यह जो संयुक्त निर्वाचन है, यह गांधी जी के द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों के उपर थोपा गया षड्यंत्र है।इस समझने के लिए हमें तुलनात्मक तरीके से समझना होगा। ये जो भी ब्राह्मणों के संगठन है, इसे देश के आधुनिक काल में ब्राह्मणों ने संगठन बनाए। कांग्रेस का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया। कम्युनिष्टों का संगठन भी ब्राह्मणों ने बनाया। उस समय के समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी का संगठन फैजाबाद के आचार्य नरेन्द्रदेव ने बनाया जो ब्राह्मण थे और अच्यूत पटवर्धन पूना के ब्राह्मण थे। अशोक मेहता गुजरात के ब्राह्मण थे। बहुत सारे लोगों को इतिहास की जानकारी नहीं है। ये जो समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी बनाई गई थी। महाराष्ट्र में प्रजा समाजवादी पार्टी सन्त जोशी नामक ब्राह्मण ने बनाई थी। कांग्रेस का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, कम्युनिष्टो का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, सोशलिस्ट का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, हिन्दू महासभा का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया, राष्ट्र सेवादल का संगठन ब्राह्मण ने बनाया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन ब्राह्मणों ने बनाया और हर जगह पहल ब्राह्मणों की है। ब्राह्मण लोगों ने योजना बनाकर पहल की और बाकी के जो द्विज जाति के लोग जिसे उ.प्र. में राजपूत कहे जा सकते है, वे ब्राह्मणों के संगठन में शामिल हुए और उनके पिछलग्गू हुए। 3.5 प्रतिशत ब्राह्मणों के 4 राष्ट्रीय स्तर की रिकागनाईज पार्टियाँ है। 6 प्रतिशत क्षत्रिय है। देशभर में उनकी एक भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। वैश्यों की भी यहीं स्थिति है।
अभी केजरीवाल जो हरियाण का वैश्य जो हिसार जिले का है। पहली बार ऐसा हुआ के बीजेपी और कांग्रेस से जो लोग दुखी है, उनके लिए तो ब्राह्मणों ने एक और सप्लीमेन्ट्री (पूरक) योजना बनाया कि लोग अगर कांग्रेस से दुखी है, बीजेपी से भी दुखी है तो तीसरी पार्टी भी द्विजों की होनी चाहिए। उन्होंने ऐसा योजना बनाकर किया। यहां तक कि केजरीवाल ने अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया। यह भी बात अब प्रमाणित हो गई। क्योंकि अन्ना-हजारे द्विज नहीं है। वह कुर्मी जाति का है और बाबा रामदेव अहिर (यादव) है। तो उन लोगों का इस्तेमाल इन लोगों ने किया। ये सारे ब्राह्मणों के संगठन है। यह उदाहरण मैंने यह संयुक्त निर्वाचन प्रणाली समझाने के लिए दिया। जब यह ब्राह्मणों के नीचे लगने वालों के संगठन होते है। तो ये क्या करते है? ये एससी के आदमी को यदि बाबा साहब अम्बेडकर ने पष्थक निर्वाचन हासिल किया था जो उसमें एससी के लोगों को ही वोट देना और एससी के लोगों का ही चुनाव क्षेत्र होता, तो केवल एससी के लोगों को वोट देने का अधिकार होता और चुनाव भी लड़ने का अधिकार होता। तब एससी में जो सबसे लड़ाकू होता, वहीं चुनकर जाता है। लेकिन हुआ क्या? गांधी जी ने पूना-पैक्ट किया और एससी के लोगों के उपर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली थोप दिया। परिणाम क्या हुआ? ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, का नेतष्त्व क्या करते है? वे एससी में किसी एक आदमी को नामित करते है। ये जो ब्राह्मणों की पार्टियाँ है, जिसका सपोर्ट क्षत्रिय और वैश्य कर रहे है। उन्हें नामित करने के बाद ये सारे मिलकर मनी, मीडिया और माफिया की मदद से जो एससी का आदमी ब्राह्मणों द्वारा नामित है उसे चुनावकर लाते है। यदि एससी का आदमी ब्राह्मणों द्वारा नामित किया हुआ आदमी चुनवाकर लाया जाता है तो विधानसभा में ब्राह्मणों की तरफ देखकर बोलेगा अभी तो देखकर बोलने का भी मामला नहीं है कि विधानसभा में कौन बोलना चाहिए और कौन नहीं विधानसभा में बोलना चाहिए। ये पार्टी के सांसदीय दल का जो नेता होता है, वह निर्धारित करते है। उन्हें समय ही बोलने के लिए नहीं दिया जाता है। ये जो लोग है, ये नामित लोग है। संयुक्त निर्वाचन प्रणाली में वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त कर दिया गया और नोमिनेटेड प्रतिनिधित्व लागू कर दिया गया। जिसको नामित किया गया है, वह प्रतिनिधि नहीं है जिस समाज और जाति में वह पैदा हुआ। बल्कि जिसने उसको नामित किया वह उसका और उसके पार्टी का प्रतिनिधि है। उसे यह कहा जाता है कि यदि किसी एससी के एम.पी या एम.एल. पार्टी हाईकमान के पास कोई सामाजिक मुद्दा लेकर गये तो उसको बोलते है कि आपका कोई व्यक्तिगत मामला है, आपको पेट्रोल पम्प चाहिए। पेट्रोल पम्प है तो गैस एजेन्सी या सी.एन.जी पम्प वाला पम्प ले लो, मगर समाज की बात मत करो। यदि किसी एम.एल.ए, एमपी. ने ज्यादा दबाव बनाया तो कहते है कि क्या आपको अगले चुनाव में टिकट नहीं चाहिए तो वो अपनी औकात पर आ जाते है। वह दुबारा जाता ही नहीं है। यदि इसके बाद भी वह आ गया तो आने से पहले ही उसकी फाइल तैयार करते है। पहले उसे वह फाइल पढ़ने के लिए देते है कि तुमने ये अवैध काम किया, ये भ्रष्टाचार किया, ये ऐसे किये, वह वैसे किये तो उसे बोलने से पहले ही डरा देते है। वह फाइल देते है। जिससे वह बोलना ही भूल जाता है। और नमस्कार बोल करके वह वापस चला जाता है। ये संयुक्त निर्वाचन से ऐसा हुआ है।
संयुक्त निर्वाचन में इसे नामित कर देते है। ये एससी का आदमी है इसे नामित करके, चुनवाकर लाते है। ऐसा हो रहा है और इससे वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त हो गया। इसके बाद एसटी आ गया। एसटी को तो पता हीं नहीं है, एससी को तो कम से कम पता है। ये पूना पैक्ट आदिवासियों को लागू कर दिया गया जबकि आदिवासियों ने मांग भी नहीं किया फिर भी लागू कर दिया। पांचवी और छवीं अनुसूची की वजह से आदिवासी अपने क्षेत्र में स्वायत शासन गठित करने का जो अधिकार उन्हें मिला था कि संसद और विधानसभा में जो भी कानून पास किया जायेगा, आदिवासी इलाके में लागू करने से पहले आदिवासियों से सहमति लेनी होगी। सहमति लिए बगैर उस इलाके में संसद, विधानसभा द्वारा पास किया गया कानून भी लागू नहीं होगा। इतना बड़ा अधिकार आदिवासियों को पांचवी और छठी अनुसूची में दिया गया है। यदि आदिवासियों के इलाके में मान लो कि कोयले की खदान है। यह खदान किसे देना है? इसकी सहमति जब तक आदिवासी की नहीं होगी, उसका आवंटन नहीं होगा। वह प्रोविजन इस पांचवी और छंवी अनुसूची में है। इसे समाप्त करने के लिए आदिवासियों की मांग न होते हुए भी उन पर संयुक्त निर्वाचन लागू कर दिया गया। जिस तरह से एससी में चममे, दलाल और भड़वे पैदा किये, उसी तरह से आदिवासियों में भी पैदा कर दिये गये और आदिवासियों में वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त कर दिया गया। उसके बाद ओबीसी की ले लो। ओबीसी में संयुक्त निर्वाचन कानूनन लागू नहीं है। इन लोगों ने दूसरा रास्ता निकाला कि ओबीसी पार्टी लेबल (स्तर) पर लागू कर दिया। जो पंचायत राज कानून है, जिसे राजीव गांधी ने बनाया, यह निचले स्तर पर जैसे ग्राम पंचायत है, तालुका पंचायत है, नगर पंचायत है, जिला पंचायत है, नगर पालिका है, महानगर पालिका है और उसमें पंचायत राज कानून लागू किया। एससी और एसटी को जो संयुक्त निर्वाचन लागू है, वह ओबीसी को पंचायत राज में लागू कर दिया। पंचायत राज में ओबीसी का नेतष्त्व समाप्त कर दिया। ओबीसी में निम्न स्तर पर दलाल और भड़वे पैदा करवा दिया। वे जो दलाल और भड़वे पैदा कर दिये गये, वे ब्राह्मणों की पार्टी को वोट देने के लिए, उसके बदले में उनको कमीशन मिलता है। फिर इस तरह से एक जुगाड़ बिठाया गया है कि आपको टिकट दिया जायेगा, तो इसके लिए जुगाड़ आप को एम.एल.ए और एम.पी के लिए करना होगा। आपको पंचायत, तालुका पंचायत के लिए दिया जाएगा। निम्न स्तर पर आपको क्या लूटना है? हम नहीं पूछेगें। विधानसभा में लोकसभा में उनको आपको चुनकर लाना है। ये कोई काल्पनिक बात नहीं है। ऐसा हो रहा है। पूना पैक्ट ओबीसी में भी लागू कर दिया गया है।
2010 में साढ़े आठ 52 प्रतिशत ओबीसी के लोगों की जाति आधारित गिनती होनी चाहिए, जब यह मामला हमने उठाया तो उस समय साढ़े आठ मुख्यमंत्री ओबीसी के थे। किसी मुख्यमंत्री ने जिस मंत्रिमण्डल का वह प्रमुख था। कागज में रेगुलेशन तक पारित नहीं किया कि ओबीसी की जातिआधारित गिनती होनी चाहिए। सबसे धाकड़ आदमी ओबीसी का नरेन्द्र मोदी माना जाता है। उसने भी यह काम नहीं किया। और न ही वह कर सकता है। उसे किसी ओबीसी के व्यक्ति ने पूछा कि नरेन्द्र जी आप ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो? तो नरेन्द्र मोदी ने कहा आप मुझे अकेले में मिलो। जब वह आदमी अकेले में मिला तो नरेन्द्र मोदी ने कहा कि क्या तुम मुझे मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते हो? तो आदमी ने कहा कि मैं ग्राम पंचायत का सदस्य भी नहीं हूँ, नरेन्द्र भाई मैं कैसे आपको हटा सकता हूँ? तो मोदी ने कहा कि मैं जानता हूँ कि तुम नहीं हटा सकते। लेकिन जब जाति आधारित गिनती के लिए मैं बोलूंगा तो आरएसएस के लोग क्या मुझे छोड़ेगें? क्या मुझे मुख्यमंत्री पदपर रखेगें? ये बात जिस ओबीसी के कार्यकर्ता ने बताया वह महेन्द्र भाई हमारा कार्यकर्ता है। उसने हमसे बताया कि नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहा। नरेन्द्र मोदी ओबीसी का होकर भी गुजरात के अन्दर ओबीसी के लिए कुछ नहीें कर रहा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह देश में कुछ करने वाला है क्या? हाँ अपने प्रधानमंत्री के कार्यालय के समाने एक चाय की दुकान खुलवा सकता है। इसके अलावा और कुछ नहीं करवा सकता है। उसके लिए प्रधानमंत्री के अनुमति की क्या जरूरत है। हाँ, उसके लिए तो एक चार बाई चार का का ठेला ले लो, चीनी और चायपत्ती खरीद लो और किसी भी चौराहे पर बिना किसी किराये का खड़ी कर दो। दुकान चल जाती है। उसके लिए किसी की परमीशन की कोई जरूरत नहीं है। उस समय साढ़े आठ मुख्यमंत्री थे। उनमें से किसी ने योजना आयोग को चिट्ठी नहीं लिखी, जनगणना कमीशन को कोई चिट्ठी नहीं लिखी, प्रधानमंत्री को कोई चिट्ठी नहीं लिखी और अखबार में किसी मुख्यमंत्री ने बयान तक नहीं दिया। नितीश कुमार ने एक अखबार में बयान दिया था। वह भी दबी जबान से, वह भी दुबारा हमेशा के लिए भूल गया। उनकी बीजेपी के समर्थन के बिना सरकार चल रही है। तो अभी जनगणना कर सकता है। लेकिन वह उसकी औकात नहीं है, नहीं कर सकता। ये सारे उदाहरण इस बात को सिद्ध करते हेै कि ये सब मुख्यमंत्री ओबीसी के हैं, लेकिन ये ओबीसी के वास्तविक प्रतिनिधि नहीं है। 52 प्रतिशत ओबीसी में भी संयुक्त निर्वाचन प्रणाली लागू कर दिया गया है। अब माइनॉरिटी की बात ले लो। माईनॉरिटी में सबसे बड़ी माइनॉरिटी मुसलमानों की है। इसी तरह से सभी माइनारिटी की दशा है। मुसलमानों का आजकल जो कांगे्रस की तरफ से प्रतिनिधित्व करते है। जैसे गुलाम नवी आजाद। मैनें कभी मुसलमानों की समस्याओं पर उन्हें बोलते हुए नहीं सुना। शायद ही मुसलमानों को मालूम हो, लेकिन मैंने अभी तक नहीं सुना। बीजेपी ने सैयद शाहनवाज हुसैन नाम का एक आदमी रखा है। जब कांग्रेस के लोग आरएसएस पर टीका-टिप्पणी करते है तो उसका जवाब देने के लिए सैयद शाहनवाज हुसैन को भेज देते हैं। मुसलमानों के लिए जब कोई मामला आता है तो उसके लिए प्रवीण तोगड़िया को भेज देते है कि ये मामला तेरा है, इसे तू देख ले। इस तरह से ओबीसी और माइनॉरिटी में भी संयुक्त निर्वाचन लागू कर दिया गया है। इस प्रकार एससी/एसटी/ओबीसी और माइनोरिटी के 85 प्रतिशत लोगों को वास्तविक प्रतिनिधित्व के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। नोमिनेटेड प्रतिनिधित्व, वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं होता है। इसका दूसरी तरफ परिणाम हुआ कि पार्टियां ब्राह्मणों की है। एससी, एसटी और ओबीसी के लोग उन पार्टियों से टिकट मांगते है। इस प्रकार उन लोगों ने हमारे लोगों को मागने वाला बना रखा है। बीजेपी, कांग्रेस और कम्युनिस्ट आदि पार्टियों के सामने हमारी औकात मांगने वाला है। हाँ थोड़ा सा एम.पी स्तर का मांगने वाला, एम.एल.ए स्तर का मांगने वाला तथा सफारी और टाई लगाकर मांगने वाला है। मांगने वाले की क्वालिटी थोड़ा ऊँची है। जैसे पहले कोई धोती पहनकर ब्राह्मणों को चाय-पानी पीलाता था, अब कोई सफारी और टाई पहन कर ब्राह्मण को पानी पिला दे तो क्या ब्राह्मण को कोई दुख होगा? उसे खुशी होगी कि सफारी और टाई पहनकर चपरासी सेवा कर रहा है। इस प्रकार एससी, एसटी और ओबीसी को उन ब्राह्मणों के पार्टियों से टिकट मांगनी पड़ती है। पार्टी ब्राह्मणों की है, इसलिए वैश्य लोगों को भी ब्राह्मणों से टिकट मांगना पड़ता है। क्षत्रियों को भी ब्राह्मणों से टिकट मांगना पड़ता है। ब्राह्मणों की पार्टियाँ है। अत: केवल ब्राह्मणों को इस देश में टिकट नहीं मांगना पड़ता है। यह इस देश की कड़वी सच्चाई है। दूसरी तरफ सारे प्रतिनिधित्व पर ब्राह्मणों ने कैंजा कर लिया है। जैसे विधायिका पर, कार्यपालिका पर, न्यायपालिका पर, मीडिया पर, गवर्नर पर, मीलिट्री पर, सेक्रेटरी पर, सचिवालय पर, वायसचान्सलर पर तथा सारी लोकत्रांतिक संस्थाओं पर ब्राह्मणों ने कैंजा कर लिया। इन सारी संस्थाओं पर ब्राह्मणों के कैंजा होने से हम कह सकते है कि इस देश में लोकतंत्र नहीं ब्राह्मणतंत्र आ गया हैं। ब्राह्मणतंत्र क्या है? प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र ही ब्राह्मणतंत्र है। ये सारा का सारा कारण संयुक्त निर्वाचन प्रणाली ने पैदा किया है। यह संयुक्त निर्वाचन प्रणाली का जन्मदाता मोहन दास करमचन्द गांधी है। इसका अर्थ है कि मोहन दास करमचन्द गांधी द्वारा कांग्रेस (जो ब्राह्मणों की पार्टी है) के माध्यम से इस देश में लोकतंत्र का सत्यानाश किया गया है। इसके लिए किसी और आदमी को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। इसके लिए पूरा का पूरा मोहनदास करमचन्द गांधी जिम्मेदार है। इसीलिए कहते रहते है कि गांधी हमारे सर पर बिठाया गया है। हम उसे उतारने की कोशिश कर रहे है। इसके पहले कि हम गांधी को सिर से उतार दें, अन्ना हजारे नाम का दूसरा गांधी हमारे सिर पर बिठाया जा रहा है। अभी पहला ही पूरी तरह से नहीं उतार पाया है और दूसरा बैठा रहे हैं। वह गांधी तो कम से कम बैरिस्टर था लेकिन दूसरा गांधी तो सातवीं फेल है। इस प्रकार संयुक्त निर्वाचन प्रणाली ने इस देश की वास्तविक लोकतंत्र को समाप्त किया है। इसका सबसे भंयकर परिणाम यह है कि सच्चा लोकतंत्र को संयुक्त निर्वाचन प्रणाली ने समाप्त कर दिया है। यदि सच्चा लोकतंत्र होता तो हमारा सच्चा प्रतिनिधि पार्लियामेन्ट और विधानसभा में हमारी गरीबी, दरिद्रता, मानसिक दरिद्रता, शिक्षा की दरिद्रता और सभी किस्म की समस्याओं के विरोध में लड़ता। यदि वह लड़ता तो हमारी सभी समस्याओं का समाधान होता। अगर हमारी दरिद्रता है, हमारी भुखमरी है, और भुखमरी से हम मर रहे है, असहाय हो गये है हम लाचार हो गये है। हम निराश हो गये है, हम कुछ करने के लायक नहीं है हम प्रतिकार विहीन है तो ये सारा का सारा प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र का परिणाम है।
मैं तो कहता हूँ कि जो एससी, एसटी और ओबीसी का आदमी उच्च न्यायलय में वकील है, उनको यह समझ में नहीं आता है, वकीलों का हमने संगठन बनाया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील उधर आये थे। मैं उन लोगों को कहा कि आप लोगों को क्या ये पता है? आप लोगों को हमें बताना चाहिए, मैं तो वकील भी नहीं हूँ। चलो बताने की छोड़ो, उन्हें पता भी है कि नहीं देश की गवर्नेन्स का जो तरीका है, वह कैसे बनाया जाता है? हमारे लोगों को पता हीं नहीं है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील जो संवैधानिक मामले देखते है, उनको ये पता होना चाहिए था, मगर उनको भी पता नहीं है। बाकी लोगों का क्या पता होगा? इस देश में जो अशिक्षा, बेरोजगारी और भुखमरी ये सारी समस्यायें हैं। इन समस्याओं का जड़ सच्चा प्रतिनिधित्व का नहीं होना है। संसद में कोई बोलता ही नहीं है।
बाबा साहब अम्बेडकर का तजुर्बा था। उन्होंने कहा कि उनके सामने लोग जाते थे और संसद में नहीं बोलते थे। इसलिए उन्होंने अंग्रेजी में एक जगह कहा कि वे केवल जम्हाई लेने के लिए ही संसद में मुँह खोलते है, अन्यथा खोलते ही नहीं है। ये बाबा साहब का तजुर्बा है। मैं अपना तजुर्बा बताता हूँ कि अगर जम्हाई लेना प्राकष्तिक कार्य नहीं होता तो इसके लिए भी नहीं खोलते। मजबूरी में खोलना पड़ता है, नहीं तो वे इसके लिए भी वे मुँह नहीं खोलते। उन्हें मुँह इस प्रकार प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र ने ब्राह्मणतंत्र निर्माण किया गया। इस ब्राह्मणतंत्र को निर्माण करने का श्रेय गांधी जी को जाता है। यह सारी सत्यानाशी के लिए गांधीजी जिम्मेवार है। जिस गांधीजी को हमारे देश के बहुत सारे लोग सिर पर ढो रहे है, वहीं गांधी आपके दुर्दशा और सारी समस्याओं का कारण है। इस देश में यदि लोकतंत्र अर्थहीन हो गया है तो उसके लिए गांधीजी जिम्मेवार हैं, पूना पैक्ट जिम्मेवार है, संयुक्त निर्वाचन प्रणाली जिम्मेवार है। यदि इस देश में एससी की कोई स्वतंत्रत आन्दोलन नहीं चल रहा है और उस स्वतंत्र आन्दोलन को दबा दिया गया है, या खत्म कर दिया गया है तो उसके लिए संयुक्त निर्वाचन प्रणाली जिम्मेदार है। इसने दलाल और भड़वों को पैदा किया है। जिनको हमारे अनपढ़ लोगों ने अपना सच्चा नेता माना लिया है। जो लड़ाई लड़ने वाले लोग थे, उनका समर्थन करने के बजाए अनपढ़ लोगों ने दलालों का समर्थन किया। परिणामत: एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी का स्वतंत्रत आन्दोलन समाप्त हो गया। अशिक्षित लोग दलालों को अपना नेता मानने लगे। एम.एल.ए और एम.पी जो दलाल हैं, उन्हें अपना नेता मानकर, लड़ने वालों लोगों का समर्थन करना बन्द कर दिया। यही आज भी हो रहा है। मैं उनका हल जानता हूँ। इस समस्या का समाधान हमने ढूढ़ निकाला है। आने वाले समय में हम इसे लागू करेंगे। मगर ये आज की परिस्थिति है।
वर्तमान व्यवस्था में हमारे समस्या का समाधान नहीं है। इसलिए हम लोगों को इसे समाप्त करना होगा। क्योंकि इसने हमारे स्वतंत्र आन्दोलन को समाप्त कर दिया। दूसरा इसने हमारे अन्दर नेतष्त्वहीनता पैदा की। क्योंकि दलालों को हमने नेता माना। दलाल नेता नहीं बन सकता, लेकिन नेता हमनें मान लिया। इसलिए समाज में नेतष्त्वहीनता निर्माण हो गई। जो समाज नेतष्त्वहीन हो जाता है, तो वह भीड़ में रूपान्तरित हो जाता है, फिर भीड़ को चलाने के लिए यानि भेड़-बकरियों को चराने के लिए किसी योग्यता या पढ़ा-लिखा होने की जरूरत नहीं है। जैसे भीड़ को आप जिधर ले जाना चाहते हो आप उधर ले जा सकते हो। ये हो रहा है। इस देश की जनता को ही नहीं, इस देश को भी दरिद्र बनाया गया। अगर मान लोग ब्राह्मण हमारे लोगों को भुखमरी के कगार पर नहीं पहुँचाएंगा तो हमारे लोग वोट बेचने के लिए कैसे तैयार होंगे? अगर हमारे लोग वोट बेचने को तैयार नहीं होंगे तो अल्पसंख्यक ब्राह्मणों को बहुसंख्यक बहुजनों के उपर राज करने का अवसर कैसे प्राप्त होगा? इसलिए ब्राह्मण हमारे लोगों को दरिद्र बनाते है और भुखमरी के कगार पर पहुँचा देते है। फिर भी कोई एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी एमपी और एमएलए उसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा सकता है। क्योंकि वो वास्तविक प्रतिनिधि नहीं है। इसने एक और भंयकर परिणाम किया कि गुलाम भारत में जोतिरवा फुले के आन्दोलन में ब्राह्मणवाद को विरोध करने की भावना थी। जोतिराव फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार और बाबा साहब के समय लोगों के अन्दर विद्रोह की भावना थी अर्थात् गुलाम भारत में विद्रोह की भावना थी मगर आजाद भारत में विद्रोह की भावना समाप्त हो गई। ये भयंकर परिणाम है। मैं जानता हूँ, क्योंकि देश में लोगों के अन्दर विद्रोह की भावना पैदा किये बगैर कोई आन्दोलन निर्माण होने वाला नहीं है। विद्रोह की भावना से समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया गया है। देश में एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों पर अत्याचार होता है, तो उनके एम.एल.ए और एम.पी. उनके उपर अत्याचार करने वालों के समर्थन में पुलिस चौकी थानों में फोन करते है। इसलिए उनके विरोध में कुछ भी कार्यवाही नहीं होता है। इसलिए अत्याचार बढ़ रहा है। ये सारे के सारे मामले संयुक्त निर्वाचन प्रणाली के माध्यम से प्रतिनिधित्व विहीन लोकतंत्र की वजह से निर्माण हुए। भारत में वास्तविक लोकतंत्र को समाप्त कर दिया गया है। इसका कारण संयुक्त निर्वाचन प्रणली है हमारे कितने पढ़े-लिखे लोगों को ये पता है? इसलिए जानकारी के लिए यह विषय रखा गया था। क्योंकि जानने के बाद मन में प्रतिक्रिया और विद्रोह पैदा हो सकते है। इसलिए हमारे तरफ से कोशिश हो रही हैं कि पहले जाने, क्योंकि जाने बगैर ही कई किस्म का हम एक्शन प्लान बनाते है। इससे कोई सफलता मिलने वाली नहीं है। इसलिए हम लोगों को ज्यादा समय लग रहा है।
अभी भी हमारे लोग दलाल-भड़वों का समर्थन करने का काम करते है। एससी, एसटी और ओबीसी के कर्मचारी और पढ़े-लिखे लोग तथा यूनियन चलाने वाले लोग ऐसा करते रहते है। ये एम.एल.ए और एम.पी. चमचा है और ये कर्मचारी एम. एल.ए और एम.पी. का चमचा है अर्थात कर्मचारी चमचों का चमचा है। क्योंकि हमारा एससी/एसटी/ओबीसी का कर्मचारी चमचे एम.एल.ए, एम.पी. के पीछे-पीछे, पीछे-पीछे घूमता रहता है। इस प्रकार जो चमचा हमारी समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। जब तक आप उसके पीछे-पीछे घूमते रहेंगे तब तक आपकी किसी भी समस्या का समाधान होने वाला नहीं होगा। समाधान कहीं और है। चमचों के पीछे घूमने में समाधान नहीं है। ये चमचा बनाने का काम भी भयंकर परिणाम में आता है। ये बहुत सारी बातें है। इसलिए हमारे पुरखों द्वारा चलाए गये स्वाभिमानी, स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर स्वतंत्र आन्दोलन को निर्माण करने से पहले सत्यानाश करने के कारण जानना होगा। क्योंकि इसे जाने बगैर आन्दोलन पुर्ननिर्माण करना संभव नहीं है। -वामन मेश्राम, राष्ट्रिय अध्यक्ष, बामसेफ
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