देश में जब-जब चुनाव आया है तब-तब राजनीतिक पार्टियाँ गरीब जनता को उल्लू बनाने से पीछे नहीं हटी हैं. बात चाहे कांग्रेस सरकार की हो या बीजेपी सरकार की. कांग्रेस-बीजेपी दोनों इन मामलों में एक दूसरे से दस कदम आगे हैं. यही करते-करते तकरीबन 72 साल हो गया. इन 72 सालों में सरकारें कई योजनाएं गरीबों के नाम पर शुरू की मगर गरीबों को केवल एक सरकारी योजनाएं लेने में पूरा पाँच बीत गया. अगर, बमुश्किल मिल भी गया तो यही योजनाएं गरीबों के लिए मुसिबत साबित होने लगते हैं. जैसे मोदी सरकार में प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों के लिए मुसिबत बनी हुई है.
केन्द्र की मोदी सरकार ने जब 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना की घोषणा की तो गरीबों को लगा था कि उनका पक्का मकान बनाने का सपना पूरा हो जाएगा. पर सरकार का एक कार्यकाल खत्म हो गया और सरकार की अनदेखी, योजना की कछुआ चाल, नेताओं और अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया कि साल 2022 तक देश के सभी गरीबों को पक्का मकान देने का मोदी सरकार का वादा पूरा होने वाला नहीं है. साल 2015 में नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि साल 2022 तक सभी के सिर पर छत होगी. इस के लिए यह भी योजना बनी थी कि सरकारी विभागों से घर बनाकर देने के बजाय खुद जरूरतमंद के खाते में पैसे जमा कराया जाए.
‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत गांवदेहात के इलाकों में एक लाख, 60 हजार की रकम और शहरी इलाकों में 2 लाख, 40 हजार की रकम सीधे जरूरतमंद के बैंक खाते में जमा करने का काम किया गया था. इस रकम से एक कमरा, एक रसोई, एक स्टोररूम का नक्शा भी दिया गया था. पर हुआ यह कि जिन लोगों के पास पहले से मकान थे, उन्हें रकम मिल गई और जो लोग बिना छत के प्लास्टिक की पन्नी तानकर अपना आशियाना बनाकर रह रहे थे, उन्हें पक्का मकान देने के बजाय झुनझुना पकड़ा दिया गया. ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव और नगरपालिकाओं की अध्यक्ष, सीएमओ की मिलीभगत से जरूरतमंदों से 10,000 से 20,000 रुपए लेकर योजना की रकम की बंदरबांट कुछ इस तरह हुई कि बिना नक्शे और बिना सुपरविजन के योजना की रकम खर्च कर ली गई. ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत साल 2022 तक देश में सभी लोगों को छत देने की बात कही जा रही है. इस के लिए लक्ष्य और उस के पूरा होने के आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत देख कर आप दंग रह जाएंगे.
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की नगरपरिषद साईंखेड़ा के वार्ड नंबर 14 के एक लाभार्थी की दास्तान ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ की असलियत को उजागर करती है. लाभार्थी को मई, 2018 में पक्का घर बनाने के लिए पहली किस्त के रूप में एक लाख की रकम मिली थी. उन्होंने अपने कच्चा मकान तोड़कर जून महीने में ही पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया था. एक महीने में एक लाख रुपए खर्च में छत तक का काम पूरा हो गया था. लेकिन, दूसरी किस्त की रकम उन्हें नहीं दी गई. लाभार्थी के परिवार के लोग पूरी बरसात, ठंड और भीषण गरमी में प्लास्टिक की पन्नी तानकर अपना गुजारा कर रहे हैं. मगर, एक साल के बाद भी उन्हें दूसरी किस्त की रकम नहीं मिली है. लाभार्थी ने कई बार इसकी शिकायत सरकारी अफसरों के साथसाथ चुने हुए जनप्रतिनिधियों से की, मगर कोई समाधान नहीं निकला. वोट का सौदा करने वाली सरकार के नुमाइंदे भी अब चुप्पी साध कर बैठे हैं.
इसी तरह रायसेन जिले के पटना गाँव के लाभार्थी ने अपना पक्का मकान बनाने के लिए पुराने खपरैल के मकान को तोड़ दिया था. यह सोच कर के वे किराए के मकान में रहने लगे थे कि 4 महीने बाद अपने मकान में वापस रहने लगेंगे. लेकिन, उन्हें भी सालभर बीत जाने के बाद दूसरी किस्त का पैसा नहीं मिला है और उनका पैसा किराए के मकान में खर्च हो रहा है. लोगों का मानना है कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के जमीनी हकीकत पर सही न उतरने से यह योजना कामयाब होती नजर नहीं आ रही है.
यही नहीं खिरका टोला वार्ड नंबर 8 के दो और लाभार्थियों के साथ हुआ. उन्हें भी जून, 2018 में पहली किस्त की रकम मिल चुकी है, पर दूसरी किस्त की रकम के लिए नगरपरिषद के अधिकारी और पार्षद और रुपयों की मांग कर रहे हैं. पीड़ित परिवार के छोटे-छोटे बच्चों ने पूरी गरमी खुले आसमान के नीचे बिताई है और अब बरसात का मौसम है. ऐसे में उनकी मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं. जनता की सेवा के नाम पर चुने गए पार्षद दूसरी किस्त दिलाने के लिए दलाली कर लाभार्थियों से 10,000 से ले कर 20,000 रुपए की रकम खुलेआम मांग रहे हैं. जो लोग पैसे दे देते हैं, उन्हें दूसरी किस्त का पैसा आसानी से मिल जाता है. प्रधानमंत्री आवास योजना’ का फायदा किसी को मिला हो या न मिला हो, पर ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव की दुकानदारी खूब चल निकली है. सरपंच सचिव ने गरीबों को रकम दिलाने के एवज में पैसे वसूल तो किए ही हैं, साथ ही मिल कर गांवगांव में अपनी ईंट, गिट्टी, लोहा, सीमेंट की दुकानें खोल ली हैं. अगर इन की दुकान से सामान खरीदा तो समय पर किस्त मिल जाती है, नहीं तो सालों तक दूसरी किस्त की रकम नहीं मिलती है. कई सरपंचों ने नेताओं के इशारों पर गांव की रेत खदानों पर गैरकानूनी कब्जा कर के करोड़ों रुपए की रेत साफ कर दी है. गांव देहात के इलाकों में 500 रुपए प्रति ट्रौली मिलने वाली रेत आज 2,000 रुपए प्रति ट्रौली मिल रही है. बता दें कि प्रधानमंत्री आवास योजना’ में नेता से लेकर अधिकारी, कर्मचारी तब बड़े पैमाने पर गड़बड़झाला कर रहे हैं.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
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