मंगलवार, 30 जनवरी 2018

जातिवादी, नस्लीय और चरित्रहीन थे गांधी-सुजाता गिडला


भारतीय अमेरिकी लेखिका ने गांधी पर बोला हमला

दै.मू.ब्यूरो/जयपुर
मोहनदास कर्मचन्द गांधी न केवल जातिवादी और नस्लीय थे, जो जाति व्यवस्था को जिंदा रखना चाहते थे और राजनीतिक फायदे के लिए दलित उत्थान पर केवल जबानी जमा खर्च करते थे, बल्कि वह चरित्रहीन भी थे जो औरों के लिए शर्म की बात हो सकती है, मगर गांधी के लिए गर्व की बात थी। यह बात सोमवार 29 जनवरी 2018 को न्यूयार्क में रहने वाली भारत की मूलनिवासी लेखिका सुजाता गिडला ने जयपुर में साहित्य महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया कि मोहनचन्द गांधी न केवल जातीय, नस्लवादी थे, बल्कि वह एक गंदे चरित्र के भी थे, जो यह बात किसी से छीपी नहीं है। आज एक बार फिर गांधी के चरित्र और उनके व्यवहार को लेकर चर्चा का कौतुहल बना हुआ है। यह चर्चा का विषय तब सुर्खियों में आया है जब 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या गोली मारकर को लेकर याद किया जा रहा था। गौरतलब है कि न्यूयार्क में रहने वाली भारत की मूलनिवासी लेखिका ने जयपुर साहित्य महोत्सव में कहा कि गांधी जाति व्यवस्था को केवल संवारना चाहते थे। कैसे कोई कह सकता है कि गांधी जाति विरोधी व्यक्ति थे? वाकई वह जाति व्यवस्था की रक्षा करना चाहते थे और यही कारण है कि अछूतों के उत्थान के लिए वह केवल बातें करने तक सीमित रहे क्योंकि ब्रिटिश सरकार में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ बहुमत की जरूरत थी। इसी वजह से हिंदू नेताओं ने सदा जाति मुद्दे को उठाया। अपने तर्कों को जायज ठहराने के लिए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में राजनीतिक नेताओं के घटनाक्रम की याद दिलाई जहां उन्होंने कहा था कि अश्वेत लोग काफिर और असफल हैं। गिडला ने आगे कहा कि अफ्रीका में जब लोग पासपोर्ट शुरू करने के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ रहे थे तो उन्होंने कहा कि भारतीय लोग मेहनती होते हैं और उनके लिए इन चीजों को साथ लेकर चलना जरूरी नहीं होना चाहिए। लेकिन अश्वेत लोग काफिर और असफल होते हैं और वे आलसी हैं। हां, वे अपना पासपोर्ट रख सकते हैं लेकिन हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? उन्होंने कहा, गांधी वास्तविकता में बहुत जातिवादी और नस्लीय थे और कोई भी अछूत यह जान जाएगा कि गांधी की असल मंशा वहां क्या थी। एंट अमांग एलीफेन्ट, एन अनटचेबल फैमिली एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न इंडिया की लेखिका नैरेटिव्स ऑफ पावर, सांग ऑफ रेसिस्टेंस सत्र में बोल रही थी।
आपको बताते चलें कि इसी दौरान गांधी जी के चरित्र को लेकर भी बहस छिड़ चुकी है कि क्या महात्मा गांधी को सचमुच सेक्स की बुरी लत थी? लंदन के प्रतिष्ठित अखबार “द टाइम्स” के मुताबिक गांधी को कभी भगवान की तरह पूजने वाली 82 वर्षीया गांधीवादी इतिहासकार कुसुम वदगामा ने कहा था है कि गांधी को सेक्स की बुरी लत थी, वह आश्रम की कई महिलाओं के साथ निर्वस्त्र सोते थे, वह इतने ज्यादा कामुक थे कि ब्रम्हचर्य के प्रयोग और संयम परखने के बहाने चाचा अमृतलाल तुलसीदास गांधी की पोती और जयसुखलाल की बेटी मनुबेन गांधी के साथ सोने लगे थे। ये आरोप बेहद सनसनीखेज है, क्योंकि किशोरावस्था में कुसुम भी गांधी की अनुयायी रही हैं। कुसुम, दरअसल लंदन में पार्लियामेंट स्क्वॉयर पर गांधी की प्रतिमा लगाने का विरोध करते हुए यह बात कही थी। वैसे तो महात्मा गांधी की सेक्स लाइफ पर अब तक अनेक किताबें लिखी जा चुकी हैं. जो खासी चर्चित भी हुई हैं। मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जेड ऐडम्स ने पंद्रह साल के गहन अध्ययन और शोध के बाद 2010 में “गांधी नैकेड ऐंबिशन” लिखकर सनसनी फैला दी थी। किताब में गांधी को असामान्य सेक्स बीहैवियर वाला अर्द्ध-दमित सेक्स-मैनियॉक कहा गया है। किताब गांधी के जीवन में आई लड़कियों के साथ उनके आत्मीय और मधुर रिश्तों पर खास प्रकाश डालती है, मसलन गांधी नग्न होकर लड़कियों और महिलाओं के साथ सोते थे और नग्न स्नान भी करते थे। वहीं देश के सबसे प्रतिष्ठित लाइब्रेरियन गिरिजा कुमार ने गहन अध्ययन और गांधी से जुड़े दस्तावेजों के रिसर्च के बाद 2006 में “ब्रम्हचर्य गांधी ऐंड हिज वीमेन असोसिएट्स” में डेढ़ दर्जन महिलाओं का ब्यौरा दिया है जो ब्रम्हचर्य में सहयोगी थीं और गांधी के साथ निर्वस्त्र सोती-नहाती और उन्हें मसाज करती थीं। इनमें मनु, आभा गांधी, आभा की बहन बीना पटेल, सुशीला नायर, प्रभावती (जयप्रकाश नारायण की पत्नी), राजकुमारी अमृतकौर, बीवी अमुतुसलाम, लीलावती आसर, प्रेमाबहन कंटक, मिली ग्राहम पोलक, कंचन शाह, रेहाना तैयबजी शामिल हैं. प्रभावती ने तो आश्रम में रहने के लिए पति जेपी को ही छोड़ दिया था। इससे जेपी का गांधी से खासा विवाद हो गया था। तकरीबन दो दशक तक गांधी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे निर्मल कुमार बोस ने अपनी बेहद चर्चित किताब “माई डेज विद गांधी” में राष्ट्रपिता का अपना संयम परखने के लिए आश्रम की महिलाओं के साथ निर्वस्त्र होकर सोने और मसाज करवाने का जिक्र किया है। निर्मल बोस ने नोआखली की एक खास घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है, “एक दिन सुबह-सुबह जब मैं गांधी के शयन कक्ष में पहुंचा तो देख रहा हूं, सुशीला नायर रो रही हैं और महात्मा दीवार में अपना सिर पटक रहे हैं.” उसके बाद बोस गांधी के ब्रम्हचर्य के प्रयोग का खुला विरोध करने लगे. जब गांधी ने उनकी बात नहीं मानी तो बोस ने अपने आप को उनसे अलग कर लिया। इतिहास के तमाम अन्य उच्चाकाक्षी पुरुषों की तरह गांधी कामुक भी थे और अपनी इच्छा दमित करने के लिए ही कठोर परिश्रम का अनोखा तरीका अपनाया. ऐडम्स के मुताबिक जब बंगाल के नोआखली में दंगे हो रहे थे तक गांधी ने मनु को बुलाया और कहा “अगर तुम मेरे साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा कत्ल कर देते। आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें। ऐडम्स के मुताबिक गांधी ने खुद लिखा है कि नहाते समय जब सुशीला मेरे सामने निर्वस्त्र होती है तो मेरी आंखें कसकर बंद हो जाती हैं। मुझे कुछ भी नजर नहीं आता, मुझे बस केवल साबुन लगाने की आहट सुनाई देती है। मुझे कतई पता नहीं चलता कि कब वह पूरी तरह से नग्न हो गई है और कब वह सिर्फ अंतःवस्त्र पहनी होती है।
यही नहीं ब्रिटिश इतिहासकार के मुताबिक गांधी के ब्रह्मचर्य के चलते जवाहरलाल नेहरू उनको अप्राकृतिक और असामान्य आदत वाला इंसान मानते थे तो वही सरदार पटेल और जेबी कृपलानी ने उनके व्यवहार के चलते ही उनसे दूरी बना ली थी। गिरिजा कुमार के मुताबिक पटेल गांधी के ब्रम्हचर्य को अधर्म कहने लगे थे, यहां तक कि पुत्र देवदास गांधी समेत परिवार के सदस्य और अन्य राजनीतिक साथी भी खफा थे। बीआर अंबेडकर, विनोबा भावे, डीबी केलकर, छगनलाल जोशी, किशोरीलाल मश्रुवाला, मथुरादास त्रिकुमजी, वेद मेहता, आरपी परशुराम, जयप्रकाश नारायण भी गांधी के ब्रम्हचर्य के प्रयोग का खुला विरोध कर रहे थे। इससे साबित होता है कि गांधी न केवल जाति व्यवस्था और नस्लवादी के पोषक थे, बल्कि वे गंदे चरित्र वाले असभ्य और जाहिल इंसान भी था।

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