युग पुरूष मा.डी.के.खापर्डे
अनु सूचित जाति, जन जाति, पिछड़ा वर्ग और कुछ हद तक धार्मिक अल्पसंख्यकय
इन
वर्गों
के
मानवीय
अधिकारों
के
प्रति
जन-जाग्रति
फैलाने
का
नाम
है-बामसेफ
और
बामसेफ
का
नाम
है-डी
.के
खापर्डे।
बामसेफ
के
संस्थापक मा. डी. के. खापर्डे साहब का जन्म 13 मई
1939 को
नागपुर
(महाराष्ट्र)
में
हुआ
था। उनकी पूर्ण शिक्षा नागपुर में ही हुई थी। पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में
नौकरी
ज्वॉइन कर ली थी। नौकरी के दौरान जब वे पुणे में थे, तो बी.एस.पी. के संस्थापक मान्यवर कांशीराम उनके
सम्पर्क
में
आए। मा.कांशीराम साहबजी को डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर
और
उनके
आन्दोलन
के
बारे
में
विस्तृत
मालूमात
मान्य.खापर्डे
साहेब
द्वारा
ही
हुई
थी।
पुणे
में
भारत
सरकार
के
रक्षा
विभाग
से
सम्बन्धित
गोला
बारूद
बनाने
का
बहुत
बड़ा
कारखाना
है।
इस
कारखाने
में
लाखों
लोग
सर्विस
करते
हैं। यहाँ पर अनु.जाति, जन जाति और पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों की भारी
तादात
है।
बात,
बाबासाहब
डा
अम्बेडकर
जयंती
की
थी,
उस
दिन
ये
सारे
कर्मचारी
एक
मंच
पर
इक्कट्ठे
हुए
और
अल्पसंख्यक
समाज
के
नुमाईंदों
को
भी
समाहित
कर
श्बामसेफ
(ठ।डब्म्)
अर्थात
बैकवर्ड
एंड
मायनारिटिस
सोसायटीज
एम्प्लॉईज
फेडरेशन (Backward And Minority Society Employees
Federation) नामक संगठन की स्थापना को मूर्त
रूप
दिया।
वैसे, अनुसूचित जाति
और
पिछड़े
समाज
के
लोग,
जो
बाबा
साहेब
डा.
आंबेडकर
के
द्वारा
प्रदत्त
आरक्षण
के
बदौलत
ऊँचे-ऊँचे
पदों
पर
पहुँच
गए
थे,
काफी
समय
पहले
से
उन
में
इस
बात
को
लेकर
गम्भीर
चिंतन
चल
रहा
था
कि
अखिल
भारतीय
स्तर
पर
ऐसा
एक
‘थिंकिग
टेंक’
होना
चाहिए
जिसमें
इस
समाज
के
नौकरी
पेशा
कर्मचारी
और
अधिकारी
हों
और
जो
लम्बी
प्लानिंग
के
साथ
मूलनिवासियों
के
हितों
को
ध्यान
में
रखते
हुए,
फुले-अम्बेडकरी
विचारधारा
के
तहत
सामाजिक
चेतना
का
काम
करें।
बामसेफ
(BAMCEF)
अर्थात
‘‘बैकवर्ड
एंड
मायनारिटिज
कम्यूनिटीज
एम्प्लाइज
फेडरेशन’की स्थापना 6 दिस. 1976
को पूना में की गई। फेडरेशन में मॉयनारिटिज अर्थात
अल्पसंख्यकों
को
भी
शामिल
किया
गया।
मॉयनारिटिज
के
अधिसंख्यक
लोग
चाहे
मुस्लिम,
सिख,
ईसाई
जिस
धर्म
के
हो,
मूलनिवासियों
के
धर्मान्तरित
भाई
ही
हैं।
उनकी
पीड़ा
और
दुःख-सुख
अनुसूचित
जाति,
जनजाति
और
पिछड़ों
जैसे
ही
हैं।
बामसेफ
से
जुड़े
कर्मचारी-अधिकारी
‘पे बेक टू सोसायटी’ के तहत
अपने
मनी,
माईंड
और
ब्रेन
का
उपयोग
सतत
सामाजिक-चेतना
जगाने
के
लिए
करते
हैं।
बामसेफ के गठन के बाद जल्दी ही इसमें दरार आ गयी, क्योंकि मान्य.
कांशीराम
साहब
बामसेफ
को
सिर्फ
‘थिंकिंग
टैंक’ही नहीं
रखना
चाहते
थे,
वे
इस
थिंकिग
टैंक
की
परिणति
जल्दी
ही
एक
राजनैतिक
पार्टी
के
रूप
में
देखना
चाहते
थे।
मगर,
मान्यवर
कांशीराम
साहब
के
अन्य
साथी
इस
फेवर
में
नहीं
थे.
डीके
खापर्डे
और
इनके
कुछ
साथी
शायद
इस
सोच
के
थे
कि
पहले
सामाजिक
आन्दोलन
को
इतना
सशक्त
बनाया
जाये
कि
उसकी
परिणति,
जो
निश्चित
रूप
से
राजनैतिक
परिवर्तन
है,
को
रोका
न
जा
सके।
बामसेफ
में
अपने
कुछ
साथियों
की
ऐसी
सोच
के
चलते
सन
1981 में मान्यवर कांशीराम साहब
ने
डी
एस
फोर
(DS4)
का
गठन
किया,
फिर
जल्दी
ही
उन्होंने
सन
1984 में
‘बहुजन
समाज
पार्टी’
की
स्थापना
कर
दी।
इस
उदघोषणा
के
बाद
बामसेफ
के
अन्दर,
ऐसा
लगता
है,
विचारधाराओं
में
काफी
बड़ी
दरार
आ
गयी
थी।
तब
मान्य.
डी
के
खापर्डे
साहब
के
नेतृत्व
में
बामसेफ
को
अलग
से
रजिस्टर्ड
कराया
गया,
यह
घटना
सन
1987 की
है।
डी.
के.
खापर्डे
साहब
ने
अपने
समान
विचारधाराओं
के
साथियों
के
साथ
इस
संगठन
को
स्वतन्त्र
रूप
से
चलाने
की
योजना
बनायीं।
उन्होंने
डिफेन्स
की
अपनी
नौकरी
से
रिजाइन
कर
दिया
और
अपना
पूरा
समय
केवल
संगठन
को
देने
का
निश्चय
किया।
उनके
नेतृत्व
में
देश
के
कोने-कोने
में
कैडर
कैम्प
आयोजित
किये
गए,
संगठन
के
लिए
काम
करने
वाले
कार्य-कर्ता
का
एक
बड़ा
नेट
वर्क
तैयार
किया।
नियसंदेह, मा.डीके
खापर्डे
साहब
के
नेतृत्व
में
बामसेफ
ने
सामाजिक
आन्दोलन
की
दिशा
में
उल्लेखनीय
कार्य
किया
है।
खास
कर
नौकरी-पेशा
अनुसूचित
जाति,
जनजाति-पिछड़ी
जातियों
और
अल्पसंख्यक
वर्ग
के
कर्मचारी-अधिकारीयों
को
एक
मंच
दिया
है।
बाबा
साहब
डा.
अंबेडकर
ने
इन
नौकरी-पेशा
लोगों
से
जो
अपेक्षा
की
थी,
उस
पर
काम
किया
जा
रहा
है।
युग
पुरुष
मा.डी के खापर्डे
साहब,
बामसेफ
के
संस्थापक
देश
के
कोने
कोने
में
फैले
अपने
इस
संगठन
के
कार्य-कर्ताओं
को
छोड़कर
29 फरवरी
सन
2000 को
हमसे
अलविदा
हो
गए।
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