ताइवान में क्यों नाकाम हुई थी जापानी
बुलेट ट्रेन?
18 सितंबर 2017भारत में पिछले हफ़्ते बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया गया. इस बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की प्रासंगिकता को लेकर भारत में काफ़ी बहस हो रही है. क्या भारत में बुलेट ट्रेन कामयाब रहेगी? इससे पहले ताइवान में जापानी बुलेट ट्रेन नाकाम रही थी. जब भारत ने जापान से इस समझौते पर आख़िरी मुहर लगाई तो क्या ताइवान की नाकामी उसके जेहन में रही होगी? ताइवान ने 90 के दशक में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया था. पहली बार पांच जनवरी 2007 को यहां बुलेट ट्रेन दौड़ी. हालांकि सात साल बाद ही इस प्रोजेक्ट को ज़मीन पर उतारने वाली कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई. ताइवान में बुलेट ट्रेन की नाकामी को लेकर निक्केई एशियन रिव्यू ने पांच नवंबर 2015 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. एशियाई देशों में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के कॉन्ट्रैक्ट को हासिल करने के लिए चीन और जापान में होड़ जैसी स्थिति रहती है. भारत में भी जब बुलेट ट्रेन की बात चली तो जापान के साथ चीन ने भी दिलचस्पी दिखाई थी. निक्केई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''ताइवान ने जापानी बुलेट ट्रेन सिस्टम के आधार हाई स्पीड रेल को शुरू किया था. दुख की बात यह है कि इसे भारी नुक़सान उठाना पड़ा. ताइवानी हाई स्पीड रेल ऑपरेटर ने हाल ही में वहां की सरकार से बेलआउट पैकेज लेने का फ़ैसला किया है ताकि इस इसे संकट की निकाला जा सके.''
जब 2007 में ताइवान में बुलेट ट्रेन शुरू हुई तो उत्तर में द्विपीय शहर ताइपेई को दक्षिणी शहर काओसिउंग को जोड़ा गया था. यह डेढ़ घंटे से भी कम की यात्रा थी. ताइवान में बुलेट ट्रेन को लाने में सात जापानी कंपनियों के समूह ने मदद की थी. इसमें ट्रेडिंग हाउस मित्सुई ऐंड को., मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज दोनों ने साथ मिलकर काम किया था. ताइवान में जब यह रेल आई तो इसे लेकर वहां काफ़ी गर्व था लेकिन कुछ ही सालों में यह वित्तीय संकट में फंस गई. ताइवान में बुलेट ट्रेन को उतारने में 14.6 अरब डॉलर की लागत लगी थी. पर्यवेक्षकों का मानना है कि कंपनी शुरू से ही नुक़सान में रही. दूसरी तरफ़ निक्केई एशियन रिव्यू से जापानी कंपनी के एक प्रतिनिधि ने कहा कि इस परियोजना से जल्द फ़ायदा आसान नहीं था. आख़िर ताइवान में बुलेट ट्रेन नाकाम होने की वजह क्या रही? इस बुलेट ट्रेन से सफ़र करने वाले पैसेंजरों की संख्या काफ़ी कम रही. कंपनी की बैलेंस शीट पर सबसे ज़्यादा असर इसी से पड़ा. कंस्लटेंसी सर्वे के नतीजों और दूसरे आंकड़ों के मुताबिक कंपनी को 2008 में एक दिन में दो लाख 40 हज़ार पैसेंजर की उम्मीद थी. 2014 में हर दिन एक लाख तीस हज़ार पैसेंजर ही आए जो को अनुमान से काफ़ी कम है. कंपनी को बुलेट ट्रेन में लागत के बदले भारी ब्याज चुकाना पड़ा जिसे मुनाफ़े से संतुलित नहीं किया जा सका.
भारत के बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में जापान क़रीब 80 फ़ीसदी मदद कर रहा है. इस रकम पर भारत को 0.1 फ़ीसदी का ब्याज देना है. हालांकि भारत और ताइवान के प्रोजेक्ट की तुलना नहीं की जा सकती. अहमदाबाद और मुंबई का रूट इंडस्ट्री से भरा और व्यावसायिक इलाक़ा है. जापान को ब्याज 15 साल बाद चुकाना है और दर काफ़ी कम भी है.
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