गुरुवार, 1 अगस्त 2019

यह इंसाफ नहीं बेईमानी है....!

‘‘तीन तलाक’’ को लेकर आखिरकार 30 जुलाई 2019 का दिन इतिहास में दर्ज हो ही गया. तीन तलाक विधेयक को राज्यसभा ने अपनी मंजूरी दे दी. हालांकि, लोकसभा से इसे पहले ही मंजूरी मिल गई थी. सवाल यह है कि क्या यह सचमुच, महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम है? क्या विश्व के सबसे बड़े प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में ‘तीन तलाक’ का प्रावधान सच में एक बदनुमा दाग था जिसे अब हमारे दोनों सदनों ने बहुमत से साफ कर दिया है? मेरा मानना है कि मौजूदा सरकार ने अपनी मनमानी करके देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की नींव डाल दी है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को ही फैसला सुनाते हुए मुसलमानों में 1400 साल से चली आ रही ‘‘तीन तलाक’’ की प्रथा को अमान्य और असंवैधानिक घोषित कर दिया था. लेकिन गम्भीर बात तो यह है कि तीन तलाक तो खत्म कर दिया, परन्तु 2500 वर्षों से चली आ रही ‘‘जाति, छुआछूत और असमानता’’ जैसी कुप्रथा कब समाप्त होगी? क्या लोकसभा, राज्यसभा सहित सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर कभी चिंतन मनन किया? आखिर देश में जातिवाद को खत्म करने के लिए क्यों नहीं बहस हो रही है? 

आपको बता दें कि मुस्लिमों से ज्यादा ब्राह्मण, क्षत्रियों, वैश्य और अन्य समूहों में सबसे ज्यादा तलाकशुदा के मामले हैं. अगर आंकड़ों पर गौर करें तो होश उड़ जायेंगे. रिपोर्ट 2017 के एक आंकड़े के अनुसार हिन्दुओं में कुल 96,2,810 तलाकशुदा के मामले हैं, जिनमें 6,18,529 तलाकशुदा के मामले में महिलाएं हैं और 3,44,281 मामलों में पुरूष हैं. जबकि, वहीं मुस्लिमों में तलाकशुदा के कुल 269,906 मामले हैं, जिनमें 2,12,074 मामलो में महिलाएं और 57,535 मामलो में पुरूष हैं. आंकड़ों के आधार पर सवाल यह है कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था के आधार पर हिन्दू विवाह कानून को खत्म करने की सबसे ज्यादा जरूरत है या तीन तलाक को? ‘‘हिन्दू विवाह कानून, जाति व्यवस्था जैसी ब्राह्मणों द्वारा तमाम प्रकार की कुप्रथाओं’’ को भी खत्म किया जाना चाहिए. इसे क्यों नहीं खत्म किया जा रहा है? तीन तलाक पर प्रतिबंध वाले कानून हिन्दुओं में भी लागू होने चाहिए. 

दरअसल, तीन तलाक बिल को खत्म करने के पीछे असलियत यह है कि शासन-प्रशासन पर कब्जा करने वाले यूरेशियन ब्राह्मणों ने एक बहुत ही भयंकर साजिश के तहत तीन तलाक को खत्म कर बेहद खतरनाक कानून ‘‘कॉमन सिविल कोड’’ का रास्ता आसान बना लिया है. यूरेशिन ब्राह्मणों ने तीन तलाक के माध्यम से निशाना तो मुसलमानों पर लगाया गया है. लेकिन, शिकार मुसलमान नहीं, बल्कि एससी, एसटी और ओबीसी हैं. क्योंकि तीन तलाक को इसलिए खत्म किया गया है ताकि ‘‘कॉमन सिविल कोड’’ को आसानी से लागू किया जा सके. अब सवाल उठता है कि तीन तलाक का कॉमन सिविल कोड से क्या संबंध है? इसकी हकीकत यह है कि अक्टूबर 2015 में कर्नाटक की ब्राह्मणवादी हिन्दू महिला फूलवंती देवी और उसके पति प्रकाश के बीच शादी को लेकर झगड़ा हुआ और उसके पति प्रकाश ने फूलवंती देवी को डायवोर्स (तलाक) अर्थात रिस्ता तोड़ दिया. फुलवंती देवी ने हिन्दू उत्तराधिकारी कानून के तहत पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट गयी.


16 अक्टूबर 2016 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू उत्तराधिकारी के बारे में कुछ कमियों को दशार्ते हुए टिप्पणी कर दी. हिन्दू कमियों पर बात उठते ही पहले से शासक वर्ग द्वारा बनाए गये प्लान के अनुसार प्रतिवादी ब्राह्मण वकील ने हिन्दू के मामले को वहीं रोककर मुस्लिमों के तीन तलाक से जोड़ दिया. ब्राह्मण वकील ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में भी बहुत से ऐसे कानून हैं जो महिलाओं के खिलाफ हैं. यह सुनकर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तीन तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव की पड़ताल करने के लिए मुख्य न्यायाधीश को एक खास बेंच गठित करने को कहा. बस यहीं से प्रकाश व फूलवंती की सुनवाई हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और मुस्लिमों में तीन तलाक का नया मुद्दा उठाया गया.
शासक वर्गों ने जिस तरह से पहले प्लान बनाकर कार्य कर रहे थे, उसी प्लान के अनुसार फरवरी 2016 में ही उत्तराखंड की मुस्लिम महिला शायरा बनों ने अपने पति द्वारा दिए गए तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा चुकी थी. तब से ब्राह्मणवादी वकील, जज और सरकार तीन तलाक को खत्म करने के लिए समय-समय पर उसे मुद्दा बनाकर उछालते रहे. अब यहाँ पर यह गौर करने वाली बात है कि जब सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू उत्तराधिकारी कानून अर्थात हिन्दू का केस चल रहा था तो सुप्रीम कोर्ट या प्रतिवादी ने मुस्लिमों में तीन तलाक का मामला क्यों उठाया? यह पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह मामला इसलिए उठाया क्योंकि तीन तलाक कॉमन सिविल कोड को लागू करने में रोड़ा बन रहा था, इसलिए तीन तलाक का मुद्दा उठाया गया ताकि तीन तलाक को खत्क किया जा सके.

हैरान करने की बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला हिन्दू का चल रहा था तो फैसला हिन्दू के पक्ष या विरोध में होना चाहिए था. लेकिन, फैसला मुसलमानों के विरोध में क्यों सुनाया गया? इसका मतलब साफ है कि मुसलमानों में तीन तलाक के मामले को जानबूझकर उठाया गया. दूसरा सबसे बढ़ा सवाल कि तीन तलाक को खत्म कर कॉमन सिविल कोड क्यों लागू करना चाहते हैं? इसका जवाब यह है कि कॉमन सिविल कोड पर सरकार का मानना है कि देश में सभी धर्मों पर केवल एक ही कानून लागू होना चाहिए वह चाहे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईशाई, बौद्ध और जैन ही क्यों न हो. जबकि, देश में अलग-अलग जाति, अलग-अलग धर्म के लोग रहे हैं और सभी के अलग-अलग कस्टमरी लॉ, परम्पराएं, व्यवस्था और रिवाज हैं. यदि कॉमन सिविल कोड लागू होगा तो देश के अलग-अलग जाति, समूह, सांस्कृति, धर्म के लोगों पर एक ही कानून लागू होगा.


अगर कॉमन सिविल कोड लागू होगा तो लोकतंत्र के चारों स्तम्भों पर यूरेशियन ब्राह्मणों का ही कब्जा है. सरकार से लेकर सदन तक केवल शासक वर्ग ब्राह्मणों का ही कब्जा है. हर जगह शासक वर्ग का कब्जा होने के नाते कॉमन सिविल कोड 100 प्रतिशत हिन्दू और हिन्दू धर्म के पक्ष में ही बनेगा. जब कॉमन सिविल कोड हिन्दू के पक्ष में बनेगा तो जो कानून हिन्दुओं पर लागू होगा वही कानून मुसलमानों, बौद्धों, सिखों, ईसाईयों और जैनों पर भी लागू होगा. जबकि, ब्राह्मणवाद अर्थात हिन्दू धर्म में कर्मकाण्ड, पाखण्ड, अंधविश्वास है इसी को सभी धर्म, संप्रदाय जाति के लोगों को मानना होगा. इससे न केवल उनकी पहचान खत्म हो जाएगी, बल्कि उनका इतिहास भी खत्म हो जाएगा. क्योंकि, यूरेशियन ब्राह्मण देश में कॉमन सिविल कोड लागू कर देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजनों का इतिहास और पहचान खत्म करके देश हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं.

डा.बाबासाहब अम्बेडकर भी चाहते थे कि यूनिफार्म सिविल कोड होना चाहिए. लेकिन, जब बाबासाहब चाहते थे कि यूनिफार्म सिविल कोड बने तो यूरेशियन ब्राह्मण नहीं चाहते थे. क्योंकि वे जानते थे कि अगर डा.अम्बेडकर के रहते यूनिफार्म सिविल कोड बनेगा तो सभी को समान अधिकार देने होंगे. इसलिए उस वक्त शासक वर्ग राजी नहीं हुआ. जब बाबासाहब चाहते थे तब कॉमन सिविल कोड ब्राह्मणों ने लागू नहीं किया और जब आज बाबासाहब नहीं हैं तो विरोध करने वाले ही कॉमन सिविल कोड लागू करने के लिए क्यों उतावले हैं? इसका एक ही कारण है कि 2025 में आरएसएस को 100 साल पूरे हो रहे हैं. शासक वर्ग देश में कॉमन सिविल कोड लागू कर ब्राह्मण पैनल कोड (मनुस्मृति) को पुनः लागू कर देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजनों को दीर्घकालीन गुलाम बनाकर मूलनिवासियों की गुलामी और अपनी कामयाबी का जश्न मनाना चाहते हैं. इसलिए कॉमन सिविल कोड को लागू करने में तीन तलाक बीच में रोड़ा बन रहा था इसलिए तीन तलाक को खत्म हिन्दू राष्ट्र बनाने का रास्ता साफ कर लिया है.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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