सोमवार, 25 सितंबर 2017

बाबासाहेब ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति ने नकारे थे। नारी सशक्तिकरण (हिन्दु कोड बिल) और डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर।


नारी सशक्तिकरण (हिन्दु कोड बिल) और डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर।
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बाबासाहेब ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति ने नकारे थे। हिन्दू धर्मशास्त्रों में महिलाओं का स्थान और नियम-कानून महिलाओं के हक में नहीं हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्त्री धन , विद्या और शक्ति की देवी हैं। मनु संहिता के तीसरे अध्याय के छप्पनवें श्लोक में जहां लिखा है:- ‘‘जहाॅं नारी की पूजा होती है वहां देवता रमण करते हैं।’’ वहीं दूसरी ओर पांचवे अध्याय के 155 वें श्लोक में लिखा है:-‘‘स्त्री का न तो अलग यज्ञ होता है न व्रत होता है , न उपवास। ऋग्वेद में पुत्री के जन्म को दुःख का खान और पुत्र को आकाश का ज्योति माना गया है। ऋग्वेद में ही नारी को मनोरंजनकारी भोग्या रूप का वर्णन है तथा नियोग प्रथा को पवित्र कर्म माना गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि दुनियां की सब महिलाएं शूद्र है। हिन्दु धर्म शास्त्रों में नारी की स्थिति को लेकर काफी विराधाभास है। इस्लाम में भी महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कुरानशरीफ के आयत ( 1-4-11 ) में संपति से संदर्भित मामले में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘ एक मर्द के हिस्सा बराबर है दो औरत का हिस्सा ।’’ भारत मे महिलाओ कि बहोत दयनिय अवस्था थी। मनुस्मृती महिलाओ को किसी भी तरह की आज़ादी नहीं देती थी। इसलिए डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए। महिलाओं को और अधिक अधिकार देने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए सन 1951 में उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया। डा. अंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आयेगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरूषों के समान अधिकार दिए जाएंगे. डा. अंबेडकर का दृढ. विश्वास था कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में सामाजिक बराबरी का दर्जा मिलेगा. शिक्षा और आर्थिक उन्नति उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी. बबाबासाहब ने संविधान मे महिलाओं को सारे अधिकार दिये लेकिन अकेला संविधान या कानून लोगों की मानसिकता को नहीं बदल सकता, पर सच है कि यह परिवर्तन की राह तो सुगम बनाता ही है। हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने के लिए देश के पहले कानून मंत्री के रूप में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया।

दरअसल, हिंदू कोड बिल पास कराने के पीछे आंबेडकर की हार्दिक इच्छा कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांत स्थापित करने की थी, जिनका उल्लंघन दंडनीय अपराध बन जाए। मसलन, स्त्रियों के लिए विवाह विच्छेद (तलाक) का अधिकार, हिंदू कानून के अनुसार विवाहित व्यक्ति के लिए एकाधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध और विधवाओं तथा अविवाहित कन्याओं को बिना शर्त पिता या पति की संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का हक। उनका आग्रह था कि हिंदू कानून में अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता दी जाए। इस बिल में अंतर्निहित ये न्यूनतम सिद्धांत धार्मिक रीति से विवाहित स्त्रियों को इन अधिकारों का इस्तेमाल करने और लाभ प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं।
पर देखना यह भी होगा कि आखिर आंबेडकर इस बिल को पास कराने पर इतना जोर क्यों दे रहे थे। उनकी मान्यता थी कि जातिप्रथा को बनाए रखने में महिलाओं की भूमिका निर्विवाद रूप से अहम है। इसलिए हिंदू समाज उन्हें किसी तरह की स्वतंत्रता देने का पक्षधर नहीं है। अगर वह ऐसा करने देता है तो हिंदू समाज की जाति-व्यवस्था तहस-नहस हो सकती है। उनका दृढ़ मत था कि स्त्रियां जातिवाद का प्रवेश द्वार हैं। इसीलिए ब्राह्मणवाद उन पर कब्जा जमाए रखने के लिए जी-जान लगा कर भी उद्यत रहा है। वह जानता है कि उन्हें अधीन बनाए रख कर ही ऊंच-नीच पर आधारित जाति-व्यवस्था कायम रह सकती है। इस तरह हिंदू कोड बिल महिलाओं को पारंपरिक बंधनों से मुक्ति दिलाने की ओर उठाया गया एक ऐसा कदम था जो अंत में हिंदू समाज को जाति और लिंग के कारण पैदा हुई असमानता से मुक्त करा सकता था।

आंबेडकर द्वारा अंतरजातीय विवाहों को हिंदू कानूनों के तहत मान्यता दिलाने की कोशिश भी समाज को जाति मुक्त बनाने की योजना का ही एक अंग थी। अगर इसे मान लिया जाता तो, आज हमारी राजनीति जातिवाद से जैसे संकुचित और छिछली होती जा रही है वैसी न होती। आंबेडकर हिंदू कोड बिल के जरिए धार्मिक आचरण के क्षेत्र में प्रगतिशील मूल्यों को रख कर निजी क्षेत्र को फिर से विधिवत परिभाषित करना और उन सामाजिक आचरणों को बदलने के लिए आधार निर्मित कर देना चाहते थे, जो हिंदुओं के जीवन को विकृत कर रहे थे। उनका यह उद्देश्य अस्पृश्यता रोकने या सबको मंदिरों में जाने देने के लुंजपुंज कानूनों से पूरा नहीं हो सकता था। इस प्रकार हिंदू कोड बिल निजी को राजनीतिक बनाने का एक जोरदार उपक्रम था।
सवर्णों की संस्कृति में परिवारों की पवित्रता और उन्हें बनाए रखने पर जोर इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ये पितृसत्ता को पुष्ट कर उन्हें अभय प्रदान करते हैं। असल में स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाने की प्रक्रिया पहले परिवार से ही शुरू होती है। यही प्रक्रिया फिर समाज तक पहुंचती है। सोपानात्मक समाज संरचना इसे आसान बनाती है। इसीलिए आंबेडकर के हिंदू कोड बिल को परिवार तोड़क और समाज के लिए घातक बताया गया था। जबकि वे इस बिल के जरिए पितृसत्ता के दुष्चक्र को भेद कर जाति-व्यवस्था को तहस-नहस करने की कोशिश कर रहे थे।
हिंदू कोड बिल में स्त्रियों को तलाक का अधिकार देकर आंबेडकर एक ओर विवाह की अविच्छेद्यता को चुनौती देते तो दूसरी ओर स्त्री को पुरुष के हर अन्याय को सहन करने की बाध्यता से छुटकारा दिलाते हैं। पुरुष के एक विवाहित पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने की छूट पर प्रतिबंध लगा कर उसकी मनमानी पर अंकुश लगाते और पत्नी की स्वाधीनता और आत्मसम्मान को संरक्षित करते हैं। इसी तरह स्त्री को पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार दिला कर वे उसकी आर्थिक परनिर्भरता को खत्म कर देना चाहते हैं। बिल के ये तीनों प्रावधान निश्चय ही स्त्री-पुरुष को समान धरातल पर खड़ा कर परिवार के आधार को अधिक मजबूत और पुख्ता करने और सामाजिक समरसता को बढ़ाने वाले हैं।

बाबासाहेब आंबेडकर जी ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. लेकिन 1951 को डाॅ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने जैसे ही हिन्दू कोड बिल को संसद में पेश किया। संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया। सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक अंबेडकर के विरोधी हो गए। संसद के अंदर भी काफी विरोध हुआ। अंबेडकर हिन्दू कोड बिल पारित करवाने को लेकर काफी चिंतित थे। वहीं सदन में इस बिल को सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। वह अक्सर कहा करते थे कि:- ‘‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पास कराने में है।’’ सच तो यह है कि हिन्दू कोड बिल के जैसा महिला हितों की रक्षा करने वाला विधान बनाना भारतीय कानून के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। धर्म भ्रष्ट होने की दुहाई देने वाले विद्वानों की विशेष बैठक अंबेडकर ने बुलाई। विद्वानों को तर्क की कसौटी पर कसते समझाया कि हिन्दू कोड बिल पास हो जाने से धर्म नष्ट नहीं होने वाला है। कानून शास्त्र के नजरिये से रामायण का विश्लेषण करते हुए कहा कि ‘‘ अगर राम और सीता का मामला मेरे कोर्ट में होता तो मैं राम को आजीवन कारावास की सजा देता।’’ संसद में हिन्दू कोड पर बोलते हुए डा . आम्बेडकर ने कहा कि ‘‘ भारतीय स्त्रियों की अवनति के कारण बुद्ध नहीं मनु है।’’ काफी वाद विवाद के बाद चार अनुच्छेद पास हुआ। अंततः राजेन्द्र प्रसाद ने इस्तीफे की धमकी दे दी। पंडित नेहरू इस बिल के पक्ष में थे, लेकिन वे बिल पास नहीं करा सके. अंततः डा. आम्बेडकर ने 27 सितंबर को हिन्दू कोड बिल सहित कई अन्य मुद्दों को लेकर कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
हालाँकि बाद में यह 4 बार में पास हुआ जो निम्न प्रकार है :-
1) 18 मई 1955 – हिन्दू विवाह बिल पास
2) 17 जून 1956 – दलितों के उत्तराधिकार बताये गए l
3) 25 अगस्त 1956 – अल्प्सख्यकों के अधिकार मिले l
4) 14 दिसम्बर 1956 – हिन्दू अछूत मिलन बिल पास हुआ l (यह बिल बाबा साहेब के परिनिर्वाण के बाद पास हुआ जिसको वे अपने सामने पास होते देखना चाहते थे)

भारत को संविधान देने वाले इस महान नेता ने 06 दिसंबर, 1956 को देह-त्याग दिया. आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है तो यह इसी शख्स के कार्यों से मुमकिन हो सका है. भारत सदैव बाबा भीमराव अंबेडकर का कृतज्ञ रहेगा.

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