रविवार, 3 नवंबर 2019

1956 की अशोक विजयादश्मी



अभी हाल ही में लोगों ने विजयदशमी और दशहरा दोनों मनाया. लेकिन, बहुताय लोगों को  विजयदशमी और दशहरा के बारे में जानकारी नहीं है. विजयदश्मी का वास्तविक नाम सम्राट, अशोक विजयादश्मी है. इसलिए अशोक विजयादश्मी और दशहरा में जमीन-आसमान का फर्क है. जहाँ अशोक विजयादश्मी मूलनिवासी बहुजन समाज का बड़ा पर्व है तो वहीं मूलनिवासी बहुजनों के अशोक विजयदश्मी पर्व को खत्म करने के लिए ब्राह्मणों ने दशहरा नाम का त्योहार शुरू किया. ब्राह्मणों ने अशोक विजयादश्मी से अशोक शब्द हटाकर केवल विजयदश्मी कर दिया और उसे विजयदश्मी के नाम से कम दशहरा के नाम से ज्यादा प्रचारित किया. इतिहास गवाह है कि सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धम्म स्वीकार किया और क्रोध पर विजय प्राप्ति के प्रतीक स्वरुप विजय दशमी की नींव डाली. लेकिन, उसी तिथि पर पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण ने बृहद्रथ मौर्य की हत्या करके प्रतिक्रांति की और दस मौर्य सम्राटों को प्रतीक मानते हुए दशहरे की नींव डाल दी. यही नहीं, शुंग की प्रतिक्रांति को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ब्राह्मणों ने उसी तिथि पर 1925 में आरएसएस की स्थापना की. जबकि, डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने भी तथागत गौतम बुद्ध और सम्राट अशोक की धम्मक्रांति को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से उसी तिथि पर 1956 में धर्म परिवर्तन किया. अशोक विजयादशमी और दशहरे का यह मात्र एक शाब्दिक अंतर ही नहीं है, बल्कि यह सदियों से चला आ रहा मूलनिवासियों एवं ब्राह्मणों के वर्चस्व का संघर्ष है. उपरोक्त बातें लगभग सभी लिखे-पढ़े लोग जानते हैं किन्तु मानते कतई नहीं हैं.

बता दें कि विजयादश्मी (दशहरा) का संबंध रामायण से भी नहीं है. बल्कि, विजयादश्मी का संबंध चक्रवर्ती सम्राट अशोक से है. ऊपर बताया जा चुका है कि विजयादश्मी (दशहरा) का वास्तविक नाम अशोक विजयादश्मी है. क्योंकि, रामायण का राम कोई और नहीं, पुष्यमित्र शुंग है ब्राह्मणों ने और राजा बृहद्रथ मौर्य को रावण के रूप में पेश कर दिया है. दशहरा का वास्तविक नाम सम्राट अशोक विजयादशमी है. भारत में ‘सम्राट अशोक विजयादशमी’ के बौद्धों के पवित्र त्योहार को खत्म करने के लिए ब्राह्मणों ने षडयंत्र किया और विजयदश्मी (दशहरा) का नाम दे दिया. इस तरह से पराजित करने वाले दिन को ‘दशहरा’ नाम दिया गया और सम्राट अशोक विजयादशमी को गायब कर दिया गया. रावण का जो प्रतीक है उसमें रावण को 10 मुख का बताया गया. जबकि बौद्ध धम्म में दस परमिताओं, दस शीलों का बहुत अधिक महत्व है. इसके साथ मौर्य वंश के दशवें शासक सम्राट बृहद्रथ मौर्य को रावण के रूप में दस मुख वाला बता दिया. 8, 9 या 11 मुख का क्यों नहीं बताया? यही कारण है कि सम्राट अशोक विजयादशमी के त्योहार को समाप्त करने के लिए आर्यों ने दशहरा नामक त्योहार शुरू किया.

आर्यों के इस षडयंत्र को डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर खत्म करना चाहते थे. इसलिए वे सोच समझकर, योजना बनायी और 1956 में अशोक विजयादश्मी के दिन धम्म दीक्षा ली. 1956 में जिस दिन अशोक विजयादश्मी के 2,500 साल पूरे हो रहे थे उस दिन 14 अक्टूबर था. यानी 1956 में 14 अक्टूबर को 2,500वीं सम्राट अशोक विजयादशमी आ रही थी. इसलिए बाबासाहब ने उस दिन को निर्धारित किया और लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा ली. इसके बाद लोगों को पता चला कि बाबासाहब ने जो 14 अक्टूबर 1956 को धम्म दीक्षा ली, वह सम्राट अशोक विजयादशमी के साथ जुड़ा हुआ है. इसका मतलब है यह कतई नहीं है कि डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर 14 अक्टूबर को ध्यान में रखकर धम्म दीक्षा ली. नहीं, बल्कि 1956 में अशोक विजयादश्मी के 2,500वें साल को ध्यान में रखते हुए धम्म दीक्षा ली और मूलनिवासी बहुजनों की विरासत को पूर्नजीवित कर उसे बड़े पैमाने पर खड़ा कर दिया. लेकिन, मूलनिवासी बहुजन समाज के बहुताय लोग 14 अक्टूबर को महान बताते हैं, जो यह सर्वथा गलत है. मूलनिवासी बहुजन समाज पहले के अपेक्षा अब जागृत हो गया है और इस समाज में बुद्धिजीवी वर्ग का निर्माण हो गया है. इसलिए मूलनिवासी बहुजन के बुद्धिजीवी वर्ग को अपने इतिहास की सही जानकारी अपने समाज के लोगों को देकर उन्हें जागृत करनी चाहिए, ताकि मूलनिवासी बहुजन समाज का जन-जन अपने इतिहास को जान सके और वक्त आने पर अपने इतिहास रूपी विरासत की रक्षा कर सके.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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