बालश्रम की चपेट में 12 करोड़ से ज्यादा बच्चे
संपादकः राजकुमार (दैनिक मूलनिवासी नायक)
विगत पाँच सालों से केन्द्र की मोदी सरकार देश की तरक्की का ढोल पीट रही है. सरकार का दावा है कि उसने देश की तरक्की का पूरी दुनिया में झण्डा में गाड़ दिया है. लेकिन, भारत की तस्वीर देखने के बाद रूह काँप उठती है. मोदी सरकर के बीते पाँच सालों में यह देश की तरक्की ही है कि पाँच साल बाद भी भारत बालश्रम की बेड़ियों में बुरी तरह से जड़का हुआ है. जिसकी चपेट में 12 करोड़ से ज्यादा वो बच्चें हैं. जिनके हाथों में किताबें और होठों पर मुस्कानें होनी चाहिए थी आज उनके हाथों में हथौड़े, फावड़े और उनकी आँखों में आँसूओं के साथ होठों से दर्द भरी सिसकारियाँ फूट रही है. यह मोदी सरकार के बीते पाँच सालों का ही कमाल है कि भारत में काम करने वाले हर 10 में से 6 बच्चे खेतों में काम करते हैं.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में बाल मजदूरी करने वाले ज्यादातर बच्चे किसी फैक्टरी या वर्कशॉप में तो काम करते ही हैं. साथ ही शहरी क्षेत्रों में घरेलू नौकर या गलियों में सामान बेचने के अलावा ज्यादातर बच्चे खेतों में भी काम करते हैं. ये बच्चे फसलों की बुवाई, कटाई, फसलों पर कीटनाशक छिड़कना, खाद डालना, पशुओं और पौधों की देखभल करना, जैसे काम भी करते हैं. बाल मजदूरी निषेध दिवस 12 जून को ‘क्राई-चाइल्ड राईट्स एंड यू’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. साल 2016 में जारी 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के 62.5 फीसदी बच्चे खेती या इससे जुड़े अन्य व्यवसायों में काम करते हैं. यदि आंकड़ों की बात करें तो काम करने वाले 4 करोड़ 3 लाख 40 हजार बच्चों और किशोरों में से 2 करोड़ 52 लाख 30 हजार बच्चे कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 15 करोड़ 20 लाख बच्चे बाल मजदूरी करते हैं. मजदूरी करने वाले इन 10 बच्चों में से 7 बच्चे खेती का काम करते हैं. भारत के मौजूदा रूझानों से भी कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आई है कि यहाँ 60 फीसदी से अधिक बच्चे खेती या इससे संबंधित अन्य गतिविधियों में काम कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि खेती दुनिया भर में दूसरा सबसे खतरनाक व्यवसाय है.
कुछ राज्यों में बच्चों के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे भारतीय औसत की तुलना में अधिक हैं. हिमाचल प्रदेश में खेती करने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक यानी 86.33 फीसदी बताई गई है. छत्तीसगढ़ और नागालैंड में यह प्रतिशत क्रमशः 85.09 एवं 80.14 फीसदी है. बड़े राज्यों की बात करें तो मध्यप्रदेश में यह संख्या 78.36 फीसदी, राजस्थान में 74.69 फीसदी, बिहार में 72.35 फीसदी, उड़ीसा में 69 फीसदी और असम में 62.42 फीसदी है. कुल मिलाकर भारत में 5-19 वर्ष के 4 करोड़ 3 लाख 40 हजार बच्चे और किशोर काम करते हैं. इनमें से 62 फीसदी लड़के और 38 फीसदी लड़कियाँ शामिल हैं.
क्राई-चाइल्ड राईट्स एंड यू द्वारा 2011 की जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि खेतों में मजदूरी करने वाले ज्यादातर बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. 5-19 वर्ष के 4 करोड़ 3 लाख 40 हजार काम करने वाले बच्चों और किशोरों में से मात्र 99 लाख बच्चे ही स्कूल जा पाते हैं, यानी काम करने वाले 24.5 फीसदी बच्चे ही स्कूल जाते हैं. आसान शब्दों में कहें तो काम करने वाले हर चार में तीन बच्चों से उनकी शिक्षा का अधिकार छीन लिया जाता है. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार शिक्षा के अधिकार के प्रावधान के बावजूद खेतों में मजदूरी करने वाले बहुत कम बच्चे ही अपनी पढ़ाई जारी रख पाते हैं.
पॉलिसी एडवोकेसी एंड रिसर्च की निदेशक प्रीति महारा के मुताबिक, बाल मजदूरी के कानूनों के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चे स्कूल के बाद ही अपने परिवार के कारोबार में मदद कर सकते हैं. बच्चों के इस परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो खेतों में मजदूरी करना बच्चों के लिए खतरनाक है. वजह, इस क्षेत्र की अपनी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कीटनाशकों का स्प्रे और खेती कार्यों में उपकरणों का इस्तेमाल, आदि से बच्चों के विकास में बाधा आती है. उनके शरीर पर बुरा असर पड़ता है. पिछले चार दशकों के अनुभव बताते हैं कि हमारे देश में खेती का ज्यादातर काम ऐसी परिस्थितियों में किया जाता है, जब काम और जीवन के बीच विशेष सीमा नहीं होती है. खेतों में काम करने वाले बच्चे खतरनाक कीटनाशकों तथा इनकी वजह से प्रदूषित हुए पानी एवं भोजन के संपर्क में रहते हैं. खेतों में लंबे समय तक काम करने के दौरान बच्चों को कम उम्र में बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जैसे लंबे समय तक खड़े रहना, झुकना और भारी बोझ उठाना. यही नहीं विगत पाँच सालों में देश का इतना ज्यादा विकास हुआ है कि भारत, दुनिया के विकसित देशों की सूची से बाहर हो गया है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें