आज गणतंत्र दिवस है, हमारे देश के सभी सरकारी गौर सरकारी विभागों, स्कूलों कालेजोँ में यह दिवस 26 जनवरी “गणतंत्र दिवस” बड़े धूमधाम से तैयारियों के साथ बड़ी – बड़ी झाँकिया, रैलीयाँ निकालकर मनाया जाता है। लेकिन क्यों मनाया जाता है? जानने पर एक ही जवाब मिलता है की, इस दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था। लेकिन उस संविधान के रचियता का नाम दूर – दूर तक कोई नही लेता। जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था, तब मुझे इस दिवस को लेकर बड़ी उत्सुकता थी, और इसके बारे में गहनता से जानना चाहता था। उस समय मैंने भारतीय इतिहास को पढ़ना जरूरी समझा, मेरे सामने एक नाम डाँ. आंबेडकर बार – बार आ रहा था। 15 अगस्त सन् 1947 को हमारा देश विदेशी हुकुमत से आजाद हुआ, हमारे देश ने भले ही ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता पाली थी, लेकिन दूसरे देशों की तरह भारत का उस समय तक कोई संविधान नहीं था। हमारे देश का दर्जा एक ब्रिटिश उपनिवेश का ही था। यहाँ अंग्रजों का आधिपत्य समाप्त नहीं हुआ था। सारे कानून अंग्रेजों के थे और लॉर्ड माउंटबेटन देश के गवर्नर जनरल थे। यह वह समय था जब हमारे देश को संविधान, कानून की अत्यंत आवश्यकता थी, आजादी के बाद स्वतंत्र राष्ट्र होने पर डां राजेन्द प्रसाद को सबसे पहले भारत का राष्ट्रपति बनाया गया। साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री पद कि शपथ दिलाई गयी। आजादी के समय बाबा साहेब डां अम्बेडकर विपक्ष के नेता थे, बावजूद इसके उनकी काबिलयत के बल पर उन्हें स्वतंत्र भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया गया, राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद का कहना था की हम आजाद तो हो गए, लेकिन आजाद राष्ट्र को चलाने के लिए हमें स्वंय के संविधान की आवश्यकता होगी, जिसका पालन करके राष्ट्र पर शासन किया जा सके।
इस मुद्दे पर विभिन्न नेताओं के अलग – अलग विचार थे, पंडीत नेहरू जो प्रधान मंत्री थे, वे चाहते थे किसी अंग्रेज (विदेशी) से संविधान निर्माण कराया जाए जो अनूठा और श्रेष्ठ हो, तब नेहरू ने इस विषय पर गाँधी से विचार विमर्श किया, तब गाँधीने कहा – तुम्हारे पास देश में सबसे बड़ा कानून एंव संविधान का विशेषज्ञ डाँ. भीमराव आंबेडकर है तब इधर-उधर जाने की क्या जरूरत? उनके बाद नेहरू ने राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से बात की तो उन्होंने बताया कि ‘‘डाँ. आंबेडकर को देश विदेश के सभी संविधानों की जानकारी बहुत अच्छी तरह से है, इसलिए मैं चाहता हूँ कि भारत का नया संविधान डाँ. आंबेडकर ही बनायें, क्योंकि इन्होंने हर देश में रहकर कानून को अच्छी तरह देखा परखा है, इनसे अच्छा दूसरा व्यक्ति और कोई नहीं, जो कानून का निर्माण कर सके’’ सभी नेताओं के विचार विमर्श के बाद डाँ. आंबेडकर को संविधान ड्राफ्टिँग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। साथ ही डाँ. आंबेडकर को कहा गया की संविधान सरल और शक्तिशाली हो। संविधान निर्माण समिति में सात सदस्य थे। उनमें से अचानक एक की मृत्यु हो गई। एक सदस्य अमेरिका में जाकर रहने लगे और एक सदस्य ऐसे जिनको सरकारी काम काज से ही अवकाश नहीं मिल पाया था। इनके अतिरिक्त दो सदस्य ऐसे थे जो अपना स्वास्थय ठीक न रहने के कारण वे सदा दिल्ली से बाहर रहते थे। इस प्रकार संविधान निर्माण समिति के पाँच ऐसे थे जो समिति के कार्यों में सहयोग नहीं दे पाये थे। डाँ. आंबेडकर ही एक ऐसे सदस्य थे, जिन्होंने अपने कंधों पर ही संविधान निर्माण का कार्यभार संभाला था। जब संविधान बन गया तब एक – एक प्रति डाँ. राजेन्द्र प्रसाद एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू को दी । उन्हें संविधान, सरल और सर्वश्रेष्ठ लगा। सभी लोग डॉ. भीमराव आंबेडकर की तारीफ करने लगे व बधाईयाँ दी गई। तभी एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमें डाँ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा- ”डाँ. आंबेडकर अस्वस्थ थे, फिर भी बड़ी लगन, मन व मेहनत से काम किया। वे सचमुच बधाई के पात्र हैं। ऐसा संविधान शायद दूसरा कोई नहीं बना पाता, हम इनके आभारी रहेंगे” बाबासाहेब डाँ. आंबेडकर एक अत्यंत प्रखर देशभक्त, कानूनविद्ध, अर्थशास्त्री,
समाजशास्त्री, वाक्ता, दार्शनिक और प्रबल राष्ट्रवादी विचारक थे। जिंदगी के आखिरी पलोँ तक बाबासाहेब मनुष्य के मध्य समता – समानता और भाईचारे का सूत्रपात करने लहर प्रवाहित करने में लगे रहे। प्रजातंत्र और समानता उनके लिए पर्यायवाची शब्द बिल्कुल नहीं रहे। उनके अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था के तहत मताधिकार का अधिकार उत्पीड़कों में से एक को चुन लेने का अधिकार मात्र है। वास्तविक आवश्यकता एक ऐसे समाजकी संरचना करने की है, जिसके अंतर्गत शोषक और शोषित, उत्पीड़क और उत्पीड़ित वर्ग का फर्क स्वतः समाप्त हो जाए। ऐसे आर्थिक सामाजिक समत्व से परिपूर्ण समाज में प्रजातंत्र अपने वास्तविक रंग – रुप में प्रकट होगा।
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