मानो या ना मानों! लेकिन, महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत ना मिलना भी ईवीएम घोटाला है. भले ही यह बात आम लोगों को पता नहीं है, लेकिन यह बात अनुमान और बयान के आधार पर 100 प्रतिशत सही है. क्योंकि, बीजेपी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस भी शासक जातियों की ओरिजनल पार्टी है. शासक जातियों में एक खासियत होती है. वह यह कि शासक जातियों के लोग कोई भी काम बगैर प्लान बनाएं नहीं करते हैं. जब भी वे कोई काम करते हैं तो उसके पीछे उनका मकसद केवल शासक बनने का ही होता है. शासक बनने के लिए शासक जाति के लोग हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं. हर किसी को जानकर हैरानी होगी कि उनके कुछ हथकंडे खुद के ही विरोध में होते हैं. इस वजह से मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को लगता है कि शासक जाति के लोग खुद के विरोध में हथकंडे नहीं अपना सकते हैं. जबकि, ऐसा सोचना खुद को धोखा देने के समान है.
उदाहरण के लिए जैसे जम्मू-कश्मीर में मंदिर तोड़े जाने के विरोध में विहिप, अपने ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की चेतावनी दे रहा है. इसी तरह से संघ की अनुसंगिक किसान संगठन सरकार के खिलाफ कई बार प्रदर्शन कर चुका है. जबकि, संगठन और सरकार दोनों उन्हीं लोगों के हैं. इसके बाद भी अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करके भोलेभाले लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं, ऐसे कई उदाहरण हैं. ठीक यही रवैया ईवीएम घोटाले को दबाने के लिए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में किया गया है. भले ही महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत ना मिलने का कारण भाजपा नेताओं की मनमानी या अन्य कारण बताए जा रहे हैं. लेकिन, हकीकत कुछ अलग है. हकीकत यही है कि ईवीएम घोटाले के मुद्दे को दबाने के लिए जानबूझकर बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में बहुमत से दूर रही. इस षड्यंत्र को मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को समझना होगा.
बता दें कि ईवीएम में घोटाला होता है, यह बात स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी मान चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को ईवीएम में वीवीपीएटी मशीन लगाने के लिए 08 अक्टूबर 2013 को आदेश देते हुए कहा था कि ‘‘ईवीएम में बगैर वीवीपीएटी मशीन लगाए, निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वतंत्र रूप से चुनाव नहीं हो सकता है’’ इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि वीवीपीएटी से निकले वाली कागजी मतपत्रों की 100 प्रतिशत गिनती करनी होगी. लेकिन, चुनाव आयोग, कांग्रेस और बीजेपी की मिलीभगत ने वीवीपीएटी से निकले वाली कागजी मतपत्रों की 100 प्रतिशत गिनती पर रोक लगाने के लिए 56-डी, 56-सी और 49-एमए रूल बना दिया. इसके बाद बहुजन क्रांमि मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक वामन मेश्राम ने ईवीएम घोटाले के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया. दबाव में आकर चुनाव अयोग ने ईवीएम में वीवीपीएटी मशीन तो लगा दिया, लेकिन वीवीपीएटी से निकले वाली कागजी मतपत्रों की 100 प्रतिशत गिनती नहीं की, केवल 5 विधानसभाओं के 5 ईवीएम मशीनों का मिलान किया वो आधा-अधूरा.
इसके बाद वामन मेश्राम 2018 में बहुजन क्रांति मोर्चा के माध्यम से पूरे देश में ईवीएम भंडाफोड़ परिवर्तन निकाली. फिर 2019 में 26 जून से पूरे देश में राष्ट्रव्यापी ईवीएम भंडाफोड़ परिवर्तन यात्रा चला रहे हैं. इस ईवीएम भंडाफोड़ परिवर्तन यात्रा से देश के कोने-कोने में बैठे लोगों को पता चल रहा है कि ईवीएम में घोटाला होता है और यह ईवीएम घोटाला कांग्रेस और बीजेपी दोनों मिलकर कर रही हैं. ईवीएम घोटाले को लेकर पूरे देश में हो रही चर्चा से बीजेपी के अंदर डर हो गया है कि अगर, सभी सीटों पर बीजेपी जीत जायेगी तो यह सिद्ध हो जायेगा कि बीजेपी ने ईवीएम में सेटिंग की थी. क्योंकि, चुनाव के दौरान हरियाणा के असांध सीट से एक बीजेपी प्रत्याशी ने 100 प्रतिशत दावा किया था कि हमारी (बीजेपी) की ईवीएम में सेटिंग है. आप कोई भी बटन दबाओगे, वोट कमल पर ही जायेगा. उन्हांने इतना तक दावा किया था कि ईवीएम सेटिंग से हम यह भी बता सकते हैं कि किस बूथ पर किसने, कितना वोट दिया है.
यह बात खुलते ही बीजेपी के अंदर कोहराम मच गया. इसलिए इस बात को झुठलाने के लिए बीजेपी ने जानबूझकर कम सीटों पर कब्जा किया. ताकि, लोग सोचने पर मजबूर हो जायें कि अगर, ईवीएम में सेटिंग होती तो बीजेपी को कम सीटें नहीं मिलती, बल्कि बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा में पूर्ण बहुमत में होती. कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा नहीं हो सकता है. उनका कहना है कि जानबूझकर बीजेपी कम सीटें क्यों जितेगी, इससे दोनों जगहों से उसकी सत्ता जा सकती है? लेकिन, ऐसा सोचना गलत है. क्योंकि बीजेपी बहुत अच्छी तरह से जानती है कि भले ही उसको दोनों राज्यों में पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा, लेकिन दोनों राज्यों में सरकार उसी की बनेगी. इसको इस तरह से समझा जा सकता है कि जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अमेठी से बीजेपी के स्मृति ईरानी को जिताने के लिए वहाँ से जानबूझकर हार गये थे. इसके पीछे कारण यह था कि राहुल गांधी अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनाव लड़े और उनको अच्छी तरह से पता था कि अगर वे अमेठी में हार जाते हैं तो वे वायनाड से जीत रहे हैं.
अगर राहुल गांधी वायनाड से नहीं लड़े होते केवल अमेठी से लड़े होते तो वे अमेठी से नहीं हारते. यही कारण था कि स्मृति ईरानी को जीताने के लिए ही राहुल गांधी वायनाड और अमेठी से चुनाव लड़े थे. यानी कहने का मतलब यह है कि जैसे राहुल गांधी को पहले से पता है कि वे वायनाड से जीत जायेंगे, ठीक उसी प्रकार से बीजेपी भी जानती है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में बहुमत में नहीं होने के बाद भी सरकार उनकी ही बनेगी. इसका उदाहरण सामने है कि हरियाणा में अल्मत होने के बाद भी सरकार बीजेपी की ही बनी है. ठीक इसी तरह से महाराष्ट्र में होने वाला है. कुल मिलाकर ईवीएम के मुद्दे को दबाने के लिए ही बीजेपी ने जानबूझकर कम सीटें जीती है.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
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