रविवार, 5 जनवरी 2020

‘जय भीम’ शब्द के जनक बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
‘जय भीम’ शब्द के जनक बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले के जन्म दिन पर 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को हार्दिक शुभेच्छाएं.
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‘‘जय भीम’’ शब्द आज मूलनिवासी बहुजन समाज की अस्मिता और एकता का प्रतीक बन चुका है. हर मूलनिवासी बहुजन युवा के जुबान पर केवल जय भीम का ही नाम आता है. मूलनिवासी बहुजन समाज के हर लोग उत्साह से ‘जय भीम’ के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं. लेकिन, क्या किसी को पता है कि ‘‘जय भीम’’ शब्द की उत्पत्ति कब, कहां और किसने की? बता दें कि ‘‘जय भीम’’ शब्द की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई. ‘‘जय भीम’’ शब्द के जनक बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले थे, जो 1921 में बाबासाहब डॉ अम्बेडकर के साथ सामाजिक आंदोलन में साथ थे. बाबू हरदास का परिवार पढ़ा-लिखा था. पिता लक्ष्मण उरकुडा नगराले रेलवे विभाग में बाबू थे. उस समय देश में वर्णभेद और जाति भेद के कारण भीषण सामाजिक और आर्थिक विषमता फैली हुई थी. सन 1922 में महाराष्ट्र के राष्ट्र संत चोखामेला के नाम पर उन्होंने एक छात्रावास शुरू किया. 1924 में उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस खरीदी थी और सामाजिक जागृति के लिए ‘‘मंडई महात्म्य’’ नामक किताब लिखी. साथ ही ‘चोखामेला विशेषांक’ भी निकाला था.

बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले ने डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर के आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे. 1930 में नासिक कालाराम मंदिर सत्याग्रह और 1932 में पूना पैक्ट के दौरान उन्होंने डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ‘जय भीम’ का संबोधन पहली बार उनके मन में एक मुस्लिम व्यक्ति को देखकर आया. क्योंकि, मुस्लिम कार्यकर्त्ता एक दूसरे मुस्लिम भाई से ‘अस्सलाम-अलेकुम’ कहते थे. इसके जवाब में दूसरे मुस्लिम भाई भी ‘अलेकुम-सलाम’ कहते थे. इसे देखकर बाबू हरदास ने सोचा कि मुस्लिम भाईयों की तरह हमें भी एक दूसरे अभिवान करना चाहिए. लेकिन, अभिवादन में क्या कहना चाहिये? उनके मन में आया है कि हम लोग भी एक दूसरे से ‘‘जय भीम’’ का अभिवादन करेंगे. उन्होंने कार्यकर्त्ताओं से कहा, मैं ‘जय भीम’ कहूँगा और आप ‘बल भीम’ कहना. उस समय से ये अभिवादन शुरू हो गया. परन्तु, बाद में ‘बल भीम’ प्रचलन से गायब हो गया, केवल ‘जय भीम’ ही प्रचलन में रहा. तब से लेकर आज तक ‘जय भीम’ आभिवादन चल रहा है जो 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को एक एक धागा में पिरोने का काम कर रहा है. 1933-34 में बाबू हरदास ने समता सैनिक दल को ‘जय भीम’ का नारा नागपुर में दिया था. इस तरह से ‘जय भीम’ हर जगह छा गया.

‘जय भीम’ के जनक बाबू हरदास लक्ष्मण नगराळे का जन्म 6 जनवरी 1904 को नागपूर जिले के कामठी तहसील में हुआ था. बाबू हरदास शुरू से ही डॉ.बाबासाहब अंबेडकर के आंदोलन से जुडे हुए थे. इंग्लैंड के गोलमेज परिषद में जब गांधी ने कहा था कि अस्पृश्यों के नेता हम है डॉ.अंबेडकर नही, तो उस समय बाबू हरदास ने हजारों टेलीग्राम इंग्लैंड भेजकर कहा कि अस्पृश्यों के नेता गांधी नहीं डॉ.बाबासाह अंबेडकर है. ऐसा कहकर अंग्रेजों के मन में डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के प्रति सहानुभूति पैदा की. अकोला में जब स्वतंत्र मजदूर पक्ष की बैठक थी तब कामठी में उनके पुत्र का देहांत हुआ. तब उन्होंने कहा मेरा समाज दुःखी है और उनके दुःख दूर करने के लिए मैंने बैठक में हिस्सा लिया है. मेरे पुत्र का अंतिम संस्कार मेरा समाज करेंगा. यह बोलकर उन्होंने अपनी निष्ठा जाहीर की. अंत में 12 जनवरी 1939 को बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले भी इस दुनिया से विदा हो गये. उस दिन उनको श्रद्धांजलि देते समय डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा था कि ‘‘बाबू हरदास के रूप में मेरा दाहिना हाथ चला गया’’ डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर के आंदोलन को आगे बढ़ाने और ‘जय भीम’ से देश विदेश का कोना-कोना गूंज उठाने वाले ‘जय भीम’ शब्द के जनक बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले के जन्म दिन पर 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को हार्दिक शुभेच्छाएं.


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