बुधवार, 24 जनवरी 2018

26 जनवरी संविधान दिवस पर बाबा साहब को श्रद्धांजलि


तेरी जय हो भीम महान, बना दिया भारत का संविधान।




आओ जाने संविधान से जुड़े संघर्ष, कहानियां और तथ्य और जाने कैसे बाबा साहब को रोकने की कोशिश की गयी।
सब बाधाओ को लाँगकर जब बाबा साहेब संविधान सभा का सदस्यता चुनाव जीत गये तब उनकी प्रतिभा को देखकर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को बताया कि उन्हें संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है और कहा कि संविधान बहुत आसान व अच्छा बने तब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा आपकी आज्ञा का पालन होगा, राष्ट्रपति महोदयश् ! संविधान निर्मात्री समिति में सात सदस्य थे। उनमें से अचानक एक की मृत्यु हो गई, एक सदस्य अमेरिका में जाकर रहने लगे और एक सदस्य ऐसे जिनको सरकारी काम काज से ही अवकाश नहीं मिल पाया था। इनके अतिरिक्त दो सदस्य ऐसे थे जो अपना स्वास्थय ठीक न रहने के कारण वे सदा दिल्ली से बाहर रहते थे। इस प्रकार संविधान निर्मात्री समिति के पाँच ऐसे थे जो समिति के कार्यों में सहयोग नहीं दे पाये थे।
डॉ.भीमराव अम्बेडकर ही एक ऐसे सदस्य थे जिन्होंने अपने कंधों पर ही संविधान निर्माण का कार्यभार संभाला था। जब संविधान बन गया तब एक.एक प्रति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद एवं पंडित जवाहर लाल नेहरू को दी। उन्हें संविधान सरल अच्छा लगा। सभी लोग डॉ. भीमराव अम्बेडकर की तारीफ करने लगे व बधाईयाँ दी गई। एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने कहा. डॉ.् भीमराव अम्बेडकर अस्वस्थ थे, फिर भी बड़ी लगनए मन व मेहनत से काम किया, वे सचमुच बधाई के पात्र हैं। डॉ.भीमराव अम्बेडकर संविधान के शिल्पकार हैंए नया संविधान इनकी देन है। इतिहास में इनका नाम स्वर्ण.अक्षरों में लिखा जावेगा। वे महापुरूष हैं, जब तक भारत का नाम रहेगाए तब तक अम्बेडकर का नाम भी भारतीय संविधान में हमेशा जुड़ा रहेगा। ऐसा संविधान शायद दूसरा कोई नहीं बना पाता, हम इनके आभारी रहेंगे।
26 जनवरी सन् 1950 के दिन यह नया संविधान भारतीय जनता पर लागू किया गया। उस दिन गणतंत्र दिवस का समारोह मनाया गया, वही संविधान आज भी लागू है।
संविधान निर्माण की झलकिया 
1-संविधान प्रारूप समिति की बैठकें 114 दिन तक चली ।
2- संविधान निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा ।
3ण् संविधान निर्माण कार्य पर कुल 63 लाख 96 हजार 729 रूपये का खर्च आया ।
4-संविधान के निर्माण कार्य में कुल 7635 सूचनाओं पर चर्चा की गई ।
5-26 जनवरी 1950 के भारत का संविधान लागू होने के बाद से अब तक हुए अनेक संशोधनों के बाद भारतीय संविधान में 440 से भी अधिक अनुच्छेद व 12 प्रविशिष्ट हो चुके हैं ।
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 में स्वीकार किया गया। संविधान के मायने क्या होते है, शायद उस समय भारत के लोगों को यह पता नहीं था। लेकिन दुनिया में संविधान का महत्व स्थापित हो चुका था। अमेरिका में 1779 में संविधान बन चुका था। संविधान असल में समूह में बंटे लोग जो राष्ट्र बनना चाहते हैं को मानवीय अथिकार दिलाता है। इसके तहत लोगों के लिए स्वतंत्रता, बंधुता, समानता और न्याय के लिए व्यवस्था का निर्माण किया जाता है। यह सभी मनुष्यों को समान अधिकार भी देता है और इनके बीच भेदभाव को अपराध भी घोषित करता है। 1950 के बाद विश्व के लगभग ५० देशां ने अपना संविधान बनाया, जिसमे भारत उनमे से पहले स्थान पर है और भारत का संविधान ही अन्य देशों के लिए प्रेरणा बना। हालांकि यंहा यह भी साफ कर देना होगा कि भारत की आजादी का आन्दोलन और भारत के संविधान का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है, दोनों ही अलग अलग घटनाएं है। जब सन १९२८ में साईमन कमीशन भारत आया तो उस समय कोंस्टीटूशनल सेटलमेंट की बात उठी। अंग्रेजो ने यह तय करना जरूरी समझा कि भारत को सत्ता के हस्तांतरण के बाद भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था ही लागू हो और इस पूरी प्रक्रिया में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की भूमिका प्रमुख रही। अगर हम बाबा साहेब के सम्पूर्ण जीवन को देखे तो यह साफ हो जाएगा कि वे कोंस्टीटूशनल सेटलमेंट को लेकर कितने गंभीर थे। उनका मानना था कि देश मे सामाजिक क्रांति तभी स्थाई होगी जब संवैधानिक गारंटी होगी। वह संविधान के जरिये देश में समानता स्थापित करना चाहते थे। वह चाहते थे भारत में असमानता खत्म हो और समानता आये और लोगो को उनका मौलिक अधिकार मिले। संवैधनिक तौर पर भारत में जाति और वर्ण जैसी व्यवस्था और मनुस्मृति के तहत बनाये गये कानून का खत्म होने का वक्त आ गया था।
ज्योतिबा फुले, शाहुजी महाराज, गाड़गे बाबा, नारायण गुरु, पेरियार और बाबासाहब डॉ आंबेडकर के माध्यम से जो सामाजिक क्रांति आई थी, उसे एक पहचान चाहिए थी। इसके लिए भारत में एक संविधान की जरूरत थी। हालांकि यंह यह कहना ज्यादा सही होगा कि भारत में राजनैतिक क्रांति की बजाय सामाजिक क्रांति की वजह से संविधान बना है। क्योंकि जो लोग राजनैतिक क्रांति में सक्रीय थे वो नहीं चाहते थे कि भारत में संविधान हो, वह बिना संविधान के ही भारत देश को चलाना चाहते थे। लेकिन भारत में सामाजिक क्रांति के कारण इतने ज्यादा मजबूत थे कि राजनैतिक लोग चाह कर भी संविधान निर्माण रोक नहीं पाए। डॉ आंबेडकर जी के लगातार सक्रिय रहने के कारण अंग्रेज लोग भी भारत में मौजूद असमानताओं को समझ चुके थे और वे आंबेडकर तथा संविधान के पक्ष में थे। इस तरह से भारत में संविधान बनने की प्रक्रिया पर मोहर लगी। इन सारी चीजो की वजह से 9 अगस्त 1946 को 296 सदस्यों की संविधान सभा बनी। देश का विभाजन होने के कारण इसमें से 89 सदस्य चले गये। इस तरह भारतीय संविधान सभा में 207 सदस्य बचे और इनकी पहली बैठक में सिर्फ 207 सदस्य ही उपस्थित थ,े इसमें से बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर पहली बार 9 दिसंबर 1946 को बंगाल से चुनकर आये मुस्लिम वोट द्वारा और इसके तुरंत बाद विभाजन हो गया, जिसके बाद बाबा साहेब जिस संविधान परिषद की सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे उसे पाकिस्तान को दे दिया गया। इस तरह से बाबा साहेब का निर्वाचन रद्द हो गया। विभाजन की साजिश इसलिए भी रची गई ताकि डॉ अम्बेडकर संविधान सभा में नहीं रह पाए। हालांकि इन सभी साजिशों को दरकिनार करते हुए बाबा साहेब दुबारा 14 जुलाई 1947 को चुनकर आये। 
असल में डा आंबेडकर जब पहली बार संविधान सभा में चुन कर आये और विभाजन के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र के पाकिस्तान में चले जाने के कारण विधान सभा का हिस्सा नहीं रहे, उस वक्त यूनाइटेड किंगडम की पार्लियामेंट में इंडियन कॉन्सिट्यूशनल असेंबली का बहुत कड़ा विरोध हुआ और विरोध को दबाने के लिए नेहरु को यूके के नेताओं को समझाने के लिए ब्रटेन जाना पड़ा था। इस विरोध की गंभीरता को इससे समझा जा सकता है कि कद्दावर नेता चर्चिल ने यंहां तक कह दिया कि भारतीय लोग संविधान बनाने लायक नहीं है। इन लोगों को आजादी देना ठीक नहीं होगा। रही ब्रिटिश अल्पसंख्यको के हितो को लेकर काफी गंभीर थे। तात्कालिक स्थिति यूके पार्लियामेंट का कहना था कि अगर भारत में कांस्टिट्यूशनल स्टेलमेंट होता है तो इसमें अल्पसंख्यको के हितो की गारंटी नहीं होगी, क्योंकि बाबा साहेब का कहना था कि इस पूरी प्रक्रिया में एसटी और एसटी नहीं हैं, खासतौर से अछूत हिन्दू नहीं है। बाबा साहेब ने इसको साबित करते हुए एसटी/एसटी के लिए सेपरेट सेफगार्ड की बात कही थी। बाबा साहेब की इस बात पर यूके के पार्लियामेंट में लम्बी बहस हुई थी। इस बहस से ये स्थिति पैदा हो गई थी कि अगर भारत में अधिकार के आधार पर, बराबरी के आधार पर अल्पसंख्यको या एसटी, एससी और ओबीसी के अधिकारो का सेटलमेंट नहीं होगा तो भारत का संविधान नहीं बन पायेगा और इसे वैधता नहीं मिलेगी और अगर संविधान नहीं बनेगा तो भारत को आजादी नहीं मिलेगी। ऐसी स्थिति में बाबा साहेब को चुनकर लाना कांग्रेस और पुरे देश की मजबूरी हो गई और इस प्रकार बाबा साहेब संविधान निर्माता के रूप में संघर्षरत रहे। बाबा साहेब अगर यूके की संसद सभा में नहीं होते तो अछूतो के अधिकारों का संवैधानिक सेटलमेंट होने की बात नहीं मानी जाती और इससे भारत के संविधान को मान्यता नहीं मिलती। जिस सामाजिक क्रांति की बदौलत भारत के संविधान का निर्माण हुआ, उसमे शाहुजी महाराज, ज्योतिबा फुले, नारायण गुरु और बाबा साहेब आम्बेडकर का बहुत बड़ा योगदान था। इन तमाम महापुरुषों के संघर्षो के बाद बाबा साहेब आम्बेडकर के जरिये भारत में जो सामाजिक क्रांति आई वह एकमात्र कारण है जिससे भारत कइ समविधान का निर्माण हुआ। यह नहीं होता और संविधान नहीं होता तो लोगो के मूलभूत अधिकारों की गारंटी भी न होती। यानी बोलने की, लिखने की, अपनी मर्जी से पेश चुनने की एसंगठन खड़ा करने की, मीडिया चलाने की आजादी नहीं होती। जातिगत भेदभाव को गलत नहीं माना जाता, छुवाछुत को कानून में अपराध घोषित नहीं किया जाता, स्त्री स्वतंत्रता की बात कौन करता। भारतीय संविधान का इतिहास ग्रानविल ऑस्टीन ने एक किताब लिखी है जिसमे उन्होंने डॉ.आंबेडकर को भारतीय संविधान सभा का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति माना है। भारतीय संविधान एक बहुत लम्बी प्रक्रिया के बाद बना। 30 अगस्त 1947 को इसकी पहली बैठक हुई। संविधान बनाने के लिए कांस्टिट्यूट एसंबली को 141 दिन काम करना पडा। शुरुवाती दौर में इसमें 315ं आर्टिकल पर विचार किया गया, 13 आर्टिकल अनुसूचि तैयार किया गया। इसमे 7635 संसोधनो का प्रस्ताव किया गया था, जिसमे 2473 संसोधन सभा में लाये गए। 395 आर्टिकल और 8 अनुसूचि के साथ भारत के लोगो ने भारत के संविधान को अपने प्रिय मुक्तिदाता डॉ आंबेडकर के जरिये 26 नवंबर को भारत को सुपुर्द किया। आज भारत के संविधान में 448 आर्टिकल है। असल में नम्बरों के हिसाब से यह आज भी 395 ही है, लेकिन बीच में एक, दो या तीन के जरिये बढता गया। इसके 22 भाग 12 अनुसूचि है। संविधान बनने के बाद अब तक संसद के सामने 120 संसोधन लाये गए हैं, लेकिन इनमे 98 संसोधन ही स्वीकारे गए। 
अगर अन्य देशो की तुलना करे तो इंग्लैंड के लोगो को भी अधिकार टुकडो में मिला। इंग्लैंड की महिलाओं को वोटिंग का अधिकार 1920 में मिला। इसी तरह अमेरिका का संविधान 1779 में ही बन गया था लेकिन वंहां के संविधान में काले लोगो को नागरिकता नहीं थी। 1865 में जब संविधान में 13वा संसोधन लाया गया तब अमेरिका के काले लोगो को नागरिकता मिली। यंहां यह बताना जरूरी है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 1857 में काले लोगो को ड्रेड स्काउट केस में अमेरिकी नागरिक मानने से इनकार कर दिया तब। इब्राहम लिंकन ने 1865 में 13वा संसोधन लेकर आये और काले लोगों को नागरिकता का अधिकार दिया। जबकि भारत में संविधान में पहली ही बार में यह घोषित कर दिया गया कि सभी मनुष्य समान हैं। जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण, जन्म, स्थान आदि से परे देश के सभी मनुष्य सामान हैं। ऐसा संविधान में लिखा है और सबको एक सूत्र में पिरोते हुए सभी को भारतीय माना है और हिन्दुस्तान शब्द को मिटा दिया।
2500 सालो का इतिहास जो गुलामी का इतिहास था जो ब्राह्मणी मनुस्मृति जो ब्राह्मणों का संविधान था उसे बाबा साहेब ने 25 दिसंबर 1927 को जलाया था और 26 नवम्बर 1949 को नया संविधान स्थापित किया जो समानता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित है। इसकी सुरक्षा हमारा प्रथम कर्तव्य है और ब्राह्मणों की तीखी नजर इस पर है वे इसे खत्म कर फिर से मनुस्मृति की कल्पना करते है और कर रहे है। इस देश में जो शासक बनने का सपना तक नहीं देख पाते थे आज वे इस संविधान के अधिकार द्वारा राजा बन रहे। जिस देश में रानी के पेट से राजा बनते थे उस देश में अब संविधान से राजा बनने लगे। इस तरह देश को नई दिशा मिली। 25 नवंबर 1949 को बाबा साहेब ने संविधान सभा में भाषण देते हुए कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो वह अपने आप लागू नहीं होता है, उसे लागू करना पडता है। ऐसे में जिन लोगो के ऊपर संविधान लागू करने की जिम्मेदारी होती है, यह उन पर निर्भर करता है कि वो संविधान को कितनी इमानदारी और प्रभावी ढंग से लागू करते है। इस लेख को जितनी मेहनत से लिखा गया उससे कंही ज्यादा मन से आपने पड़ा और संविधान को आपने सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद, जय मूलनिवासी
-राजकुमार (सहायक संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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