मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है : डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर

मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है : डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर


मेरी जय-जयकार करने के बजाए, मेरे अधूरे कारवां को पूरा करने के लिए जान की बाजी लगा दो...!
विश्वरत्न, संविधान निर्माता, सिंबल ऑफ नॉलेज, नारी मुक्तिदाता, डॉ.बाबासाहब अंबेडकर जी के 129वीं जयंती पर देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से हार्दिक बधाई!
मोहिनी राज
चन्दौली (उत्तर प्रदेश)
आज डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की 129वीं जयन्ती है. लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए हर घर-घर में बाबासाहब अम्बेडकर की जयंती मानाई जा रही है. बहुत खुशी की बात है. लेकिन, जयंती मनाने के पीछे क्या उदेश्य है, इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. हमारे सभी महापुरूषों का उदेश्य मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्त करना था. कुछ हद तक हमारे महापुरूषों का उदेश्य पूरा हुआ, लेकिन, अभी बहुत ज्यादा बाकी है, जिसे पूरा करना होगा. और उसे पूरा करने के लिए ही डॉ.बाबासाहब ने कहा था कि ‘‘मेरी जय-जयकार करने के बजाए, मेरे अधूरे कारवां को पूरा करने के लिए जान की बाजी लगा दो, मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है ’’ इसे हमें ही पूरा करना है. इसलिए हमें इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए जयन्ती मनानी है. आज इस मौके पर सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि देश में हर साल महापुरूषों की जयन्ती या स्मृति दिवस मनायी जाती हैं, लेकिन महापुरूषों की जयन्ती मनाने के पीछे कोई उदेश्य नहीं दिखाई दे रहा है, जबकि जयन्ती मनाने के पीछे उदेश्य होना चाहिए. क्योंकि, आज के इस मौके पर जो बातें प्रासंगिक है उसे बताना बहुत ही आवश्यक है.

किसी भी महापुरूषों की जन्म जयन्ती या स्मृति दिवस मनाने से पहले कुछ निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पहला-किसकी जयन्ती मनायी जानी चाहिए?
दूसरा-जयन्ती क्यों मनायी जानी चाहिए?
तीसरा-जयन्ती के पीछे उद्ेश्य क्या है?
चौथा-जयन्ती कैसे मनायी जानी चाहिए?
पाँचवां-वर्तमान में जयन्ती कैसे मनायी जा रही है?

पहली बात :- किसकी जयन्ती मनायी जानी चाहिए? जिन लोगों ने हमारे मानवीय अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया, जिन लोगों ने हमारे अधिकार के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, ऐसे लोगों की जयन्ती मनायी जानी चाहिए।
दूसरी बात :- जयन्ती क्यों मनायी जानी चाहिए? हमें जयन्ती इसलिए मनायी जानी चाहिए कि ताकि हम अपने महापुरूषों के इतिहास को जान सकें, उनके जीवन संघर्ष को जान सकें, उनकी विरासत रूपी विचारधारा को समाज में प्रस्थापित कर सकें और उनके द्वारा बताए गये मार्गों पर चल सके, इसलिए हमें जयन्ती मनायी जानी चाहिए।
तीसरी बात :- जयन्ती के पीछे उद्श्य क्या है? जयन्ती के पीछे यह उद्श्य होना चाहिए कि हमारे महापुरूषों ने कौन-कौन से मानवीय मूल्यों के लिए संघर्ष किया? वह अधूरा है या पूरा हो गया है? अगर वह पूरा हुआ तो कितना पूरा हुआ और कितना अधूरा है? जो पूरा हुआ वह कैसे पूरा हुआ? जो अधूरा है वह कैसे पूरा होगा? और उसे कौन पूरा करेगा? जिन महापुरूषों ने संघर्ष किया उन महापुरूषों का किन-किन लोगों ने साथ सहयोग किया? किन-किन लोगों ने विरोध किया? किन-किन लोगों ने महापुरूषों के साथ धोखेबाजी किया? किसने अपमानित किया? किसने षड्यंत्र किया? किसने महापुरूषों की हत्याएं की? और महापुरूषों की हत्या करने के बाद किसने उनकी विचारधारा को नष्ट किया? आदि बातों पर चिंतन-मनन करना, विचार करना और निर्णय लेना, निर्णय लेने के बाद उसपर अमल करना जयन्ती के पीछे मुख्य उदे्श्य होना चाहिए।
चौथी बात :- जयन्ती कैसे मनायी जानी चाहिए? आज कल प्रायः यही देखा जा रहा है कि 365 दिन में एक दिन खूब जय, जयकारी करते हैं और 364 दिन घर में बैठे रहते हैं. 364 दिन तक उनको न तो महापुरूषों से मतलब रहता है और न ही समाज से ही मतलब रहता है। एक दिन महापुरूषों की जयन्ती मनाकर 365 दिन तक घर में बैठे नहीं रहना चाहिए, बल्कि समाज को जागृत करना चाहिए, उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। उनकी विचारधारा को समाज में प्रस्थापित करना चाहिए और उनके उद्ेश्य को पूरा करने के लिए संघर्ष करना चाहिए, इस तरह से जयन्ती मनायी जानी चाहिए।
पाँचवीं बात :- वर्तमान में जयन्ती कैसे मनायी जा रही है? आज कल महापुरूषों की जयन्ती जातिगत रूप से मनायी जा रही हैं। जैसे संत रविदास और डॉ.बाबसाहब अम्बेडकर की जयन्ती चमार मनाते हैं। तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक और लेलिन बाबू जगदेव सिंह कुशवाहा की जयन्ती कुशवाहा मनाते हैं। पेरियार ललई सिंह यादव की जयन्ती अहिर मनाते हैं, राष्ट्र संत गाडगे बाबा की जयन्ती धोबी मनाते हैं, पेरियार रामासामी नायकर की जयन्ती गडे़री मनाते हैं, राष्ट्रपिता जोतिराव फुले की जयन्ती माली और कयूम अंसारी की जयन्ती मुसलमान मनाते हैं, जबकि इन सभी महापुरूषों ने जाति, विषमता, भेदभाव को खत्म करने के लिए जीवनभर संघर्ष किया। जान कुर्बान कर दिया और हम उन्हीं महापुरूषों को जातियों में बाँधकर जयन्ती मनाते हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें महापुरूषों को जातियों में बांधकर नहीं, जातिवाद, भेदभाव और विषमता को त्यागकर, सभी जातियों को मिलकर सभी महापुरूषों की जयन्ती मनानी चाहिए, चाहे महापुरूष बहुजन समाज के किसी भी जाति से हों।
दूसरी बात, आज खूब धूमधाम से डीजे के साथ नाचते-गाते हुए उत्सव और त्योहार के रूप में महापुरूषों की जयन्ती मनायी जा रही हैं, जिसमें करोड़ों रूपये हर साल खर्च हो जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि केवल बाबासाहब अम्बेडकर की जयन्ती पर पूरे भारत में हर साल 75 करोड़ रूपया खर्च होता है? यह आँकड़ा 10 साल पुराना है, आज करीब अरबों रूपये होगा। यह कितनी चिंताजनक बात है कि हम केवल उनकी जय-जयकार के लिए अरबों रूपये हर साल खर्च कर देते हैं, मगर उनके अधूरे काम को पूरा करने के लिए एक रूपया भी नहीं खर्च करते हैं। आज जिस तरह से जयन्ती मनायी जा रही है उस तरह से सभी मानवीय साधन बर्बाद हो रहे हैं।

अब सवाल यह है कि क्या हमारे महापुरूषों का यही आंदोलन था? क्या उनका यही अधूरा काम रह गया है? क्या हमारे महापुरूषों ने यही कहा था? हर महापुरूषों ने मरते समय यही कहा था कि हमारी जयन्ती मनाने, जय-जयकार करने के बजाय जो हमारा अधूरा काम रह गया है उसे पूरा करने के लिए जान की बाजी लगा दो। डीजे लगाने के लिए नहीं कहा था, लेकिन हम क्या कर रहे हैं? क्या हमारे और आपके नाम पर एक रूपया भी चन्दा मिलता है? नहीं, महापुरूषों के नाम पर मिलता है, मगर हम उसे इस्तेमाल कहाँ कर रहे हैं नाचने-गाने और जय-जयकार करने पर।

हमें महापुरूषों की जयन्ती इस तरह से नहीं मनानी चाहिए, बल्कि उनकी जयन्ती के अवसर समाज का इकट्ठा करना चाहिए, समाज में महापुरूषों के इतिहास और उनके जीवन संघर्ष को बताना चाहिए। महापुरूषों ने किसके लिए क्या किया यह बात समाज को बतानी चाहिए, महापुरूषों के विचारों का प्रचार-प्रसार करना चाहिए, उनके बताए मार्ग पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहिए, जन-आंदोलन के लिए लोगों को तैयार करना चाहिए और उनके नाम पर मिलने वाले चन्दा को महापुरूषों के अधूरे काम को पूरा करने के लिए खर्च करना चाहिए।
ऐसा आप लोग करेंगे, इसी आशा और विश्वास के साथ जय मूलनिवासी

यह धरती तंग है तो तंग ही सही, आसमाँ पर रंग है बेरंग ही सही!
हम तो देश में समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय चाहते हैं,
अगर विदेशी ब्राह्मण जंग चाहते हैं तो जंग ही सही!!

राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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