बुधवार, 25 मार्च 2020

देश में कोरोना वायरस के मामले बढ़ते रहे और सरकार स्वास्थ्य सुरक्षा उपकरणों का निर्यात करती रही


भारत सरकार के पास मास्क, दास्ताने से लेकर कोई सुरक्षा उपकरण नहीं
हॉस्पिटल कर्मचारी सेफ्टी किट के अभाव में डस्टबिन में यूज होने वाली पॉलीथिन पहनकर इस भयंकर महामारी से जूझ रहे हैं.

कोरोना वायरस जैसी महामारी से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया खतरे में पड़ गई है. लेकिन चौंका देने वाली खबर है कि भारत में इस भयंकर महामारी से जनता और उनको बचाने वाले डाक्टर दोनां की जान के साथ मोदी सरकार खिलवाड़ कर रही है. जिससे मरीज और डाक्टर दोनां को खतरा पैदा हो गया है. क्योंकि, सरकार इस महामारी के विषय में पहले से ही जानते हुए भी भारत में निर्माण होने वाले बॉडी कवर कीट (पीपीई) सर्जिकल मास्क, डिस्पोजेबल मास्क, एनबीआर के अलावा सभी तरह के दस्ताने, सर्जिकल ब्लेड्स, शू-कवर, गैस मास्क, प्लास्टिक तारपोलीन, सांस लेने वाले मेडिकल सुरक्षा उपकरणों को अन्य देशों को ज्यारा पैसों में बेचती रही. जबकि, देशभर के डॉक्टर अपनी सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी इन बुनियादी चीजों को लेकर चिन्तित हैं. उनके होश उड़े हैं कि वे कैसे संक्रमित मरीजों के पास जायेंगे. वैसे ही पहले से देश में डॉक्टर, नर्स की संख्या बेहद कम हैं. हाली में जारी स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 84,000 भारतीयों पर एक आइसोलेशन बिस्तर है और 36,000 भारतीयों पर एक क्वारंटीन बिस्तर है. कोरोना के बढ़ते कोहराम के बीच जो आंकड़ा जुटाया गया उसके मुताबिक 11,600 भारतीयों पर एक डॉक्टर और 1,826 भारतीयों पर अस्पताल में एक बिस्तर है. वहीं नेशनल हेल्थ प्रॉफिट 2019 के मुताबिक देश में अभी 11,54,686 रजिस्टर एलोपैथिक डॉक्टर हैं और 7,39,024 सरकारी अस्पतालों में बिस्तर है. इस पूरी रिपोर्ट में एक बात जो ज्यादा ध्यान आकर्षित करती है कि कोरोना से लड़ने के लिए प्रशासन की ओर से कोई तैयारी नहीं जिससे सवंमित मरीजों का सही से इलाज हो सके.

दूसरी सबसे बड़ी बात है आज हमारे डॉक्टरों के पास मास्क से लेकर बॉडी कवर कीट तक नहीं है. हमारे डॉक्टर डस्टबीन में डालने वाले बड़े प्लास्टिक को बॉडी कवर बनाकर पहनने को मजबूर हैं. लानत है ऐसी सरकार पर जो जनता और डॉक्टर दोनों के जान के साथ खिलवाड़ कर रही है. और जनता को भी सरकार से सवाल पूछना चाहिए भारत में इस वक्त कितने बॉडी कवर कीट (पीपीई) उपलब्ध हैं? क्या आपको पता है कि भारत को हर दिन पांच लाख पीपीई की जरूरत है? एक कारवां नामक पत्रिका में दावा किया गया है कि सरकार ने इसके लिए सरकारी कंपनी एचएलएल को मई 2020 तक साढ़े सात लाख पीपीई, 60 लाख एन-95 मास्क और एक करोड़ तीन लाख थ्री प्लाई मास्क का निर्माण करने का आर्डर कर दिया था. सवाल यह है कि क्या सरकार इस महामारी के विषय में पहले से ही जानती थी? अगर, सरकार पहले ही जान चुकी थी तो यह संकट देश से क्यों छुपाया?

एक खबर के अनुसार, दिल्ली के एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने अपने निदेशक को पत्र लिखकर अस्पताल में सुरक्षा उपकरणों जैसे कि सर्जिकल मास्क, दस्ताने इत्यादि की कमी पर चिंता जताई थी. आज एक बार फिर से एम्स के डॉक्टरों ने मास्क, दस्ताने की कमी को लेकर शिकायत की है. यीह नहीं लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज का है, जहां के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने भी पत्र लिखकर सुरक्षा उपकरणों की कमी पर चिंता जताई है. अब यहां बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों इस तरह की कमी अस्पतालों में हो रही है और ऐसा करके क्यों सरकार डॉक्टरों, नर्सों, वॉर्डबॉय समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है?

बता दें कि कारवां नामक पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, 18 मार्च को प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन करते हैं. जिसमें 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू लगाने की घोषणा करते हैं और 19 मार्च को सरकार जो भारत में पहले से निर्माण हो रही बॉडी कवर कीट (पीपीई) सर्जिकल मास्क, डिस्पोजेबल मास्क, एनबीआर के अलावा सभी तरह के दस्ताने, सर्जिकल ब्लेड्स, शू-कवर, गैस मास्क, प्लास्टिक तारपोलीन, सांस लेने वाले मेडिकल सुरक्षा उपकरणों को दूसरे देशों को बेचती रही और 19 मार्च को उपरोक्त निर्माण उपकरणों के निर्यात (बेचने) पर रोक लगाती है. इसके तीन हफ्ते पहले तक यानि 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दिशानिर्देश जारी करते हुए पहले ही बता दिया था कि दुनियाभर में पीपीई का भंडारण पर्याप्त नहीं है और लगता है कि जल्द ही गाउन और गुगल (चश्में) की आपूर्ति भी कम पड़ जाएगी. इसके बाद भी मोदी सरकार भारत में निर्माण हो चुके सुरक्षा उपकरणों को दूसरे देशों को बेचती रही. आखिर 31 जनवरी से लेकर 19 मार्च 2020 तक निर्यात की अनुमति क्यों दी गई? क्योंकि, देश में पहला कोविड-19 का केस 31 जनवरी को आया और अगले दिन 1 फरवरी को विदेश व्यापार के डाइरेक्टर जनरल ने डाक्टरों, नर्सो द्वारा प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों में जैसे पीपीई, सर्जिकलमास्क, डिस्पोजेबल मास्क, एनबीआर के अलावा सभी तरह के दस्ताने, सर्जिकल ब्लेड्स, शू-कवर, गैस मास्क, प्लास्टिक तारपोलीन, सांस लेने वाले एवं गाउन इत्यादि के निर्यात पे बैन लगा दिया. परन्तु, एक हफ्ते बाद मोदी सरकार ने फिर से दस्ताने और एन-95 मास्क का निर्यात खोल दिया. वहीं पीपीई बनाने के रॉ मेटेरियल पे किसी तरह का बैन नहीं लगाया. इसके चलते दूसरे देशों ने इन उपकरणों के रॉ मेटेरियल को खरीद कर अपने यहां इमरजेंसी के लिए स्टोर करना शुरू कर दिया.

प्राइवेट वेयर मैन्यूफैचर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन संजीव कुमार ने 7 फरवरी को ही भारत सरकार से स्वास्थ्य कर्मियों के लिए जरुरी पीपीई के रॉ मेटेरियल निर्यात पे रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन भारत सरकार ने अनसुना कर दिया और इटली जर्मनी हमसे उपकरण बनाने का कच्चा माल खरीद के भंडारण करते रहे. इस से भारत में थ्री प्लाई मास्क बनाने का कच्चा माल 250 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 3000 प्रति किलो हो गया. जबकि, 25 फरवरी तक इटली में वायरस से 11 मरने और 200 से ज्यादा केस मिलने के बाद भी भारत सरकार ने ग्लव्स और मास्क के आलावा 8 और नये पीपीई के निर्यात को खोल दिया. कारवाँ पत्रिका ने एक और खुलासा किया है. कारवां के अनुसार, भारत सरकार ने इस महामारी के समय में हर कंपनी को आपूर्ति करने की छूट देने के बजाय सिर्फ एक सरकारी कंपनी एचएलएल को एकाधिकार दिया. जबकि रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकारी कंपनी एचएलएल खुद पीपीई नहीं बनाती है, बल्कि छोटी कंपनियों से लेकर असेम्बिल करके बढ़ाये हुए दाम 1000 प्रति किट बेच रही, जबकि, वो कंपनियां अपने मुनाफे के साथ 400-500 प्रति किट बेचने को तैयार थी, लेकिन सरकार इसमें मुनाफा कमाती रही.

इसका नतीजा यह निकला कि आज जब देश में वायरस दूसरे स्टेज में है तब भारत के डॉक्टर, नर्स, वार्डब्याय एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के पास सुरक्षा के उपकरण नहीं हैं? आज भारत के ही डाक्टर असुरक्षित हैं. स्वास्थ्य विभाग के ऑल इंडिया ड्रग्स एक्शन नेटवर्क का कहना है कि भारत को 5 लाख कवरेल (गाउन) प्रतिदिन की जरूरत पड़ने वाली है. इस संकट में डाक्टर, नर्स और स्वास्थकर्मी अपनी जान हथेली पर लेकर इस महामारी पर काबू पाने की कोशिश कर हैं. क्या सरकार को ताली, थाली बजाने के लिए आदेश देने की जरूरत थी या देश में चिकित्सा उपकरणों का निर्माण करने जी जरूरत थी? लेकिन, भारत में की स्थिति यह है कि आज हॉस्पिटल कर्मचारी सेफ्टी किट के अभाव में डस्टबिन में यूज होने वाली पॉलीथिन पहनकर इस भयंकर महामारी से जूझ रहे हैं.

भारत सरकार ने क्यों नहीं मानी डब्ल्यूएचओ की सलाह?
डब्ल्यूएचओ की चेतावनी के बावजूद भारत ने नहीं किया सुरक्षा सामग्री का भंडारण
27 फरवरी 2020 को डब्ल्यूएचओ ने बता दिया था कि विश्व में पीपीई आपूर्ति में कमी आने वाली है सारे देश इसका बंदोबस्त करें. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिशानिर्देश जारी करते हुए बताया था कि दुनियाभर में पीपीई का भंडारण पर्याप्त नहीं है और लगता है कि जल्द ही गाउन और गुगल (चश्में) की आपूर्ति भी कम पड़ जाएगी. लेकिन भारत सरकार ने अनसुना करते हुए घरेलू पीपीई के निर्यात पर रोक लगाने में 19 मार्च तक का समय लगा दिया. क्योंकि, 31 जनवरी को भारत में कोविड-19 का पहला मामला सामने आने के बाद, विदेश व्यापार निदेशालय ने सभी पीपीई के निर्यात पर रोक लगा दी थी, लेकिन 8 फरवरी को सरकार ने इस आदेश पर संशोधन कर सर्जिकल मास्क और सभी तरह के दस्तानों के निर्यात की अनुमति दे दी. 25 फरवरी तक जब इटली में 11 मौतें हो चुकी थीं और 200 से अधिक मामले सामने आ चुके थे, सरकार ने उपरोक्त रोक को और ढीला करते हुए 8 नए आइटमों के निर्यात की मंजूरी दे दी. यह बिलकुल साफ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के चेतावनी के बाद भी भारत सरकार ने पीपीई की मांग का आंकलन नहीं किया. और अपनी कमाई के लिए भारत सरकार भारत में निर्मित उपकरणों को दूसरे देशों में बेचती रही. आज स्थिति यह है कि भारतीय डॉक्टरों और कर्मियों के पास सुरक्षा कीट नहीं है, जिससे उनके जान को खतरा पैदा हो गया है.


राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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