रविवार, 3 नवंबर 2019

दीपावली और दिवाली



दीपावली और दिवाली में बहुत बड़ा अंतर है. इस अंतर को समझने के लिए सबसे पहले यह समझना होगा कि ‘हरिजन और दलित’ में क्या अंतर है? क्योंकि, हरिजन और दलित में जो अंतर है ठीक वही अंतर दीपावली और दिवाली में है. हरिजन शब्द को गंदी गाली के रूप में बनियाँ गाँधी ने दिया और दलित शब्द को हमारे ही समाज के बाबू जगजीवन राम ने दिया. बामसेफ की वजह से अब लोगों में यह जागृति आ गई ही हरिजन शब्द गाली है. इसलिए यदि कोई हरिजन शब्द का प्रयोग करता है तो लोगों को बुरा लगता है क्यों? क्योंकि हरिजन शब्द एक बनियाँ ने गाली के रूप में दिया था.

लेकिन, वहीं जब कोई दलित शब्द का प्रयोग करता है तो लोगों में गर्व होता है क्यों? क्योंकि उन लोगों को दलित शब्द का अर्थ पता नहीं है. असल में दलित शब्द असंवैधानिक शब्द है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने दलित शब्द पर रोक लगा दी है. लेकिन, कुछ लोग शायद इसलिए दलित शब्द पर गर्व करते होंगे कि दलित शब्द एक एससी वर्ग के बाबू जगजीवन राम ने दिया है. लेकिन, दलित शब्द का अर्थ नीच और गुलाम होता है. गाँधी और कांग्रेस ने बाबू जगजीवन राम के सहारे चार वर्णों में दलित नाम पर पाँचवा वर्ण बनाने की कोशिश की थी. अगर, अब भी दलित शब्द का प्रयोग हमारे समाज के लोग बंद नहीं किए तो आने वाले समय में ब्राह्मण दलित को पाँचवां वर्ण बना देगा. जिस तरह से हरिजन और दलित शब्द में अंतर है ठीक ऐसा ही अंतर दीपावली और दिवाली में है. असल में दीपावली का दूसरा नाम ही दिवाली है. दीपावली का त्योहार बनियों का त्योहार है. किन्तु दीपदानोत्सव का पर्व सम्राट अशोक ने शुरू किया था.

बता दें कि जब तथागत बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद कपिलवस्तु में वापस लौट रहे थे तो उनके आने की खबर कपिलवस्तु में आग की तरह फैल गई. पता चलता है कि उनके पिता शुद्धोदन ने कपिलवस्तु को बुद्ध के स्वागत के लिए सजा दिया था. यही नहीं बुद्ध के कपिलवस्तु आने पर अच्छे-अच्छे मिष्ठान बनवाए गये और रात को दीप जलाकर पूरी नगरी को रोशन कर दिया गया था. उसके बाद हर साल इसी दिन को कपिलवस्तु के लोग दीप जलाकर पर्व के रूप में मनाने लगे. प्राचीन इतिहास से पता चलता है कि इसी दिन को सम्राट अशोक ने बुद्ध की विरासत को यादगार बनाने के लिए 84000 स्तूप का निर्माण किया और इसी दिन 84000 स्तूपों में एक साथ दीपक जलाया. तब से बुद्धिस्ट लोग इसे दीपदानोत्सव के रूप में मनाने लगे. लेकिन, आर्य ब्राह्मणों और बनियों ने षड्यंत्र किया और दीपदानोत्सव के पर्व को दीपावली के रूप में रूपांतरित कर दिया. 

दीपावली के नाम पर ब्राह्मणों ने कपोलकाल्पित कहानियाँ बनाई कि इस दिन भगवान राम अयोध्या वापस आये थे, जिनकी खुशी में अयोध्याविसियों ने दीपक जलाकर खुशियाँ मनाई थी. इस कपोलकल्पित कहानी का इतना ज्यादा प्रचार प्रसार किया और हमारे लोगों के दिमाग में भर दिया कि हमारे लोग अपना पर्व छोड़कर ब्राह्मण, बनियों के पर्व को त्योहार के रूप में मनाने लगे. जैसे-जैसे समय गुजरता गया वैसे-वैसे ब्राह्मण बनियाँ दीपावली के नाम में भी परिवर्तन करता गया. अभी वर्तमान में दीपावली से दिवाली कहा जाने लगा है.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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