सोमवार, 3 जून 2019

दो जून की रोटी


‘‘अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 83 करोड़ लोग गरीबी के चलते भुखमरी की कगार पर पहुँचा दिये गये हैं. इसी तरह एक और चौंका देने वाला तथ्य यह भी है कि नोवेल विजेता विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो.डेटान ने एक शोध में कहा था कि भारत में जो गरीबी और भुखमरी है इसका मुख्य कारण ‘‘जाति’’ है. इसका मतलब यह है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों ने भारत में जाति का निर्माण किया और जाति के आधार पर मूलनिवासी बहुजनों को गरीबी और भुखमरी का शिकार बनाया है.’’

 राजकुमार (संपादक-दैनिक मूलनिवासी नायक)
‘‘दो जून की रोटी’’ बड़ी मुश्किल से मिलती है.....आज 2 जून 2019 है और आपने अपने बचपन में बड़े बुजुर्गों से ये कहावत जरूर सुनी होगी कि ‘‘2 जून की रोटी’’ किस्मत वालों को ही नसीब होती है. लेकिन, क्या आप जानते है ऐसा क्यों कहा जाता है? बता दें कि इस मुहावरे का जून महीने से कोई लेना देना नहीं है. बल्कि, पुराने समय में ‘‘दो जून की रोटी’’ से आशय दो समय (सुबह-शाम) का खाना से है. सीधे और सरल शब्दों में कहें तो कठिन परिश्रम के बाद दो समय का खाना नसीब नहीं होना. ‘‘दो जून’’ अवधि भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ वक्त या समय होता है.


कथित आजादी के 71 वर्ष बाद भी भारत जैसे महान देश भारत में जहाँ हर दिन करोड़ों लोगों को ‘दो जून की रोटी’ नसीब नहीं होती है तो वहीं दूसरी तरफ भारत जैसे देश में दोनों हाथों से खाने की बर्बादी हो रही है. ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत में जितना एक साल में अनाज बर्बाद कर दिये जाते हैं, उतना ब्रिटेन पैदा भी नहीं कर पाता है. अगर भारत में खाने और अनाजों की बर्बादी की बात करें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 

वर्ल्ड हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट एक भयावह तस्वीर पेश करती है. आइए कुछ आंकड़े देखते हैं कि भारत में कितना भोजन और अनाज बर्बाद होता है और कितने लोग भोजन के लिए तरस रहे हैं. वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के अनुसार दुनिया के करीब 79.5 फीसदी लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है. जहाँ तक भारत का प्रश्न है तो भारत में तकरीबन 20 करोड़ से ज्यादा लोग हर रोज भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं. इसका मतलब है कि भारत में हर 4 में से एक बच्चा भूखा रहता है.



वर्ल्ड हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के ही मुताबिक भारत में हर दिन 244 करोड़ रूपये का खाना बर्बाद होता है. यदि पूरे एक साल का आंकड़ा निकाले तो भारत में एक साल में 87840 करोड़ रूपये का केवल खाना बर्बाद किया जाता है. जब बात अनाजों की बर्बादी की करते हैं तो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं. देश में हर साल उतना गेहूँ बर्बाद होता है जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार होती है. नष्ट हुए गेहूँ की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को साल भर भरपेट खाना दिया जा सकता है. 

विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा जारी एक सनसनीखेज खबर के मुताबिक भारत में 12 करोड़ लोग ऐसे भुखमरी के शिकार हैं जिनको जल्द ही भोजन नहीं मिला तो इनकी मौत होने का खतरा प्रबल हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र में मानवतावाद प्रमुख मार्क लोकोक ने कहा कि भारत की स्थिति और ज्यादा बेहद खतरनाक है. उन्होंने कृषि उत्पादन और उत्पादकता में हुए विस्तार और गरीबी का आंकलन करते हुए कहा कि एक तरफ करोड़ों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन खाना बर्बाद किये जा रहे हैं. दुनिया भर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई यानी लगभग 1 अरब 30 करोड़ टन बर्बाद हो जाता है. बर्बाद होने वाला भोजन इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है. 

विश्व खाद्य संगठन के मुताबिक भारत में हर साल 87840 करोड़ का भोजन बर्बाद हो जाता है, जो कि देश के कुल खाद्य उत्पादन का लगभग 75 फीसद है. आज देश पानी की कमी से जूझ रहा है, लेकिन अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन को पैदा करने में इतना ही पानी व्यर्थ चला जाता है जिससे 10 करोड़ से ज्यादा लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है. एक आकलन के मुताबिक अपव्यय के बराबर की धनराशि से 05 करोड़ बच्चों की जिंदगी संवारी जा सकती है. 50 लाख से ज्यादा लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त किया जा सकता है और 10 से 15 करोड़ लोगों को आहार सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती है. हैरानी की बात तो यह है कि सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, इसके बाद भी 7.08 लाख परिवार कूड़ा बिनकर तो 9.68 लाख परिवार भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं.

एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती संपन्नता के साथ खाना भी फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जनसख्या की उदरपूर्ति करने के लिए हर साल लगभग 230 मिलियन टन अनाज की आवश्यकता होती है, लेकिन 270 मिलियन टन अनाज का उत्पादन होने के बाद भी 20 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे पेट सोते हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं.

आपको बता दें कि 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है, क्योंकि उसे रखने के लिए उचित भंडारण की सुविधा नहीं है. देश के कुल उत्पादित 40 फीसदी फल-सब्जी समय पर मंडी तक नहीं पहुँच पाने के कारण सड़-गल जाते हैं. औसतन हर भारतीय एक साल में 07 से 13 किलो अन्न बर्बाद करता है. देश में जितना अन्न एक साल में बर्बाद होता है उसकी कीमत से ही कई सौ कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं जो फल-सब्जी को सड़ने से बचा सकें. एक साल में जितना सरकारी खरीद का धान व गेहूँ खुले में पड़े होने के कारण नष्ट हो जाता है, उससे ग्रामीण अंचलों में 07 हजार गोदाम बनाए जा सकते हैं. 

भोजन का फेंका जाना पहली निगाह में भले ही मामूली-सी बात प्रतीत हो या फिर एक बड़े कार्यक्रम की जरूरत बताकर इससे पल्ला झाड़ लिया जाए, लेकिन यह एक गंभीर मसला है. इस संदर्भ में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा संभव नहीं है. भोजन के अपव्यय से जल, जमीन और जलवायु के साथ साथ जैव-विविधता पर भी बेहद नकारात्मक असर पड़ता है. रिपोर्ट के मुताबिक उत्पादित भोजन, जिसे खाया नहीं जाता, उससे प्रत्येक वर्ष रूस की वोल्गा नदी के जल के बराबर जल की बर्बादी होती है. अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन की वजह से तीन अरब टन से भी ज्यादा मात्रा में खतरनाक ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं. दुनिया की लगभग 28 फीसद भूमि, जिसका क्षेत्रफल 1.4 अरब हेक्टेयर है, ऐसे खाद्यान्न को उत्पन्न करने में व्यर्थ जाती है. 

एक सर्वे के मुताबिक, अकेले बंगलुरु में एक साल में होने वाली शादियों में 943 टन पका हुआ खाना बर्बाद कर दिया जाता है. आपको बता दें कि इस खाने से लगभग 2.6 करोड़ लोगों को एक समय का खाना खिलाया जा सकता है. अब आप ही सोचिये कि ये तो सिर्फ एक शहर की बात है और हमारे देश में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं. अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल होने वाली ‘अन्न की बर्बादी’ का आंकड़ा क्या होगा? ऐसे में क्या देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को ‘‘दो जून की रोटी’’ नसीब होगी?

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