गुरुवार, 14 जून 2018

सूखती धरती विखरता जीवन, देश में भयंकर जल संकट के आसार

नीर की जंग गंभीर
सूखती धरती विखरता जीवन
देश में भयंकर जल संकट के आसार


नई दिल्ली/दै.मू.एजेंसी
आज देश में नीर की जंग इतनी ज्यादा गंभीर बन चुकी है कि जहां एक तरफ धरती सूखती जा रही है तो वहीं धरती पर रहने वालों का जीवन भी बिखरता जा रहा है। उस वक्त इस देश का क्या होगा जब चारों ओर पानी के बिना लाशें ही लाशें नजर आयेंगी, लेकिन बहुत जल्द ही यह भी दिन देखने को मिलने वाली है।

क्योंकि सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2030 तक देश में पानी का स्रोत ही खत्म हो जायेगा। सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ बेंगलुरु ही नहीं, बल्कि देश के ऐसे 21 शहर हैं जो 2030 तक ‘डे जीरो’ की कगार पर पहुंच जायेंगे।
 ‘डे जीरो’ का मतलब उस दिन से है जब किसी शहर के पास उपलब्ध पानी के स्त्रोत खत्म हो जाएंगे और वो पानी की आपूर्ति के लिए पूरी तरह अन्य साधनों पर निर्भर हो जाएंगे। क्योंकि दुनिया भर में जितना मीठा पानी मौजूद है उसमें से भारत के पास सिर्फ 4 फीसदी ही पीने लायक पानी बचा है।

 गौरतलब है कि पानी सभी के जीवन का इतना जरूरी शब्द है कि इसके न होने की कल्पना करना भी काफी मुश्किल काम नजर आता है। पृथ्वी से लेकर मानव शरीर का सबसे बड़ा हिस्सा पानी ही है, पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है, एक अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर कुल 32 करोड़ 60 लाख खरब गैलन पानी है। पानी न सिर्फ मनुष्य की बाहरी सफाई के लिए जरूरी है, बल्कि शरीर के अन्दर की सफाई के लिए भी पानी बेहद आवश्यक है। 
पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम भी पानी ही करता है। पानी न पीने से होने वाली बीमारियां, थकान और ऊर्जा की कमी, असमय वृद्धावस्था, मोटापा, हाई और लो ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, कब्ज, पाचन से जुड़ी कई बीमारियां, गैस्ट्राइटिस, सांस संबंधित कई बीमारियां, एंजाइम संबंधित बीमारियां, एक्जिमा, सिस्टाइटिस और गठिया को जन्म दे देती हैं। आज देश में इलाज इतना ज्यादा महंगा कर दिया गया है कि आम जन इलाज की पहुंच से कोसों दूर है। यानी आम गरीब जनता का इलाज के अभाव में मरना तय है।

 रिसर्च के मुताबिक एक इंसान बिना भोजन के 15 दिन तक भी जीवित रह सकता है, लेकिन बिना पानी के 5वें दिन उसकी मौत हो जाएगी। प्यास लगने के पीछे का गणित भी यही है कि जैसे ही शरीर में 1 फीसदी भी पानी की कमी होती है तो आपको प्यास लगने लगती है। जब ये कमी 5 प्रतिशत तक पहुंच जाती है तो शरीर की नसें खिंचने लगती हैं और स्टेमिना में कमी महसूस होने लगता है। जबकि शरीर का दो तिहाई हिस्सा पानी या तरल पदार्थ का बना होता है। 
मनुष्य के शरीर के अधिकतर अंगों में पानी पाया जाता है यह बता बेहद कम लोग जानते होंगे, लेकिन ठोस और कड़ी महसूस होने वाली हड्डियों में भी 22 फीसदी पानी होता है। दांतों में 10 फीसदी, स्किन में 20 फीसदी, दिमाग में 74.5 फीसदी, मांसपेशियों में 75.6 फीसदी, जबकि खून में 83 फीसदी पानी ही होता है। रक्त, जिसे मानव शरीर की जीवनरेखा कहते हैं, उसका भी 83 प्रतिशत पानी ही होता है। रक्त शरीर के हर अंग तक विटामिन, मिनरल्स, अन्य जरूरी पोषक तत्त्व जैसे हीमोग्लोबिन, ऑक्सीजन आदि को पहुंचाने का काम करता है।

यही नहीं यदि पृथ्वी की बात करें तो पृथ्वी का 70 फीसदी भाग जल से ही ढका हुआ है, इसमें से 97 फीसदी पानी खारा है। पृथ्वी पर मीठा पानी पहाड़ों पर बर्फ के रूप में, झीलों, नदियों, और भूमिगत स्रोतों के रूप में पाया जाता है। 
दुनिया के कुल मीठे जल का 70 फीसदी भाग अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ के रूप में पाया जाता है बाकी 30 फीसदी वातावरण, झीलों, झरनों, एवम् भूमिगत स्रोतों के रूप में पाया जाता है। अमेरिका और कनाडा की ग्रेट लेक्स में विश्व के कुल मीठे जल का 1-5 भाग और रूस की बैकाल झील में भी 1-5 भाग पाया जाता है। पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है। अनुमान के मुताबिक पृथ्वी पर कुल 32 करोड़ 60 लाख खरब गैलन पानी है। 

 सरकार ने साल 2014 में एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि देश के 32 बड़े शहरों में से 22 शहर पानी के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं, जिनमें बेंगलुरु के अलावा.......शामिल हैं, जो तेजी से ‘डे जीरो’ की तरफ बढ़ रहे हैं। जबकि जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, यहां दुनिया भर की 16 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है। भले ही पृथ्वी का 70 फीसदी भाग पानी से ढका हुआ है, लेकिन इसमें से 97 फीसदी पानी खारा है।

दुनिया भर में जितना मीठा पानी मौजूद है उसमें से भारत के पास सिर्फ 4 फीसदी ही पीने लायक बचा है। इसका सबसे अहम कारण यह है कि देश में बहुर्राष्ट्रीय कंपनियां आवश्यकता से ज्यादा पानी का दोहन कर रही हैं और सरकार भी उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। इससे साबित होता है कि सरकार और बहुर्राष्ट्रीय कंपनियां देश की जनता का सामुहिक नरसंहार करना चाहती हैं।
राजकुमार 
(सहायक संपादक)
दैनिक मूलनिवासी नायक

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