शनिवार, 26 सितंबर 2020

दैनिक मूलनिवासी नायक स्थापना दिवस : प्रस्तावना : राजकुमार (सहायक संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)




प्रस्तावना : राजकुमार (सहायक संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

स्थान बामसेफ भवन, पूना                                                                                             दिनांक 17 अगस्त 2020

धन्यवाद, संचालक महोदय, आपने हमें प्रस्तावना रखने के लिए अवसर दिया, इसके लिए हम आपके आभारी हैं। कुछ कहने से पहले मूलनिवासी बहुजन समाज के सभी संत महापुरूषों को नमन करते है और उनसे प्रेरणा लेते हैं कि उनके अधूरे आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए जान की बाजी लगा देंगे। 

साथियों, आज हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है कि आज पेरियार रामासामी नायकर जी का 141वाँ जन्म दिन है और आज ही बहुजन आंदोलन के साथी दैनिक मूलनिवासी नायक मराठी का 12वां तथा दैनिक मूलनिवसी नायक हिन्दी का 10वां स्थापना दिवस है। इस मौके पर मैं दैनिक मूलनिवासी परिवार की ओर से आप सभी को हार्दिक शुभेच्छाएं देता हूं।

साथियों, दैनिक मूलनिवासी नायक स्थापना दिवस पर आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, आदरणीय मा. वामन मेश्राम साहब का हार्दिक स्वागत करते हैं तथा भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. विलास खरात साहब तथा सोशल मीडिया के सहायक राष्ट्रीय प्रभारी मा. संकेत काबंले सर का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। 

साथियों, बामसेफ के द्वारा इस देश मे ‘‘तीसरी आजादी’’ का आंदोलन मा. वामन मेश्राम साहब के नेतृत्व में चल रहा है। व्यवस्था परिवर्तन करना ही बामसेफ का मुख्य मकसद है। हम जिस व्यवस्था को बदलने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उसे बदलने में मीडिया की भी सबसे अहम भूमिका है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मा.वामन मेश्राम साहब के नेतृत्व में 16 सितंबर 2009 को मूलनिवासी नायक मराठी नाम का दैनिक समाचार पत्र शुरू किया गया और 17 सितंबर 2011 को मूलनिवासी नायक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र की स्थापना हुई। आज मूलनिवासी बहुजन आंदोलन के साथी दैनिक मूलनिवासी नायक (मराठी) का 12वाँ और दैनिक मूलनिवासी नायक (हिन्दी) का 10वाँ स्थापना दिवस है। इस स्थापना दिवस पर वर्चुअल कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

साथियों, हमारे समाज के कई संत महापुरूषों ने बहुजन आंदोलन को सफल करने के लिए समय-समय पर पत्र, पत्रिकाएं प्रकाशित किया था। कुछ संत महापुरूषों ने ‘‘वाणी’’ के माध्यम से आंदोलन को सफल बनाया। अगर मूलनिवासी बहुजन क्रांति के अग्रदूत राष्ट्रपिता जोतिराव फुले के समय में मीडिया की बात करे तो ज्योतिबा फुले के शिष्य कृष्णराव भालेकर ने 1877 को दीनबंधू नामक अखबार चलाया।

साथियों, मीडिया के संदर्भ में डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर क्या कहते थे? कहते थे कि ‘‘मीडिया की ताकत बहुत बड़ी ताकत होती है। अगर बायें हाथ में मीडिया हो तो दायें हाथ से रातों रात किसी को जीरो से हीरो और हीरो से जीरो बनाया जा सकता है’’ डॉ.बाबासाहब अंबेडकर आगे भी कहते है कि ‘‘ जिस आंदोलन का अखबार नहीं होता है वह आंदोलन पंख कटे हुए पंक्षी की तरह होता है। इसलिए उन्होंने आंदोलन चलाने के लिए अपने जीवन में पैसों की भारी कमी होने के बावज़ूद भी अख़बार निकालकर लोगों में चेतना और लोगों को जागृत करने का काम बड़े पैमाने पर किया था। 

डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने मूकनायक पत्रिका के माध्यम से गूंगे समाज को आवाज दी, बोलना सिखाया। इतना ही नहीं, उन्होंने जनता, बहिष्कृत भारत और प्रबुद्ध भारत जैसे समय-समय पर पत्र-पत्रिकाएं निकालकर अपने आंदोलन का साथी बनाया था और इन पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से शोषित, पीड़ित समाज की आवाज उठाई और उनको हक अधिकार देने में कामयाब हुए। इसलिए बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब, डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर से प्रेरणा लेकर इन्होंने भी अपने समय में दी अनटचेबल इंडिया, दी ऑपरेस्ड इंडियन, श्रमिक साहित्य, बहुजन साहित्य, शोषित साहित्य, बहुजन नायक, बहुजन संदेश, बहुजन संघठक और बहुजन टाइम्स पत्र पत्रिकाएं निकाली थी। 

साथियों, मा. वामन मेश्राम साहब भी ब्राह्मणवादी मीडिया से अच्छी तरह से परिचित हैं कि ब्राह्मणवादी मीडिया क्या कर रही है, ब्राह्मणवादी मीडिया केवल ब्राह्मणवादी व्यवस्था को मजबूत करने का काम रही है। नॉन इश्यू को इश्यू बना रही है और इश्यू को नॉन इश्यू बना रही है। इसलिए मा. वामन मेश्राम साहब हमारे महापुरूषों के नक्शे कदम पर चलते हुए कई पत्र पत्रिकाएं निकाल कर तथागत बुद्ध से लेकर मान्यवर कांशीराम साहब के आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। मा. वामन मेश्राम साहब ने मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत कर दोश्त और दुश्मन की पहचान करा दिया है। 

मा. वामन मेश्राम साहब ने आंदोलन को और तेज करने के लिए मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए मीडिया का बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म खड़ा कर दिया है। आज मा. वामन मेश्राम साहब के नेतृत्व में मूलनिवासी नायक मराठी और हिन्दी दैनिक समाचार पत्र, बहुजनों का बहुजन भारत हिन्दी साप्ताहिक व मासिक पत्रिका, मूलनिवासी बहुजन भारत अंग्रेजी मासिक पत्रिका के साथ ही कई भाषाओं में पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हो रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से एमएन टीवी, एमएन न्यूज पोर्टल और एमएन रेडियो वर्ल्डवाइड का सीधा प्रसारण भी किया जा रहा है। आज एमएन टीवी के 5 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हो चुके हैं, यह भी एक खुशी की बात है।

साथियों, डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर को यह बात बहुत अच्छी तरह से पता थी कि ब्राह्मणवादी मीडिया बहुजनों के आवाज को दबाने का काम करती हैं और जब तक ब्राह्मणवादी व्यवस्था रहेगी, इसी तरह से आगे भी आवाज दबाती रहेंगी। बाबासाहब अम्बेडकर ने जो बात उस समय में कही थी वो बात आज भी सच साबित हो रही है। उस समय बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा था कि ‘‘ ब्राह्मणवादी व्यवस्था में पत्रकारिता, पत्रकारिता नहीं रह गया है, बल्कि एक धंधा बन गया है।’’ यानी वर्तमान समय के मीडिया का आकलन डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर उस समय में कर रहे हैं।

आज के हालात क्या हैं? आज के हालात ये हैं कि ब्राह्मणवादी मीडिया में मूलनिवासी बहुजन समाज के मुद्दों की बात नहीं होती है, मूलनिवासी बहुजन पर हो रहे अन्याय, अत्याचार पर चर्चा नहीं होती है। हत्या बलात्कार के मुद्दे गायब हैं, शिक्षा के मुद्दे गायब हैं, बेरोजगारी के मुद्दे गायब हैं, भुखमरी के मुद्दे गायब हैं, किसान और किसानों की आत्महत्या के मुद्दे गायब हैं, देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई इसके मुद्दे गायब हैं, स्वास्थ्य सुरक्षा ही बीमार हो गई है इसके मुद्दे गायब हैं। ब्राह्मणवादी मीडिया को केवल कंगना रानौत की चिंता है, सुशांत सिंह राजपूत की चिंता है। गोदी मीडिया को पाकिस्तान के इकानमी की चिंता है। मगर भारतीय जनता की चिंता नहीं है और न ही देश की चिंता है। 

साथियों, वर्तमान समय में दैनिक मूलनिवासी नायक बहुजनों की बुलंद आवाज है और बामसेफ द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आंदोलन का सच्चा साथी है। क्योंकि, तमाम कठिनाईयों से जुझते हुए भी 12 सालों से बगैर विज्ञापन के निरंतर चल रहा है। अंत में मै देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज से एक अपील करना चाहता हूं कि ब्राह्मणवादी मीडिया के बजाए अपने आंदोलन के साथी, बहुजनों की बुलंद आवाज दैनिक मूलनिवासी नायक को तन-मन-धन से साथ सहयोग करे ताकि, हम अपने समाज की आवाज को और ज्यादा बुलंद कर सके। आप लोग ऐसा करेंगे, इसी के साथ मैं अपनी बातों को समाप्त करता हूँ।

!! जय मूलनिवसी!! 



Part-2,व्यवस्था परिवर्तन के लिए ''दैनिक मूलनिवासी नायक''का योगदान!राजकुम...

NEWS PAPER दैनिक मूलनिवासी नायक के बारे में बहत ही महत्वपूर्ण जानकारी |...

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

ओबीसी के बाद एससी-एसटी के ऊपर क्रीमीलेयर थोपने का काम शुरू






क्रीमीलेयर मामले में दैनिक मूलनिवासी नायक की बात तीसरी बार सच

दैनिक मूलनिवासी नायक शनिवार 28 अक्टूबर 2017 के अंक में फ्रंट पेज पर एक खबर प्रकाशित किया था. जिसका, शिर्षक था ‘‘न्यायपालिका भी कर रही है मूलनिवासियों के साथ धोखेबाजी. वहीं दूसरा शिर्षक था ‘‘ओबीसी के बाद अब एससी, एसटी पर भी क्रीमीलेयर थोपने की तैयारी’’ आज दैनिक मूलनिवासी नायक की बात तीसरी बार सच साबित हुई है. दैनिक मूलनिवासी नायक उस समय आगाह करते हुए लिखा था कि एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी को सावधान रहने की जरूरत है. क्योंकि, जिस तरह सरकार 52 प्रतिशत ओबीसी को क्रीमीलेयर लागू कर समस्त ओबीसी को उनके प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया है अब उसी तरह से एससी, एसटी पर भी क्रीमीलेयर लागू कर उनको भी उनके मौलिक आधिकारों से वंचित रखना चाहते हैं. इसलिए सरकार एससी, एसटी पर क्रीमीलेयर लागू करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.


तीन साल पहले से हो रही तैयारी

 ओबीसी की तरह ही एससी, एसटी पर क्रीमीलेयर थोपने के लिए आज से नहीं दो साल पहले से सरकार पूरी तरह से तैयारी करते आ रही है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर बहस का मुद्दा बनाते रहा है और सरकार को एससी, एसटी पर क्रीमीलेयर लागू करने के लिए संकेत भी देता रहा है. 2017 में जस्टिस कुरियन जोसेफ भी इस पर चर्चा कर चुके हैं. जिस्टस कुरियन जोसेफ ने वकील इंद्रा जयसिंह से सवाल उठाते हुए कहा था कि जो लोग सामाजिक, शैक्षणिक ओर आर्थिक रूप से ऊपर उठ चुके हैं उन्हें आरक्षण क्यों दिया जाना चाहिए? क्या वे लोग अपने ही वर्ग के पिछड़े लोगां का हक नहीं मार रहे हैं? इस पर वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने अपने जवाब में कहा था कि एससी, एसटी में पिछड़ेपन का फंडा नहीं लागू होता है. एससी, एसटी सूची से किसी वर्ग को सिर्फ संसद में कानून बनाकर ही बाहर किया जा सकता है. इसी तरह से 2018 में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियर जोसफ, जस्टिस आर.एफ.नरीमन, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की, एसटी में क्रीमीलेयर लागू करने को सही मानते हुए कहा था कि संविधानिक अदालतों को आरक्षण के सिद्वांत को लागू करते समय अनुच्छेद 14 व 16 के तहत समानता के सिद्वांत को लागू करते हुए ऐसे ग्रुप या सब ग्रुप से क्रीमीलेयर को बाहर करने न्यायिक शक्तियां हैं. यही नहीं बैंच का कहना था कि संसद को तथ्यों के आधार पर राष्ट्रपति की सूची में से नाम हटाने या शामिल करने की पूरी आजादी है. जबकि, दिसंबर 2019 में केन्द्र सरकार ने जैरनल सिंह मामले में पुर्नविचार के लिए लार्जर बैंच गठित करने का आग्रह किया था. क्योंकि केन्द्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को कहा था कि क्रीमीलेयर का सिद्वांत एससी व एसटी आरक्षण में लागू नहीं हो सकता. इसके बाद भी अभी तक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है और न ही सीजेआई ने लार्जर बैंच गठित की है


सरकार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर सिद्धांत लागू करने के लिए नई सूची बनाए : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली/दै.मू.ब्यूरो
सरकार तो सरकार देश की न्यायपालिका भी देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजनां के साथ धोखेबाजी करने से बाज नहीं आ रही है. क्योंकि, एक तरफ देश जहां महामारी से जूझ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार और सुप्रीम कोर्ट मूलनिवासी बहुजनों के मौलिक आधिकारों को खत्म करने पर काम कर रही है. जिस तरह से सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनां ने मिलकर ओबीसी के ऊपर जबरन क्रीमीलेयर थोपने का काम किया था ठीक उसी प्रकार से अब एससी, एसटी के भी ऊपर क्रीमीलेयर थोपने पर काम कर रही है. दैनिक मूलनिवासी नायक ने 2017 में ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट के इस खतरनाक साजिश के बारे में देश के मूलनिवासी बहुजनों को आगाह कर दिया था. आज दैनिक मूलनिवासी नायक की बात क्रीमीलेयर मामले में तीसरी बार सच साबित हुई है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गुरूवार 23 अप्रैल 2020 को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने कहा कि सरकार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर सिद्धांत लागू करे. जो आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़े या धनी हो चुके हैं, उन्हें शाश्वत रूप से आरक्षण देना जारी नहीं रखा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एससी और एसटी के धनी और विकसित हो चुके लोग ही एससी, एसटी आरक्षण का फायदा जरुरतमंदों को नहीं लेने दे रहे हैं. इसलिए, सरकार को एससी व एसटी के आरक्षण पर क्रीमीलयर का सिद्धांत लागू करने के लिए फिर से नई सूची बनाने पर पुनःविचार करना चाहिए.
गौरतलब है कि पीठ ने ये टिप्पणियां अनुसूचित क्षेत्रों में एसटी वर्ग को सौ फीसदी आरक्षण देने के आंध्रप्रदेश के फैसले को रद्द करते हुए दो दिन पूर्व की है. जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने कहा, राष्ट्रपति अनुच्छेद 341 के तहत आरक्षित जातियों की सूची बनाते हैं, ये सूची इतनी पवित्र और अपरिवर्तनीय नहीं है. कल्याण के उपायों की समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए. बैंच का नेतृत्व करने वाले जस्टिस अरुण मिश्रा ने फैसले में इंदिरा साहनी फैसले का उल्लेख करते हुए कहा है कि एससी, एसटी आरक्षण की सूची कभी नहीं बदले जाने वाली पवित्र नहीं है. चौंका देने वाली बात यह भी है कि बैंच ने कहा कि सरकार यह काम आरक्षण प्रतिशत को छेडे़ बिना भी कर सकती है. इसका मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को संकेत दे रहा है.
बता दें कि सरकार 52 प्रतिशत ओबीसी पर क्रीमीलेयर लागू कर उनको दिखावे के लिए केवल 27.5 प्रतिशत आरक्षण दिया. असल में क्रीमीलेयर के माध्य से ओबीसी को एक तरफ आरक्षण दिया और दूसरी तरफ से छीन लिया. यानी ओबीसी का गरीब तबका और उच्च पदों पर रहने वाले दोनों का पूरा आरक्षण खत्म हो गया. अगर दूसरी भाषा में कहा जाय तो सरकार ने ओबीसी के उन तबकों को खाने के लिए चने दिये जिनके पास दांत ही नहीं है और उन तबकों को चने नहीं दिया जिनके पास दांत हैं. ठीक यही षड्यंत्र अब एससी, एसटी के ऊपर भी अपनाया जा रहा है. 

रमजान की दिली मुबारकबाद

देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को हमारी तरफ से रमजान की दिली मुबारकबाद 💐🌺💖🌺💐


ए चांद, तू उनको मेरा पैगाम कह देना
खुशी का दिन और हंसी की शाम देना
जब वो देखे तुझे बाहर आकर
उनको मेरी तरफ से रमजान मुबारक कह देना



कोई इतना चाहे तुम्हे तो बताना
कोई तुम्हारी फिकर करे तो बताना
रमजान मुबारक हो हर कोई कह लेगा
कोई हमारे अंदाज में कहे तो बताना

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है : डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर

मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है : डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर


मेरी जय-जयकार करने के बजाए, मेरे अधूरे कारवां को पूरा करने के लिए जान की बाजी लगा दो...!
विश्वरत्न, संविधान निर्माता, सिंबल ऑफ नॉलेज, नारी मुक्तिदाता, डॉ.बाबासाहब अंबेडकर जी के 129वीं जयंती पर देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से हार्दिक बधाई!
मोहिनी राज
चन्दौली (उत्तर प्रदेश)
आज डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की 129वीं जयन्ती है. लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए हर घर-घर में बाबासाहब अम्बेडकर की जयंती मानाई जा रही है. बहुत खुशी की बात है. लेकिन, जयंती मनाने के पीछे क्या उदेश्य है, इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. हमारे सभी महापुरूषों का उदेश्य मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्त करना था. कुछ हद तक हमारे महापुरूषों का उदेश्य पूरा हुआ, लेकिन, अभी बहुत ज्यादा बाकी है, जिसे पूरा करना होगा. और उसे पूरा करने के लिए ही डॉ.बाबासाहब ने कहा था कि ‘‘मेरी जय-जयकार करने के बजाए, मेरे अधूरे कारवां को पूरा करने के लिए जान की बाजी लगा दो, मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है ’’ इसे हमें ही पूरा करना है. इसलिए हमें इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए जयन्ती मनानी है. आज इस मौके पर सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि देश में हर साल महापुरूषों की जयन्ती या स्मृति दिवस मनायी जाती हैं, लेकिन महापुरूषों की जयन्ती मनाने के पीछे कोई उदेश्य नहीं दिखाई दे रहा है, जबकि जयन्ती मनाने के पीछे उदेश्य होना चाहिए. क्योंकि, आज के इस मौके पर जो बातें प्रासंगिक है उसे बताना बहुत ही आवश्यक है.

किसी भी महापुरूषों की जन्म जयन्ती या स्मृति दिवस मनाने से पहले कुछ निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पहला-किसकी जयन्ती मनायी जानी चाहिए?
दूसरा-जयन्ती क्यों मनायी जानी चाहिए?
तीसरा-जयन्ती के पीछे उद्ेश्य क्या है?
चौथा-जयन्ती कैसे मनायी जानी चाहिए?
पाँचवां-वर्तमान में जयन्ती कैसे मनायी जा रही है?

पहली बात :- किसकी जयन्ती मनायी जानी चाहिए? जिन लोगों ने हमारे मानवीय अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया, जिन लोगों ने हमारे अधिकार के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, ऐसे लोगों की जयन्ती मनायी जानी चाहिए।
दूसरी बात :- जयन्ती क्यों मनायी जानी चाहिए? हमें जयन्ती इसलिए मनायी जानी चाहिए कि ताकि हम अपने महापुरूषों के इतिहास को जान सकें, उनके जीवन संघर्ष को जान सकें, उनकी विरासत रूपी विचारधारा को समाज में प्रस्थापित कर सकें और उनके द्वारा बताए गये मार्गों पर चल सके, इसलिए हमें जयन्ती मनायी जानी चाहिए।
तीसरी बात :- जयन्ती के पीछे उद्श्य क्या है? जयन्ती के पीछे यह उद्श्य होना चाहिए कि हमारे महापुरूषों ने कौन-कौन से मानवीय मूल्यों के लिए संघर्ष किया? वह अधूरा है या पूरा हो गया है? अगर वह पूरा हुआ तो कितना पूरा हुआ और कितना अधूरा है? जो पूरा हुआ वह कैसे पूरा हुआ? जो अधूरा है वह कैसे पूरा होगा? और उसे कौन पूरा करेगा? जिन महापुरूषों ने संघर्ष किया उन महापुरूषों का किन-किन लोगों ने साथ सहयोग किया? किन-किन लोगों ने विरोध किया? किन-किन लोगों ने महापुरूषों के साथ धोखेबाजी किया? किसने अपमानित किया? किसने षड्यंत्र किया? किसने महापुरूषों की हत्याएं की? और महापुरूषों की हत्या करने के बाद किसने उनकी विचारधारा को नष्ट किया? आदि बातों पर चिंतन-मनन करना, विचार करना और निर्णय लेना, निर्णय लेने के बाद उसपर अमल करना जयन्ती के पीछे मुख्य उदे्श्य होना चाहिए।
चौथी बात :- जयन्ती कैसे मनायी जानी चाहिए? आज कल प्रायः यही देखा जा रहा है कि 365 दिन में एक दिन खूब जय, जयकारी करते हैं और 364 दिन घर में बैठे रहते हैं. 364 दिन तक उनको न तो महापुरूषों से मतलब रहता है और न ही समाज से ही मतलब रहता है। एक दिन महापुरूषों की जयन्ती मनाकर 365 दिन तक घर में बैठे नहीं रहना चाहिए, बल्कि समाज को जागृत करना चाहिए, उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। उनकी विचारधारा को समाज में प्रस्थापित करना चाहिए और उनके उद्ेश्य को पूरा करने के लिए संघर्ष करना चाहिए, इस तरह से जयन्ती मनायी जानी चाहिए।
पाँचवीं बात :- वर्तमान में जयन्ती कैसे मनायी जा रही है? आज कल महापुरूषों की जयन्ती जातिगत रूप से मनायी जा रही हैं। जैसे संत रविदास और डॉ.बाबसाहब अम्बेडकर की जयन्ती चमार मनाते हैं। तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक और लेलिन बाबू जगदेव सिंह कुशवाहा की जयन्ती कुशवाहा मनाते हैं। पेरियार ललई सिंह यादव की जयन्ती अहिर मनाते हैं, राष्ट्र संत गाडगे बाबा की जयन्ती धोबी मनाते हैं, पेरियार रामासामी नायकर की जयन्ती गडे़री मनाते हैं, राष्ट्रपिता जोतिराव फुले की जयन्ती माली और कयूम अंसारी की जयन्ती मुसलमान मनाते हैं, जबकि इन सभी महापुरूषों ने जाति, विषमता, भेदभाव को खत्म करने के लिए जीवनभर संघर्ष किया। जान कुर्बान कर दिया और हम उन्हीं महापुरूषों को जातियों में बाँधकर जयन्ती मनाते हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें महापुरूषों को जातियों में बांधकर नहीं, जातिवाद, भेदभाव और विषमता को त्यागकर, सभी जातियों को मिलकर सभी महापुरूषों की जयन्ती मनानी चाहिए, चाहे महापुरूष बहुजन समाज के किसी भी जाति से हों।
दूसरी बात, आज खूब धूमधाम से डीजे के साथ नाचते-गाते हुए उत्सव और त्योहार के रूप में महापुरूषों की जयन्ती मनायी जा रही हैं, जिसमें करोड़ों रूपये हर साल खर्च हो जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि केवल बाबासाहब अम्बेडकर की जयन्ती पर पूरे भारत में हर साल 75 करोड़ रूपया खर्च होता है? यह आँकड़ा 10 साल पुराना है, आज करीब अरबों रूपये होगा। यह कितनी चिंताजनक बात है कि हम केवल उनकी जय-जयकार के लिए अरबों रूपये हर साल खर्च कर देते हैं, मगर उनके अधूरे काम को पूरा करने के लिए एक रूपया भी नहीं खर्च करते हैं। आज जिस तरह से जयन्ती मनायी जा रही है उस तरह से सभी मानवीय साधन बर्बाद हो रहे हैं।

अब सवाल यह है कि क्या हमारे महापुरूषों का यही आंदोलन था? क्या उनका यही अधूरा काम रह गया है? क्या हमारे महापुरूषों ने यही कहा था? हर महापुरूषों ने मरते समय यही कहा था कि हमारी जयन्ती मनाने, जय-जयकार करने के बजाय जो हमारा अधूरा काम रह गया है उसे पूरा करने के लिए जान की बाजी लगा दो। डीजे लगाने के लिए नहीं कहा था, लेकिन हम क्या कर रहे हैं? क्या हमारे और आपके नाम पर एक रूपया भी चन्दा मिलता है? नहीं, महापुरूषों के नाम पर मिलता है, मगर हम उसे इस्तेमाल कहाँ कर रहे हैं नाचने-गाने और जय-जयकार करने पर।

हमें महापुरूषों की जयन्ती इस तरह से नहीं मनानी चाहिए, बल्कि उनकी जयन्ती के अवसर समाज का इकट्ठा करना चाहिए, समाज में महापुरूषों के इतिहास और उनके जीवन संघर्ष को बताना चाहिए। महापुरूषों ने किसके लिए क्या किया यह बात समाज को बतानी चाहिए, महापुरूषों के विचारों का प्रचार-प्रसार करना चाहिए, उनके बताए मार्ग पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहिए, जन-आंदोलन के लिए लोगों को तैयार करना चाहिए और उनके नाम पर मिलने वाले चन्दा को महापुरूषों के अधूरे काम को पूरा करने के लिए खर्च करना चाहिए।
ऐसा आप लोग करेंगे, इसी आशा और विश्वास के साथ जय मूलनिवासी

यह धरती तंग है तो तंग ही सही, आसमाँ पर रंग है बेरंग ही सही!
हम तो देश में समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय चाहते हैं,
अगर विदेशी ब्राह्मण जंग चाहते हैं तो जंग ही सही!!

राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)