शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

‘‘मन चंगा तो व्यर्थ है गंगा : संत रविदास’’


मूलनिवासी बहुजन मुक्ति आंदोलन के जुझारु नायक ‘संत रविदास’

राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
यह बात अब तक मिले कई गुरूवाणी, तथ्यों, दस्तावेजी सबूतों और तर्क के आधार पर प्रमाणित हो चुका है कि मुनवादियों ने ही छल-कपट और धोखे से क्रांतिकारी संत रैदास (रविदासजी) की हत्या की है. सतनाम सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘गुरू रविदास की हत्या के प्रमाणिक दस्तावेज’ के अनुसार, संत रविदास की हत्या राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में राणा सांगा ने की. अब सवाल यह है कि मनुवादियों ने संत रविदास की हत्या क्यों की? जबकि, ब्राह्मणों के द्वारा बताया जाता है कि संत रविदास भक्ति आंदोलन चला रहे थे. संत रविदास भगवान के भक्त थे, उनके अंदर अदभूत शक्ति थी, वे चमत्कारिक संत थे. अगर, यह बात सही है तो पुनः सवाल खड़ा होता है कि जब संत रविदास खुद ब्राह्मणवाद को मजबूत करने का काम कर रहे थे तो फिर ब्राह्मणों को उनकी हत्या करने की क्या जरूरत पड़ी?  इससे साबित होता है कि ब्राह्मणों द्वारा संत रविदास के विषय में कही गई हर बात निराधार एवं कोरा बकवास है.

असल में हकीकत यह है कि देश के मध्ययुगीन, महानतम, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, क्रांतिकारी संत रविदास ‘भक्ति आंदोलन’ नहीं, वे मूलनिवासी बहुजनों को ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए ‘मुक्ति आंदोलन’ चला रहे थे. संत रविदास एक क्रांतिकारी संत थे, वे अपनी वाणी के माध्यम से छुआछूत, असमानता, पाखंडवा, जातिवाद, निम्नवर्णों की शिक्षा, सुरक्षा और संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध व इनपर किए जाने वाले अत्याचार, शोषण, भेदभाव, प्रताड़ना, शोषण और मनमानी के सिद्धांतों पर ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई व्यवस्था का न केवल घोर विरोध किया, बल्कि ब्राह्मणवाद पर करारा हमला भी किया था. जिससे कारण ब्राह्मणों में खलबली मच गई. 

संत रविदास ने भी वहीं किया जो तथागत बुद्ध ने किया था. संत रविदास के अनुसार किसी बात को ठीक से सोच विचार कर बुद्धि की कसौटी पर परख कर ही मानना चाहिए. उन्होंने श्रम की महत्ता पर अत्यधिक बल दिया और आजीवन वैज्ञानिक-मानववाद के प्रचार में सक्रिय रहे. अतः वे इस समता मिशन के नायक बन चुके थे. वास्तव में संत रविदास जी गैरब्राह्मण धर्म चेतना की एक महत्वपूर्ण कड़ी रहे हैं. क्योंकि, यह जनक्रांति यक्षों, नागों, नास्तिकों, बौद्धों, सिद्धों, नाथों, वीरों, विनायकों, पीरों से होती हुई निर्गुणियां संतो तक चली आयी थी. लाजिमी है कि वे मनुवादियों की आंखों में खटक रहे थे. संत रविदास के इस हमले से ब्राह्मणवाद खतरे में पड़ गया. इसलिए ब्राह्मणों द्वारा संत रविदास की हत्या करने का षड्यंत्र करने लगे.

संत रविदास की हत्या का दूसरा सबसे बड़े कारण चित्तौड़गढ़ के राणा सांगा की पत्नी रानी झालीबाई और मीराबाई द्वारा संत रविदास को अपना गुरू स्वीकार करना साबित हुआ है. 1509 से 1527 तक मेवाड़ पर शासन करने वाले राणा सांगा की पत्नी रानी झाली और मीरा बाई ने 1567-68 में काशी जाकर संत रविदास को अपना गुरू स्वीकार किया. मध्ययुग के इस शक्तिशाली राजा की पत्नी द्वारा एक अछूत संत को अपना गुरू बना लेना मनुवाद के लिए सबसे बड़ा चुनौती बन गया था. उस समय राजस्थान के ब्राह्मणों ने संत रविदास का कड़ा विरोध किया. ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा धक्का तो तब लगा जब रानी झाली के निवेदन के पश्चात संत रविदास मेवाड़ आए. इस पर ब्राह्मण और ज्यादा बौखला गये और रोकने लगे. परन्तु, रानी झाली पर इसका कोई असर नहीं हुआ, बल्कि रानी झाली ने पालकी पर संत रविदास का स्वागत किया. यहां तक की संत रैदास की उपस्थिति में ही रानी झाली ने अपने बेटे कुंवर भोजराज की शादी मीराबाई से कर दी थी. जब संत रैदास ने शादी के वक्त महल में बतौर अतिथि प्रवेश किया तो राजस्थान के ब्राह्मणों ने इनका विरोध किया. यह दृश्य देखकर ब्राह्मणों ने कहा कि यदि तुम्हारे गुरू में शक्ति है तो अपनी शक्ति का प्रमाण दें. इस तरह धोखे से राणा सांगा और ब्राह्मणों ने 1527 को चित्तौड़गढ़, किले में उनकी हत्या कर दी.  चित्तौड़गढ़ के किले में आज भी उनकी समाधि मौजूद है. बाद में झूठा प्रचार किया कि संत रविदास में अलौकिक शक्ति है. हालांकि, राणा सांगा की मृत्यु के बाद विधवा रानी झाली का जीवन किस प्रकार बीता, यह अभी भी शोध का विषय है.

मीरा को यातनाएं उसकी भक्ति भावना के कारण नहीं दी जाती थी, बल्कि उसे यातनाएं इस बात के लिए दी जाती थी कि वह एक अछूत संत के पास उनकी बस्ती में क्यों जाती थी? मीरा के गुरु का चमार होना ही उसकी यातनाओं का मुख्य कारण था. मीरा ने अपनी वाणी में भी इसका उल्लेख किया है. मनुवादियों को यह गवारा नहीं था, अतः मीरा अपने गुरु की हत्या का सबसे बड़ा कारण बनी, इसमें कोई शक नहीं रह जाता है. यही कारण है कि मीरा को जान से मारने के प्रयास दो बार किए गए. संत रविदास जी के मिशन के सहयोगी रहे संत पलटू साहिब को ब्राह्मणों ने उनकी झोपड़ी में आग लगाकर मार डालने का प्रयास किया। मीरा और पलटू जी की हत्या के प्रयासों को देखते हुए साबित हो जाता है कि मनुवादी अपने विरोधियों की हत्याएं तक करने पर उतर आए थे। ऐसे में उनके लिए संत रविदास जी की हत्या कोई बड़ी बात नहीं थी. उनकी हत्या करने के बाद संत रविदास के अनुयायी इसका विरोध न करें, इसलिए ब्राह्मणों ने उनके बारे में तमाम अनर्गल झूठा प्रचार किया. ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा, ‘गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सभी गढ़ैया’ जैसे मुहावरे भी ब्राह्मणों ने उसी जघन्य हत्याकांड के बाद रचे, क्योंकि उसी चित्तौड़गढ़ में जनचेतना की एक प्रचंड ज्योति को षड्यंत्र के तहत बुझाया गया था. असल में संत रविदास ने कहा था कि ‘‘मन चंगा तो व्यर्थ है गंगा’’


संत रैदास द्वारा यह पद सुनाने के बाद उनकी हत्या हुई थी. 
जीवन चारि दिवस का मेला रे।
बांभन झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।
मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजति बाहर चेला रे।
लड्डू भोग चढावति जनता, मूरति के ढोंग केला रे।
पत्थर मूरति कछु न खाती, खाते बांभन चेला रे।
जनता लूटति बांभन सारे, प्रभु जी देति न धेला रे।
पुन्य पाप या पुनर्जन्म का, बांभन दीन्हा खेला रे।
स्वर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य या चेला रे।
जितना दान देव गे जैसा, वैसा निकरै तेला रे।
बांभन जाति सभी बहकावे, जन्ह तंह मचै बवेला रे।
छोड़ि के बांभन आ संग मेरे, कह विद्रोहि अकेला रे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें