बुधवार, 31 जुलाई 2019

बहादुरी का यह कैसा इनाम....?



‘‘उधर इसरो के वैज्ञानिक बेचारे चाँद पर तिरंगा लहराने में व्यस्त थे, इधर मनुवादी सरकार ने बेचारों की तनख्वाह में कटौती कर दी. मोदी सरकार ने इन वैज्ञानिकों को इनकी काबलियत का क्या ख़ूब इनाम दिया है. ये हाल तब है जब इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है’’


चन्द्रयान-2 की लॉन्चिंग के बाद जहाँ पूरा देश इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर नाज़ कर रहा है, तो वहीं केंद्र की मनुवादी मोदी सरकार ने देश को गौर्वांवित करने वाले इन वैज्ञानिकों के वेतन में भारी कटौती कर उनको उनकी बहादुरी का इनाम दे दिया है. इस कटौती के खिलाफ़ वैज्ञानिकों ने इसरो के चेयरमैन को पत्र लिखा है. इसरो के वैज्ञानिकों के संगठन स्पेस इंजीनियर्स एसोसिएशन (सीईए) ने इसरो के चेयरमैन डॉ. के सिवन को पत्र लिखकर मांग की है कि वे इसरो वैज्ञानिकों की तनख्वाह में कटौती करने वाले केंद्र सरकार के आदेश को रद्द कराने में उनकी मदद करें. क्योंकि हम वैज्ञानिकों के पास तनख्वाह के अलावा कमाई का कोई अन्य जरिया नहीं है. 

बता दें कि उधर इसरो के वैज्ञानिक बेचारे चाँद पर तिरंगा लहराने में व्यस्त थे, इधर मनुवादी सरकार ने बेचारों की तनख्वाह में कटौती कर दी. मोदी सरकार ने इन वैज्ञानिकों को इनकी काबलियत का क्या ख़ूब इनाम दिया है. ये हाल तब है जब इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है. मोदी सरकार ने 12 जून को एक आदेश जारी कर कहा था कि इसरो वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को साल 1996 से मिलने वाले दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि को बंद कर दिया जायेगा. इस आदेश में कहा गया है कि 1 जुलाई 2019 से यह प्रोत्साहन राशि बंद हो जाएगी. इस आदेश के बाद डी, ई, एफ और जी श्रेणी के वैज्ञानिकों को यह प्रोत्साहन राशि अब नहीं मिलेगी. यह भी बता दें कि इसरो में करीब 16 हजार वैज्ञानिक और इंजीनियर हैं. 

केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि छठें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर वित्त मंत्रालय और व्यय विभाग ने अंतरिक्ष विभाग को सलाह दी है कि वह इस प्रोत्साहन राशि को बंद करे. इसकी जगह अब सिर्फ परफॉर्मेंस रिलेटेड इंसेंटिव स्कीम लागू की गई है. अब तक इसरो अपने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन राशि और पीआरआईएस स्कीम दोनों सुविधाएं दे रहा था. लेकिन अब केंद्र सरकार ने निर्णय किया है कि अतिरिक्त वेतन के तौर पर दी जाने वाली यह प्रोत्साहन राशि 1 जुलाई से मिलनी बंद हो जाएगी. इस सरकारी आदेश से इसरो के करीब 85 से 90 फीसदी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की तनख्वाह में 8 से 10 हजार रुपए का नुकसान होगा. क्योंकि, ज्यादातर वैज्ञानिक इन्हीं श्रेणियों में आते हैं. इसे लेकर इसरो वैज्ञानिक नाराज हैं.

गौरतलब है कि इसरो वैज्ञानिकों के लिए दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि की अनुमति राष्ट्रपति ने दी थी. ताकि, देश में मौजूद बेहतरीन टैलेंट्स को इसरो वैज्ञानिक बनने का प्रोत्साहन मिले. ये अतिरिक्त वेतन वृद्धि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1996 में अंतरिक्ष विभाग ने लागू किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा था कि इस वेतन वृद्धि को स्पष्ट तौर पर ‘तनख्वाह’ माना जाए. छठें वेतन आयोग में भी इस वेतन वृद्धि को जारी रखने की सिफारिश की गई थी. साथ ही कहा गया था कि इसका लाभ इसरो वैज्ञानिकों को मिलते रहना चाहिए. दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि इसलिए लागू किया गया था कि इसरो में आने वाले युवा वैज्ञानिकों को नियुक्ति के समय ही प्रेरणा मिल सके और वे इसरो में लंबे समय तक काम कर सकें. केंद्र सरकार के आदेश में परफॉर्मेंस रिलेटेड इंसेंटिव स्कीम (पीआरआईएस) का जिक्र है. हम यह बताना चाहते हैं कि अतिरिक्त वेतन वृद्धि और पीआरआईएस दोनों ही पूरी तरह से अलग-अलग हैं. एक इंसेंटिव है, जबकि दूसरा तनख्वाह है. दोनों एकदूसरे की पूर्ति किसी भी तरह से नहीं करते. सरकारी कर्मचारी की तनख्वाह में किसी भी तरह की कटौती तब तक नहीं की जा सकती, जब तक बेहद गंभीर स्थिति न खड़ी हो जाए. 

लेकिन, ब्राह्मणवादी मानसिकता से ओत-प्रोत मनुवादी सरकार ने इस आदेश को रद्द कर अपनी जाहिल मानसिकता का परिचय दे दिया. जबकि, सीईए के अध्यक्ष ए.मणिरमन ने पत्र में कहा है कि सरकारी कर्मचारी की तनख्वाह में किसी भी तरह की कटौती तब तक नहीं की जा सकती, जब तक बेहद गंभीर स्थिति न खड़ी हो जाए. क्यांकि, तनख्वाह में कटौती होने से वैज्ञानिकों के उत्साह में कमी आएगी. अब सवाल यह है कि क्या इसरो के वैज्ञानिकों ने चन्द्रयान-2 की लॉचिंग कर बेहद गंभीर स्थिति खड़ा कर दिया है, जिससे उनकी तनख्वाह में कटौती की गयी है? वास्तव में वैज्ञानिक केंद्र सरकार के इस अनर्गल फैसले से बेहद हैरत दुखी हैं.

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