मंगलवार, 31 मार्च 2020

लॉकडाउन में फंसे गरीबों, मजदूरों की दुर्दशामहामारी से ज्यादा लॉकडाउन का खौफ

बगैर खाये पीये ही हजारों किमी पैदल निकल पड़े अपने-अपने गांव


हम तेरे शहर में आये थे, मुसाफिर...आज इस गीत को लॉकडाउन ने सच में चरितार्थ कर दिया है. देश में जितना ज्यादा कोरोना वायरस का खौफ नहीं है उससे कहीं ज्यादा खौफ 21 दिन के अचानक लॉकडाउन का है. इस 21 दिन के अचानक लॉकडाउन के खौफ की गवाही सुनी सड़कें और ये जगह-जगह की तस्वीरें दे रही हैं कि गरीबों और मजदूरों को जितना ज्यादा वायरस का खौफ नहीं है उससे कहीं ज्यादा खौफ लॉकडाउन का है. 

बता दें कि सड़कों पर सन्नाटा पसरा है, लेकिन कुछ मजबूर कदम सामान लादे एक लंबे सफर पर निकल चुके हैं. यह सफर कितने दिनों में पूरा होगा, यह उन्हें भी नहीं पता है. लेकिन, शहर में रोटी के लिए जूझते इन मजदूरों ने लॉकडाउन में भी अपने घर जाने का फैसला कर लिया है. सफर लंबा है, कोई दिल्ली से अलीगढ़ जा रहा है, तो कोई बिहार या फिर झारखंड, वो भी पैदल. उनके इरादे मजबूत हैं. साथ बच्चे और महिलाएं भी हैं. सब इस उम्मीद में शहर से निकल रहे हैं कि अपने गांव जाकर कम से कम भूखे नहीं मरेंगे.
इस 21 दिन के लॉकडाउन का खौफ सबसे ज्यादा उन लोगों को है जो अपना शहर छोड़कर दूसरे शहरों में रोजी रोटी के लिए गये थे. वो आज 21 दिन के इस लॉकडाउन में बुरी तरह से फंसे हुए हैं. कंपनियों के बंद हो जाने से उनके ऊपर आर्थिक संकट आ गया है, जिससे भूखों मरने की नौबत आ गई है. ऐसे में अगर वे अपने घर लौट जाते हैं तो कम से कम भूख से नहीं मरेंगे. लेकिन, इस लॉकडाउन ने उनको कहीं का नहीं छोड़ा है. आवागमन पूरी तरह से ठप है, ऐसे में दूसरे शहरों में काम करने वाले गरीब, मजदूर अपने छोटे-छोटे बच्चों सहित पूरे परिवार के साथ पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े हैं.

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