पर कांशीराम जी नजर पड़ी तो उन्होने दीनाभाना जी से पूछा कि यह बाबासाहब कौन हैं जिनकी वजह से तेरी नौकरी चली गयी? दीनाभाना जी व उनके साथी विभाग में ही कार्यरत महार जाति में जन्मे नागपुर, महाराष्ट्र निवासी मा.डी.के. खापर्डे साहब जो बामसेफ के द्वितीय संस्थापक अध्यक्ष थे। मा.डीके खापर्डे साबह ने कांशीराम जी को बाबासाहब की ‘ऐनीहिलेशन ऑफ कॉस्ट’ नाम की पुस्तक दी जो कांशीराम साहब ने रातभर में कई बार पढ़ी और सुबह ही दीनाभाना जी के मिलने पर बोले दीना तुझे छुट्टी भी और नौकरी भी दिलाऊंगा और इस देश में बाबासाहब की जयंती की छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं तब तक चैन से नही बैठूंगा। क्योकि यह तेरे साथ-साथ मेरी भी बात है, तू भंगी है तो मैं भी रामदासिया चमार हूं। कांशीराम साहब ने नौकरी छोड़ दी और बाबासाहब के मिशन को ‘बामसेफ’ संगठन बनाकर पूरे देश में फैलाया। बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा.कांशीराम, मा.दीनाभाना और मा.डीके खापर्डे साहब थे।
अंत में मा.दीनाभाना साहब का 29 अगस्त 2009 को पूना में परिनिर्वाण हो गया, यह सूरज हमेशा के लिए अस्त हो गया, लेकिन आज भी वे हम मूलनिवासी बहुजनों के दिलों में जीवित हैं। यदि आज दीनाभाना साहब न होते तो न बामसेफ होता और न ही व्यवस्था परिवर्तन हेतु अंबेडकरवादी जनआन्दोलन चल रह होता। इस देश में ब्राह्मणों की नाक में दम करने वाला जय भीम, जय मूलनिवासी का नारा भी गायब हो गया होता। ऐसे महापुरूष को उनके 9वें स्मृति दिवस के अवसर पर सभी मूलनिवासी बहुजनों को उनसे प्रेरणा लेकर अपने दबे, कुचले, अधिकार वंचित समाज के लिए बामसेफ का साथ सहयोग करना चाहिए, ताकि देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी आजादी को हाशिल कर सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें