रविवार, 3 नवंबर 2019

भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने पर उतावली मोदी सरकार


राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
यह बात कई बार साबित हो चुकी है कि संघ संचालित मोदी सरकार, देश को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित करने के लिए ही ‘तीन तलाक’ को खत्म किया था. क्योंकि, जब तक देश में ‘तीन तलाक’ लागू रहेगा, तब तक ‘एक देश, एक कानून’ (यूनिफार्म सिविल कोड) लागू नहीं हो सकता है और जब तक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू नहीं होगा तब देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना शासक जातियों के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा. यही कारण है कि संघ के इशारे पर मोदी सरकार ने सबसे पहले ‘तीन तलाक’ को खत्म किया और हिन्दू राष्ट्र बनाने का रास्ता आसान कर लिया. अब मोदी सरकार बड़ी ही आसानी से देश में ‘यूनिफार्म सिविल कोड’ लागू करने की तैयारी कर रही है. बता दें कि तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के बाद संघ संचालित केंद्र की मोदी सरकार दिसंबर, 2019 में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल संसद में पेश कर सकती है.

एक अंग्रेजी वेबसाइट ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी गई है. टाइम्स नाऊ ने सूत्रों के हवाले से बताया कि कॉमन सिविल कोड (यूसीसी) का मसौदा तैयार किया जा रहा है. यह भी बता दें कि यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल आरएसएस के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा रहा है. खास तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी कानून के रूप में इसे लागू करने की मांग कर रहा है. न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले लॉ कमिशन की ओर से कानून मंत्रालय को भेजे परामर्श पत्र में कहा कि यूसीसी की अभी जरुरत नहीं है. संविधान सभा मे हुई बहस से पता चलता है कि यूसीसी को लेकर सभा में भी सर्वसम्मति नहीं थी. कई लोगों का मानना है कि यूसीसी और पर्सनल लॉ सिस्टम साथ-साथ रहना चाहिए, जबकि कुछ का मानना था कि यूसीसी को पर्सनल लॉ की जगह लाया जाना चाहिए.बहस के दौरान कुछ का यह भी मानना था कि यूसीसी का मतलब धर्म की आजादी को खत्म करना है.

अब सवाल यह है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है और इसे आरएसएस क्यों लागू करवाना चाहता है? असल में यूनिफॉर्म सिविल कोड, समान नागरिक संहिता है. देश के सभी नागरिकों पर एक ही कानून लागू होगा, चाहे वह किसी जाति या धर्म का हो. इसे डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर अपने जीतेजी लागू करना चाहते थे. मगर, कांग्रेस और नेहरू ने इसका विरोध किया. क्योंकि, कांग्रेस, नेहरू और उनकी पूरी मंडली जानती थी कि अगर डॉ.अम्बेडकर के अनुसार कॉमन सिविल कोड लागू हो गया तो सभी को समान अधिकार देने होंगे. इसलिए कॉमन सिविल कोड का उस समय विरोध किया और अब उसे लागू करना चाहते हैं. ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा है कि हिन्दुओं के आधार पर कॉमन सिविल कोड को रूप दे सकें. यदि देखा जाए तो तीन तलाक को खत्म करने के पीछे शासन-प्रशासन पर कब्जा करने वाले यूरेशियन ब्राह्मणों की एक बहुत ही भयंकर साजिश थी जो अब उभर कर सामने आ गई है. असल में तीन तलाक के माध्यम से निशाना मुसलमानों पर लगाया गया. लेकिन, शिकार एससी, एसटी और ओबीसी बने. क्योंकि, तीन तलाक को इसलिए खत्म किया गया है ताकि ‘‘कॉमन सिविल कोड’’ को आसानी से लागू किया जा सके. इसलिए सबसे पहले तीन तलाक को खत्म करने के लिए ब्राह्मणों ने षड्यंत्र किया.

षड्यंत्र यह था कि अक्टूबर 2015 में कर्नाटक की रहने वाली ब्राह्मणवादी हिन्दू महिला फूलवंती उसके पति प्रकाश के बीच शादी को लेकर झगड़ा हुआ और उसके पति प्रकाश ने फूलवंती को तलाक अर्थात रिस्ता तोड़ दिया. फूलवंती ने हिन्दू उत्तराधिकारी कानून के तहत पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 16 अक्टूबर 2016 को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू उत्तराधिकारी के बारे में कमियों को दशार्ते हुए टिप्पणी की. हिन्दू कमियों पर बात उठते ही प्रतिवादी ब्राह्मण वकील शासक वर्ग द्वारा बनाए गये प्लान के अनुसार हिन्दू के मामलों को मुस्लिमों के तीन तलाक से जोड़ दिया. फिर ब्राह्मण वकील ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में भी बहुत से ऐसे कानून हैं जो महिलाओं के खिलाफ हैं. यह सुनते ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव की पड़ताल करने के लिए देश के मुख्य न्यायाधीश को एक खास बेंच गठित करने का आदेश दे दिया. बस यहीं से प्रकाश व फूलवंती की सुनवाई हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया और मुस्लिमों में तीन तलाक का नया मुद्दा बनाकर अंततः उसे खत्म कर दिया.

इसी प्लान के अनुसार ही फरवरी 2016 में ही उत्तराखण्ड की मुस्लिम महिला शायरा बानों ने अपने पति द्वारा दिए गए तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा चुकी थी. तब से ब्राह्मणवादी वकील, जज और सरकार तीन तलाक को खत्म करने के लिए समय-समय पर मुद्दा बनाकर उछालते रहे. अब यहाँ पर गौर करने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट में जब केस हिन्दू उत्तराधिकारी कानून के तहत हिन्दू का मामला चल रहा था तो सुप्रीम कोर्ट या प्रतिवादी को मुस्लिमों ने तीन तलाक का मामला क्यों उठाया? यह मामला इसलिए उठाया ताकि तीन तलाक को खत्म कर कॉमन सिविल कोड को आसानी से लागू किया जा सके. यदि सुप्रीम कोर्ट में मामला हिन्दू का चल रहा था तो फैसला हिन्दू के पक्ष या विरोध में होना चाहिए था, लेकिन फैसला मुसलमानों में तीन तलाक को लेकर न केवल जानबूझकर मामला उठाया गया बल्कि मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव जांच कमेटि भी गठित किया गया.

दूसरा सवाल यह है कि तीन तलाक को खत्म कर कॉमन सिविल कोड क्यों लागू करना चाहते हैं? इसका जवाब है कि कॉमन सिविल कोड पर सरकार का मानना है कि देश में सभी धर्मों पर केवल एक ही कानून लागू होगा. वह चाहे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईशाई, बौद्ध और जैन ही क्यों न हो. जबकि, देश में अलग-अलग जाति, अलग-अलग धर्म के लोग निवास करते हैं. साथ ही उनकी अलग-अलग कस्टमरी लॉ, परम्पराएं, व्यवस्था और रिवाज हैं. यदि कॉमन सिविल कोड लागू होगा तो देश के अलग-अलग जाति, समूह, सांस्कृति, धर्म के लोगों पर एक ही कानून लागू हो जायेगा. इससे न केवल उनकी पहचान खत्म हो जाएगी, बल्कि उनका इतिहास भी मिट जायेगा. यही कारण है कि यूरेशियन ब्राह्मण देश में कॉमन सिविल कोड लागू करके देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजनों के इतिहास और पहचान को खत्म करना चाहते हैं. क्योंकि, अगर कॉमन सिविल कोड लागू होगा तो लोकतंत्र के चारों स्तम्भों पर कब्जा करने वाले यूरेशियन ब्राह्मण कॉमन सिविल कोड को 100 प्रतिशत हिन्दू और हिन्दू धर्म के आधार पर कानूनी रूप देंगे और सभी धर्म के ऊपर जबरन थोपेंगे. जो कानून हिन्दुओं पर लागू होगा, वही कानून मुसलमान, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई और क्रिश्चियनों पर भी लागू होगा.

इसका मतबल यह है कि जो ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) में कर्मकाण्ड, पाखण्डवाद, अंधविश्वास और देवी-देवताओं की पूजा होती है, इसी को सभी धर्म के लोगों के ऊपर जबरन थोपेंगे. जबकि, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन और लिंगायत धर्म में हिन्दू धर्म की एक भी मान्यताएं स्वीकार नहीं है. जब उपरोक्त धर्म के लोग हिन्दू धर्म के नियमों को मानने या उनके कर्मकाण्डों को करने से इनकार केरेंगे तो यूरेशियन ब्राह्मण उन्हें एक देश, एक कानून (कॉमन सिविल कोड) का उलंघन करने का आरोप लगाते हुए उन्हें देशद्रोही घोषित करेंगे और उनके ऊपर ज्यादा अन्याय और अत्याचार करेंगे. यही कारण है कि यूरेशियन ब्राह्मण एक देश, एक कानून अर्थात कॉमन सिविल कोड लागू करना चाहते हैं. 

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