शनिवार, 25 अप्रैल 2020

ओबीसी के बाद एससी-एसटी के ऊपर क्रीमीलेयर थोपने का काम शुरू






क्रीमीलेयर मामले में दैनिक मूलनिवासी नायक की बात तीसरी बार सच

दैनिक मूलनिवासी नायक शनिवार 28 अक्टूबर 2017 के अंक में फ्रंट पेज पर एक खबर प्रकाशित किया था. जिसका, शिर्षक था ‘‘न्यायपालिका भी कर रही है मूलनिवासियों के साथ धोखेबाजी. वहीं दूसरा शिर्षक था ‘‘ओबीसी के बाद अब एससी, एसटी पर भी क्रीमीलेयर थोपने की तैयारी’’ आज दैनिक मूलनिवासी नायक की बात तीसरी बार सच साबित हुई है. दैनिक मूलनिवासी नायक उस समय आगाह करते हुए लिखा था कि एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी को सावधान रहने की जरूरत है. क्योंकि, जिस तरह सरकार 52 प्रतिशत ओबीसी को क्रीमीलेयर लागू कर समस्त ओबीसी को उनके प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया है अब उसी तरह से एससी, एसटी पर भी क्रीमीलेयर लागू कर उनको भी उनके मौलिक आधिकारों से वंचित रखना चाहते हैं. इसलिए सरकार एससी, एसटी पर क्रीमीलेयर लागू करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.


तीन साल पहले से हो रही तैयारी

 ओबीसी की तरह ही एससी, एसटी पर क्रीमीलेयर थोपने के लिए आज से नहीं दो साल पहले से सरकार पूरी तरह से तैयारी करते आ रही है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर बहस का मुद्दा बनाते रहा है और सरकार को एससी, एसटी पर क्रीमीलेयर लागू करने के लिए संकेत भी देता रहा है. 2017 में जस्टिस कुरियन जोसेफ भी इस पर चर्चा कर चुके हैं. जिस्टस कुरियन जोसेफ ने वकील इंद्रा जयसिंह से सवाल उठाते हुए कहा था कि जो लोग सामाजिक, शैक्षणिक ओर आर्थिक रूप से ऊपर उठ चुके हैं उन्हें आरक्षण क्यों दिया जाना चाहिए? क्या वे लोग अपने ही वर्ग के पिछड़े लोगां का हक नहीं मार रहे हैं? इस पर वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने अपने जवाब में कहा था कि एससी, एसटी में पिछड़ेपन का फंडा नहीं लागू होता है. एससी, एसटी सूची से किसी वर्ग को सिर्फ संसद में कानून बनाकर ही बाहर किया जा सकता है. इसी तरह से 2018 में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियर जोसफ, जस्टिस आर.एफ.नरीमन, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की, एसटी में क्रीमीलेयर लागू करने को सही मानते हुए कहा था कि संविधानिक अदालतों को आरक्षण के सिद्वांत को लागू करते समय अनुच्छेद 14 व 16 के तहत समानता के सिद्वांत को लागू करते हुए ऐसे ग्रुप या सब ग्रुप से क्रीमीलेयर को बाहर करने न्यायिक शक्तियां हैं. यही नहीं बैंच का कहना था कि संसद को तथ्यों के आधार पर राष्ट्रपति की सूची में से नाम हटाने या शामिल करने की पूरी आजादी है. जबकि, दिसंबर 2019 में केन्द्र सरकार ने जैरनल सिंह मामले में पुर्नविचार के लिए लार्जर बैंच गठित करने का आग्रह किया था. क्योंकि केन्द्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को कहा था कि क्रीमीलेयर का सिद्वांत एससी व एसटी आरक्षण में लागू नहीं हो सकता. इसके बाद भी अभी तक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है और न ही सीजेआई ने लार्जर बैंच गठित की है


सरकार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर सिद्धांत लागू करने के लिए नई सूची बनाए : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली/दै.मू.ब्यूरो
सरकार तो सरकार देश की न्यायपालिका भी देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजनां के साथ धोखेबाजी करने से बाज नहीं आ रही है. क्योंकि, एक तरफ देश जहां महामारी से जूझ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार और सुप्रीम कोर्ट मूलनिवासी बहुजनों के मौलिक आधिकारों को खत्म करने पर काम कर रही है. जिस तरह से सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनां ने मिलकर ओबीसी के ऊपर जबरन क्रीमीलेयर थोपने का काम किया था ठीक उसी प्रकार से अब एससी, एसटी के भी ऊपर क्रीमीलेयर थोपने पर काम कर रही है. दैनिक मूलनिवासी नायक ने 2017 में ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट के इस खतरनाक साजिश के बारे में देश के मूलनिवासी बहुजनों को आगाह कर दिया था. आज दैनिक मूलनिवासी नायक की बात क्रीमीलेयर मामले में तीसरी बार सच साबित हुई है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गुरूवार 23 अप्रैल 2020 को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने कहा कि सरकार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर सिद्धांत लागू करे. जो आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़े या धनी हो चुके हैं, उन्हें शाश्वत रूप से आरक्षण देना जारी नहीं रखा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एससी और एसटी के धनी और विकसित हो चुके लोग ही एससी, एसटी आरक्षण का फायदा जरुरतमंदों को नहीं लेने दे रहे हैं. इसलिए, सरकार को एससी व एसटी के आरक्षण पर क्रीमीलयर का सिद्धांत लागू करने के लिए फिर से नई सूची बनाने पर पुनःविचार करना चाहिए.
गौरतलब है कि पीठ ने ये टिप्पणियां अनुसूचित क्षेत्रों में एसटी वर्ग को सौ फीसदी आरक्षण देने के आंध्रप्रदेश के फैसले को रद्द करते हुए दो दिन पूर्व की है. जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने कहा, राष्ट्रपति अनुच्छेद 341 के तहत आरक्षित जातियों की सूची बनाते हैं, ये सूची इतनी पवित्र और अपरिवर्तनीय नहीं है. कल्याण के उपायों की समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए. बैंच का नेतृत्व करने वाले जस्टिस अरुण मिश्रा ने फैसले में इंदिरा साहनी फैसले का उल्लेख करते हुए कहा है कि एससी, एसटी आरक्षण की सूची कभी नहीं बदले जाने वाली पवित्र नहीं है. चौंका देने वाली बात यह भी है कि बैंच ने कहा कि सरकार यह काम आरक्षण प्रतिशत को छेडे़ बिना भी कर सकती है. इसका मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को संकेत दे रहा है.
बता दें कि सरकार 52 प्रतिशत ओबीसी पर क्रीमीलेयर लागू कर उनको दिखावे के लिए केवल 27.5 प्रतिशत आरक्षण दिया. असल में क्रीमीलेयर के माध्य से ओबीसी को एक तरफ आरक्षण दिया और दूसरी तरफ से छीन लिया. यानी ओबीसी का गरीब तबका और उच्च पदों पर रहने वाले दोनों का पूरा आरक्षण खत्म हो गया. अगर दूसरी भाषा में कहा जाय तो सरकार ने ओबीसी के उन तबकों को खाने के लिए चने दिये जिनके पास दांत ही नहीं है और उन तबकों को चने नहीं दिया जिनके पास दांत हैं. ठीक यही षड्यंत्र अब एससी, एसटी के ऊपर भी अपनाया जा रहा है. 

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