पिता की जिंदगी की खातीर हाथ में ड्रिप की बॉटल लटकाए 02 घंटे तक खड़ी रही 7 साल की बिटिया
औरंगाबाद/दै.मू.समाचार
केन्द्र की सरकार लाख कोशिश कर ले, लेकिन देश की हालत सुधरने के बजाए और ज्यादा गंभीर ही होती जायेगी, क्योंकि बीजेपी सरकार की नियत ही खराब है। आज मोदी सरकार में रोटी, कपड़ा, मकान से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और आमजन की सुरक्षा तक पंगू बन चुकी है। इस बात की गवाही औरंगाबाद सरकारी अस्पताल की यह तस्वीर ही दे रही है जहां 7 साल की बिटिया पिता की जिंदगी बचाने के लिए हाथ में ड्रिप की बॉटल लटकाए 02 घंटे तक खड़ी रही। वास्तव में यह तस्वीर मोदी सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। यह मामला औरंगाबाद के घाटी सरकारी हॉस्पिटल का है। एकनाथ का किसी बीमारी में ऑपरेशन हुआ था, हॉस्पिटल में सलाइन (ड्रिप) स्टैंड नहीं था। इसलिए बेटी को बॉटल पकड़ाकर खड़ा कर दिया गया। डॉक्टरों ने बच्ची को सख्त हिदायत दी थी कि बॉटल ऊंची ही रखना। बच्ची ने पिता के लिए 02 घंटे तक हाथ में ड्रिप की बॉटल लिए खड़ी रह गयी। यह मामला प्रकाश में आने पर डॉक्टरों ने कहा की बच्ची सिर्फ 5 मिनट बॉटल पकड़ी...रही। औरंगाबाद के रहने वाले एकनाथ गवली को 5 मई को घाटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां 7 मई को ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद उन्हें वार्ड में शिफ्ट किया गया। वार्ड में शिफ्ट तो कर दिया गया, लेकिन वहां ड्रिप लटकाने के लिए स्टैंड नहीं था। लिहाजा एकनाथ की 7 साल की बेटी को ही डॉक्टरों ने बॉटल पकड़ा दी और बॉटल नीचे न करने की शख्त हिदायत दी जिसके कारण मासूम 02 घंटे तक खड़ी रह गई।
शोसल मीडिया में आई खबरों के अनुसार, पिता की जिंदगी की खातिर बच्ची करीब 2 घंटे ऐसे ही बॉटल पकड़े खड़ी रही। जबकि विवाद बढ़ने के बाद घाटी हॉस्पिटल मैनेजमेंट की ओर से इस बात से इनकार कर दिया गया। हॉस्पिटल ने एक बयान जारी कर कहा है कि ऑपरेशन थिएटर से वार्ड में शिफ्ट करने के दौरान मरीज की बेटी ने कुछ देर के लिए बॉटल को पकड़ लिया था। उसी दौरान किसी ने फोटो खींच ली और सोशल मीडिया में वायरल कर दी। जबकि डॉक्टरों का यह बयान सरासर गलत है। चूंकी ड्रिप की दो बॉटल पहले ही खत्म हो चुकी थी, मासूम के हाथों में तीसरे ड्रिप बॉटल थी। उल्लेखनीय है कि मराठवाड़ा के इस सबसे बड़े 1200 बेड वाले सरकारी हॉस्पिटल में औरंगाबाद सहित आसपास के 8 जिलों के मरीज इलाज कराने आते हैं। लेकिन घाटी अस्पताल में बड़ी संख्या में गरीब मरीजों के आने के बाद भी मरीजों को सहूलियत मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती।
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