‘‘सत्य बात बोलना, सत्य बातों का प्रचार प्रसार करना ही मीडिया का बुनियादी उसूल है’’
भारत की मीडिया पर ब्राह्मण बनियों का पूर्ण रूप से कब्जा हो गया है. मीडिया को चालू हुए तकरीबन 234-35 साल हो रहे हैं. आज पूरे देश में तकरीबन 3840 टीवी चैनल और 5170 से ज्यादा समाचार पत्र हैं. लेकिन इन सभी समाचार पत्रों, टीवी चैनलों के मालिक बनिया हैं और संपादक ब्राह्मण हैं. टाईम्स ऑफ इंडिया का मालिक जैन बनिया, दैनिक जागरण का मालिक गुप्ता बनिया, दैनिक भाष्कर का अग्रवाल बनिया, गुजरात समाचार का शाह बनिया, लोकमत का दरिणा बनिया, राजस्थान पत्रिका का कोठारी बनिया, नव भारत का जैन बनिया और अमर उजाला का मालिक महेश्वरी बनिया है. अगर टीवी चैनलों की बात करें तो लोकसभा टीवी के सीईओ राजिव मिश्रा, राज्य सभा टीवी के सीईओ राजेश बादल, डीडी दूरदर्शन के त्रिपुरारी शर्मा, प्रसार भारती के चेयरमैन एस सूर्य प्रकाश, पीटीआई के चेयरमैन एमएम गुप्ता, टाईम्स ग्रुप के सीईओ रविन्द्र धारीवाल, एक्सप्रेस ग्रुप के विवेक गोयंका और हिन्दू के सीईओ राजीव लोचन हैं. इस तरह से मीडिया पर पूरी तरह से ब्राह्मणों और बनियों का कब्जा हो गया है. जबकि एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी की संख्या जीरो है.
सत्य बात बोलना, सत्य बातों का प्रचार प्रसार करना ही मीडिया का बुनियादी उसूल है. परन्तु, भारतीय मीडिया, अपनी बुनियादी उसूलों से भटककर दलाली करने को ही अपना उसूल बना लिया है. असल में मीडिया चाटुकारिता का मार्ग प्रसस्त कर लिया है. या यूँ कहें कि किसी की चाटुकारिता करना मीडिया का दिनचर्या बन गया है. जिस मीडिया को देश की आवाज बनकर हकीकत को जनता से रूबरू कराना चाहिए, आज वही मीडिया विशेष वर्ग या सत्ता पक्ष की दलाली अथवा चाटुकारिता करने में गर्व महसूस कर रहा है. यह बात कहने में जरा भी अतिश्योक्ति नहीं है कि आजकल मीडिया पत्रकारिता छोड़कर चाटुकारिता करने लगा है. असल चीजों को छोड़कर गलत बातों का ही प्रचार-प्रसार करने में व्यस्त हो चुका है.
‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ अभिव्यक्ति की आजादी सबसे पहले तथागत बुद्ध ने बिहार में आर्य अष्टांगिक मार्ग के रूप में दिया. आर्य अष्टांगिक मार्ग में सम्यक वाणी का जिक्र है. यह सम्यक वाणी तथागत बुद्ध की ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का हिस्सा है. इसके बाद डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 के तहत ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का अधिकार दिया. यह भी बता देना चाहता हूँ कि ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का मनोविज्ञान से गहरा नाता भी है. जैसे कोई ऑफिस में जाता है और उसे उसका बॉस डांट देता है, मगर व वहाँ कुछ भी नहीं बोलता है. लेकिन जैसे ही वह घर आता है गुस्सा उतारने लगता है. क्योंकि कोई भी चीज व्यक्ति के विचार में आती है. उसके बाद उसे अनुभूति होती है फिर उसे आचरण में उतारता है. इस तरह से ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का मनोविज्ञान से गहरा संबंध है. बाबासाहब ने हमें ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का एक महत्वपूर्ण हथियार दिया है. हमें इसका सही और बुद्धिमता से इसका उपयोग करना चाहिए.
‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ हमारे महापुरूषों की देन है. इसी वाणी के हथियार को हमारे सभी संतों एवं महापुरूषों ने इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से समाज में बड़े पैमाने पर जागृति आई. इसको लागू करने को लिए उनको बड़ा संघर्ष करना पड़ा. इसे लागू करने के लिए उन्होंने अपनी जानें तक गवां दी. क्योंकि ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ को दबाने के लिए ब्राह्मणों ने महापुरूषों की हत्याएं कर दी. मगर, आज जो इसका साधन मीडिया है उसपर ब्राह्मणों का पूर्ण रूप से कब्जा हो गया है.
मीडिया की ताकत बहुत बड़ी ताकत है. मीडिया चार प्रकार का है. प्रिंट मीडिया, इलेक्टा्रॅनिक मीडिया, वोकल मीडिया और ट्रेडिशनल मीडिया. मीडिया में बहुत बड़ी ताकत होती है. जिसके जरिए देश की हजारों साल व्यवस्था को बदला जा सकता है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिसकी कीमत टकाभर भी नहीं है वह आज मीडिया के जरिए महात्मा और बापू बने हुए हैं. यानी मीडिया का हमारे देश में सबसे ज्यादा दुरूपयोग हो रहा है. इसके बारे में हम आपको संक्षेप में बता रहे हैं. मीडिया को इधर चार-पाँच सालों से एक फोर्थ स्टेट कहा जाने लगा है. फोर्ट स्टेट का मतलब है सरकार को चलाने वाला चौथा अंग. जैसे पहला है विधायिका (संसद) जहाँ जनता द्वारा प्रतिनिधि चुनकर जाते हैं. दूसरा है कार्यपालिका, तीसरा है न्यायपालिका और चौथा मीडिया है.
आजाद भारत में ब्राह्मणों द्वारा ब्राह्मण-बनिया प्रचार माध्यमों का निर्माण किया गया. गुलाम भारत में गाँधी जी ने ऐसे ही तंत्र का निर्माण करने के लिए विशेष अभियान चलाया था जिसका नाम था स्वदेशी आंदोलन. इस आंदोलन के पीछे एक ही मकशद था कि ब्राह्मण और बनिया का साँठ-गाँठ बनाकर व्यवस्था पर नियंत्रण किया जाय. गाँधी जी ने स्वदेशी वस्त्रों का आंदोलन चलाया और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया. इससे भारत के बनियों को गाँधी ने बढ़ावा दिया और ये पूँजीपति के रूप में बनियों को सामने लाया जो बाद में यही टाटा, बिड़ला आदि नामों से जाने लगे. ब्राह्मणों को खुश करने के लिए गाँधी ने स्वदेशी शिक्षा अभियान चलाया, जिसकी वजह से वाराणसी में पं.मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास गाँधीजी के हाथ से करवाया था. यह वही मदनमोहन मालवीय है जब बाबासाहब मजदूर मंत्री रहते हुए कहा था कि ‘‘एससी, एसटी ओबीसी और अल्पसंख्यकों को शिक्षा लेनी चाहिए’’ तब मालवीय ने इसका सबसे ज्यादा घोर विरोध किया था. तब बाबासाहब ने उसके मुँह पर ही कहा था कि ‘‘तुम्हारे विश्वविद्यालय में जो ज्ञान दिया जाता है वह पोंगापंथी ज्ञान है’’
ब्राह्मणों ने स्वदेशी के नाम पर बहुत सारे गोरखधंधा किया जिसमें से मीडिया भी है, जिस पर ब्राह्मणों ने पूर्ण रूप से कब्जा कर लिया. काका कालेलकर नाम के ब्राह्मण ने अपने जीवनी में बड़े गर्व से मीडिया औश्र पूरे तंत्रों को लेकर लिखा है कि ‘‘जनता को अपने प्रभाव के नीचे रखने का सामर्थ्य जिन लोगों के हाथों में होता है उनको अगर हम कोई पुराना नाम देना चाहते हैं तो उसे ‘ब्राह्मण’ ही कह सकते हैं’’
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