शनिवार, 27 जुलाई 2019

जापान में बैलेल पेपर से चुनाव


जापान में बैलेल पेपर से चुनाव



भारत में जहाँ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है, वहीं जापान ने भले ही ईवीएम का आविष्कार किया हो, परन्तु वहाँ ईवीएम के बजाय बैलेट पेपर से चुनाव होता है. इसका जीता जागता उदाहरण एक बार फिर से जपान में देखने को मिला है जहाँ रविवार को ऊपरी सदन के लिए मतदान शुरू हो गया. इसके लिए वहाँ बैलेट बाक्स का इस्तेमाल किया गया. बताया जा रहा है कि ऊपरी सदन के चुनाव परिणाम से यह पता चलेगा कि प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साढ़े छह वर्ष के कार्यकाल से लोग कितने संतुष्ट हैं? जापान के अधिकतर हिस्सों में मतदान केंद्र स्थानीय समयानुसार रात आठ बजे बंद हो जाएंगे और मतदान समाप्त होने के बाद मतगणना शुरू हो जाएगी.

गौरतलब है कि ऊपरी सदन के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष का होता है और इसकी करीब आधी सीटें प्रत्येक तीन वर्ष में खाली हो जाती हैं. रविवार को ऊपरी सदन के 124 सीटों पर मतदान हो रहा है जिसमें तीन नई सीटें जोड़ी गई हैं और इसके लिए कुल 370 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. श्री आबे ने कहा है कि उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और इसकी गठबंधन सहयोगी कमेटी का 245 सीटों वाले ऊपरी सदन में बहुमत बरकरार रहेगा.

बता दें कि 22 अक्टूबर 2017 को जापान का 48वाँ आम चुनाव हुआ था, जिसमें बैलेट बाक्स का प्रयोग किया गया था. मतदाताओं ने बैलेट पेपर से चुनाव संपन्न कराया. दिलचस्प बात तो यह है कि मतदाताओं को दो बार वोट डालने का अधिकार है. एक वोट चुनाव क्षेत्र के उम्मीदवार के लिए और दूसरा वोट पार्टी सूची के लिए. जापान का कोई भी नागरिक जो 18 वर्ष या उससे बड़ा हो मतदान कर सकता है. जापान का संविधान वयस्क मताधिकार और गुप्त मतदान का अधिकार देता है. साथ ही वह निर्धारित करता है कि चुनाव कानून, नस्ल, जाति, लिंग, सामाजिक स्थिति, पारिवारिक मूल, शिक्षा, जायदाद या आय से भेदभाव नहीं कर सकता.

अगर भारत की बात करें तो भारत में ईवीएम पर रार होने के बाद भी बैलेट पेपर से चुनाव नहीं किया जा रहा है. जबकि बीते फरवरी 2019 को इंडोनेशिया में राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हुआ. जिसमें ईवीएम की जगह बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया गया है. इंडोनेशिया में ईवीएम पर लंबे समय से बहस जारी थी, जिसके बाद सभी दलों में राजनीतिक सहमति नहीं बन सकी और वापस बैलेट पेपर पर लौटना तय हुआ. इंडोनेशिया दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ अमेरिका की तरह ही राष्ट्रपति सिस्टम लागू है. सबसे ज्यदा चौंकाने वाली बात तो यह है कि इंडोनेशियाई चुनाव दुनिया के सबसे जटिल चुनावों में से एक है. क्योंकि, यहाँ एक ही दिन में 20,000 पोस्ट के लिए 2,45,000 उम्मीदवारों में से चुनाव के लिए 8,00,000 मतदान केंद्रों पर 19 करोड़ से अधिक मतदाताओं को वोट देना होता है. हैरान करने वाली बात यह भी है कि 19 करोड़ से ज्यादा मतदाता बैलेट पेपर पर मतदान करते हैं. मगर, दुःखद बात यह है कि भारत में चुनाव आयोग द्वारा कहा जा रहा है कि बैलेट पेपर से चुनाव कराने में देरी होगी? अब सवाल यह है कि क्या इंडोनेशिया में देर नहीं हो रहा है? दूसरा सवाल यह है कि चुनाव आयोग का काम निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र रूप से चुनाव कराने का काम दिया गया है या चुनाव जल्दी कराने का काम दिया गया है?

चौंका देने वाली बात तो यह है कि वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की आशंका की वजह से दुनिया के अत्यंत विकसित देशों में इंडोनेशिया सहित कई देशों ने ईवीएम पर पाबंदी लगायी है. जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, अमेरिका और जापान जैसे देशों में वोटिंग मशीन से वोट नहीं पड़ते हैं, चुनाव बैलेट पेपर से होते हैं. जर्मनी कोर्ट ने ईवीएम के प्रयोग को असंवैधानिक करार दिया है. 2008 में नीदरलैंड की सरकार ने ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला किया. करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद आयरलैंड नें ईवीएम से चुनाव कराने से इनकार कर दिया. ब्रिटेन दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में से एक है, पर उसकी संसद ने 2016 में तय किया कि वह वोटिंग मशीन का इस्तेमाल नहीं करेगी. फ्रांस में भी ईवीएम से चुनाव नहीं होता है. इटली में आज भी बैलेट पेपर ही लोकप्रिय है. अमेरिका के कुछ राज्यों में ईवीएम का इस्तेमाल होता है, पर राष्ट्रीय चुनाव पेपर पर ही होते हैं. यही नहीं जापान में जहाँ बैलेट पेपर से चुनाव होता है वहीं एक मतदाता दो बार वोट भी देता है.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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