बुधवार, 31 जुलाई 2019

"महान साहित्यरत्न लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे के 99वें जन्म दिवस के अवसर पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से आर्दिक शुभेच्छाएं "


‘‘ये आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है’’ 
साहित्यरत्न लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे के शब्दों और आवाज में वो करश्मिई जादू था, जिसे सुनने के बाद आम लोगों के रगों में लहर दौड़ पड़ती थी. अण्णाभाऊ साठे का जन्म 1 अगस्त 1920 में महाराष्ट्र के सांगली जिले के वाटेगाँव में एक अनुसूचित जाति में हुआ था. उनके पिताजी भाऊ साठे मुंबई में अंग्रजों के घर माली का काम करते थे. गाँव मे अण्णा के साथ उनके भाई-बहन और माँ रहती थी. दूसरे बच्चों की तुलना में अण्णा काफी होशियार और नटखट थे. अण्णा के पिताजी जब छुट्टी के दौरान एक बार गाँव आयें तो उनकी माँ ने अण्णा का स्कूल में दाखिला कराने की सलाह दी. अण्णा का स्कूल में दखिला हुआ, लेकिन अनुसूचित जाति होने के कारण उनके साथ भेदभाव शुरू हो गया. पहले दिन ही उनके गुरूजी ने जमकर डांट लगा दी. जैसे-तैसे वे दूसरे दिन स्कूल गए, लेकिन दूसरे दिन भी डांट मिलने पर वापस स्कूल से वापस आ गये और उसके बाद उन्होंने स्कूल का कभी मुँह नहीं देखा.



इधर देशभर में अंग्रजों के खिलाफ आंदोलन तीव्र होता जा रहा था. दूसरी ओर अंग्रज भी अपने घरों में काम कर रहे भारतीय नौकरों को हटाने लगे थे. इसके चलते अण्णा के पिताजी भाऊ की नौकरी छुट गई. भाऊ वापस वाटेगाँव लौटे तो उस साल गाँव में सूखा पड़ा था. परिवार पहले ही सूखे के कारण दुःख की मार झेल रहा था, उसमें भाऊ की नौकरी भी छिन गई थी. अण्णा के पिताजी ने परिवार के सभी सदस्यों को लेकर मुंबई जाने की ठान ली. जेब में पैसे नही थे, गाँव-दर-गाँव में रूक-रूककर जो भी काम मिलता उस काम को करते हुए परिवार आगे की राह पकड़ता. ऐसे भटकते हुए पूरा परिवार पूना तक आ पहुँचा. पूना के बाहरी इलाकों में इस समय पत्थर तोड़ने के काम में काफी मजदूर लगते थे. किसी ठेकेदार ने उन्हें यह कहकर लेकर गया कि पत्थर तोड़ने के काम में ज्यादा पैसा मिलता है. दिनभर पत्थर तोड़ने के बाद रात को भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था. 

एक रात पूरा परिवार इस जगह को छोड़कर जैसे तैसे मुबंई पहुँचा. यहाँ पर भी उन्हें एक जल्लाद ठेकेदार ने पत्थर तोड़ने के काम पर लगा दिया. परन्तु, यहाँ एक पठान से उनकी मुलाकात हुई और कुछ दिन काम करने के बाद इस पठान से अण्णा की दोस्ती हो गई. साठे परिवार पुनः यहाँ से दूसरी जगह जाने की सोचने लगा. पठान ने साठे परिवार की काफी मदद की. वाटेगाँव से लेकर मुंबई की इस भयानक यातनामय यात्रा ने अण्णा के मन पर गहरी चोट की. उसके बाद मुंबई में चेंबुर, मांटुगा, कुर्ला, दादर, की झुग्गियों में स्थानांतरित हुए. काम की तलाश में घुमते रहे, उसके बाद रिश्तेदार के साथ कपड़े बेचने के काम की शुरूआत की. अण्णा के गाँव से ही ताल्लुक रखने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्ति से परिचय बढ़ा. उसे पढ़ना लिखना आता था, यह जानकर अण्णा को बहुत आश्चर्य हुआ. इसके बाद अण्णा ने भी ठान लिया कि मुझे भी पढ़ना है. वे रोज काम के बाद दोस्त के घर कॉपी-कलम लेकर जाया करते थे. एक ही महीने में उन्होंने काफी कुछ सीख लिया.

1942 के आस-पास मुंबई में कहीं, स्वातंत्र्य आंदोलन की लड़ाई चल रही थी, तो कहीं जाति-भेद की लड़ाई चल रही थी. इस सभी माहौल में हमेशा से ही कामगार, मजदूर, गरीब, पीड़ित लोग पीसे जाते थे. इन सारी घटनाओं का असर भी अण्णा पर हो रहा था. इस समय वह कपड़ा मील में काम किया करते थे. कपड़ा मील में मजदूर यूनियन से भी उन्हें काफी नई-नई विचारधारा की जानकारी मिल रही थी. जिसमें समता, बंधुत्व की भी बात कही जाती थी. मिल यूनियन में काफी एकजुटता दिखाई पड़ती थी. इस सब बात का चिंतन-मनन दिमाग में चलता रहता था. अण्णा के मौसरे भाई की नाटक मंडली थी. अण्णा कभी-कभी इस मंडली में भी काम कर लिया करते थे. मुंबई में अण्णा साठे तथा दो और लोक गायकों ने मिलकर ‘लालबटवा’ नामक कलापथक शुरू किया था. इस पथक के तहत उन्होंने कई कार्यक्रम पेश किये. 1945 में मुंबई के शिवाजी पार्क पर लोगों को जागृति करने का बड़ा जलसे का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम में साहित्यरत्न लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे के शब्दों और आवाज ने वो करश्मिई जादू किया, जिसे सुन आम लोगों के रगों में लहर दौड़ पड़ी. इस तरह उन्होंने लोगों के दिलों में घर बना लिया और यही से वे लोक नाटक के जनक बन गये.

1947 में देश में तथाकथित आजादी का आंदोलन चल रहा था. 15 अगस्त 1947 को देश को तथाकथित आजादी मिली और 16 अगस्त को लोकशाहीर अण्णभाऊ साठे ने इस तथाकथित आजादी का विरोध करते हुए मुंबई के आजाद मैदान में लाखों लोगों की रैली निकाली. इस रैली में उन्होंने एक नारा दिया ‘‘ये आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है’’ इस तरह से उन्होंने कथित आजादी का जोरदार विरोध किया. भारत-पाकिस्तान विभाजन के वक्त ‘पंजाब-दिल्ली दंगा’ पर एक प्रदीर्घ लोकगीत की रचना की. देश भर के तत्कालीन महत्वपूर्ण मुददों पर उन्होंने लोकगीत लिखा. अण्णा भाऊ साठे ने अपने लेखन की अमिट छाप समाज पर छोड़ी. साथ ही उन्होंने कथा लेखन, नाटक, प्रवासवर्णन, सिनेमा की कथा, उपन्यास लिखकर साहित्यरत्न की उपाधि हाशिल कर ली. केवल दो दिन स्कूल जाने वाले अण्णा भाऊ साठे ने अपनी अद्वितिय बुद्धि कौशल, तथा स्वअनुभव से नया इतिहास गढ़ दिया. उनके इस काम की कद्र महाराष्ट्र शासन ने भी उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित करके दिया. 01 अगस्त 2002 में भारत सरकार ने उनके नाम का डाक टिकट जारी किया. इसके अलावा उनके लिखे गये लोक गीत रशियन भाषा मे भी प्रसिद्ध हुए. उनका रशिया में खास सत्कार किया गया. ऐसे महान साहित्यरत्न लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे के 99वें जन्म दिवस के अवसर पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से आर्दिक शुभेच्छाएं

लोकशाहीर अण्णाभाऊ साठे द्वारा लिखे गये साहित्य....

उपन्यासः फकीरा, वारण का शेर (वारणेचा वाघ), अलगुज, आवडी, केवडे का भुट्टा (केवडयाचे कणीस), कुरूप, चंदन, जिंदा काडतुस (जिवंत काडतुसं), धुंद, मंगला, बंदरिया की माला (माकडीचा माळ), मूर्ति, रानगंगा, रूपा, वैजयंता, तारा, संघर्ष, आग, आघात, अहंकार, अग्निदिव्य, गुलाम, कीचड़ के कमल (चिखलातले कमल), भरी हुई बंदुके (ठासलेल्या बंदुका), आँखे मटकाती राधा चले (डोळे मोडित्‍ राधाचाले), तितली (फुलपाखरू), मधुरा, शिक्षक (मास्तर), रत्ना, रानबोका, चित्रा, वारणानदी के किनारे (वारणेच्या खो-यात), वैर, सरनौबत, पाझर.


कथा संग्रहः चिराग नगर के भूत (चिरागनगरची भुतं), कृष्णा किनारे की कथा (कृष्णाकाठाच्या कथा), जेल में (गजाआड), नई-नवेली (नवती), पागल मानुष्य (पिसाळलेला माणूस), फरारी, भानामती, लाडी, खुळंवाडी, निखारा, बरबाघ्या कंजारी, गु-हाळ, आबी
नाटक लेखनः इनामदार, पेग्यां की शादी (पेग्यांचे लगीन), सूलतान,

लोकनाटकः तमाशा (नौटंकी), दिमाग की काहणी (अकलेची गोष्ट), खाप-या चोर, देशभक्त घोटाले (देशभक्त घोटाळे), नेता मिल गया (पुढारी मिळाला), बिलंदर पैसे खाने वाले (बिलंदर बुडवे), मौन मोर्चा (मूक मिरवणूक), मेरी मुंबई (माझी मुंबई), शेटजी का इलेक्शन (शेटजीचे इलेक्शन), सुखे में तेरवा महिलना (दुष्काळात तेरावा), कायदे के बिना (बेकायदेशीर), लोकमंत्री, महाराष्ट्र की लोक कला लावणी (लावणी), गीत, महाराष्ट्र में लोक गायन का प्रकार पोवाडा (पोवाडे),

प्रवासवर्णनः मेरा रशिया की यात्रा (माझा रशियाचा प्रवास) 

मराठी फिल्मी (चित्रपट) कथाः फकीरा, ऐसी यें सातारा की करामत (अशी ही साता-याची त-हा), तिलक लागती हू रक्त से (टिळा लाविते मी रक्ताचा), पहाडों की मैना (डोंगराची मैना), मुरळी मल्हारी रायाची, वारणे का बाघ (वारणेचा वाघ), बारा गाव का पाणी (बारागावे पाणी)
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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