रविवार, 3 नवंबर 2019

चावल घोटाले की खिचड़ी


देश में जब भी कोई घोटाला होता है तो इन घोटालों के लिए केवल वर्तमान सरकार ही दोषी नहीं है, बल्कि पूर्वर्ती सरकार भी दोषी है. कुल मिलाकर कहने का मतलब साफ है कि देश में कांग्रेस और बीजेपी की ही सरकारें रही हैं और ये दोनों पार्टियाँ अपने-अपने समय में जमकर घोटाला किया. कुछ ऐसा ही मामला बिहार के नीतीश और बीजेपी मिलीजुली सरकार में भी देखने को मिला जहाँ चावल घोटाले की खिचड़ी काफी दिनों से पक रही थी. पिछले 8 सालों से चल रहे करोड़ों अरबों रुपए के चावल घोटाले को लेकर अब सरकार की नींद टूटी है.

अब तक रामदास एग्रो इंडस्ट्री के पुरुषोत्तम जैन, प्रीति राइस मिल के पंकज कुमार, मौडर्न राइस मिल के राजेश लाल और पावापुरी राइस मिल के दिनेश गुप्ता की तकरीबन 8 करोड़ की जायदाद जब्त की जा चुकी है. बिहार राज्य खाद्य आपूर्ति निगम हर साल चावल मिलों को चावल निकालने के लिए सरकारी धान देता है. निगम द्वारा दिए गए कुल धान से निकलने वाले चावल का 67 फीसदी चावल निगम को लौटाना होता है. आरोपी मिल मालिकों ने निगम को चावल नहीं लौटाया और खुले बाजार में उसे बेच दिया. यह भी साफ कर दें कि इस घोटाले में खुद सरकार भी शामिल है. वर्ना इतना बड़ा घोटाला बगैर सरकार की मिलीभगत से करना संभव नहीं है. यही कारण है कि बिहार में चावल मिल मालिकों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार नाकाम रही है.

इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 5 सालों से चावल मिल मालिकों के पास बिहार राज्य खाद्य निगम के 1,200 करोड़ रुपए बकाया हैं. राज्य में 1,300 चावल मिलें ऐसी हैं, जिन्होंने धान लेकर सरकार को चावल नहीं लौटाया, इसके बाद भी धान कुटाई के लिए उन मिलों को दोबारा धान दिया जा रहा है. बता दें कि पटना की 64 चावल मिलों पर 55.61, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण की 153 मिलों पर 63, बक्सर की 152 मिलों पर 101, औरंगाबाद की 207 मिलों पर 62.15, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, गया की 49 मिलों पर 40, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78, नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए की रकम बकाया है. इसके अलावा सिवान, अरवल, शेखपुरा, मधुबनी, सारण, समस्तीपुर, लखीसराय, गोपालगंज सहित कई जिलों की सैकड़ों छोटी-मोटी चावल मिलों पर तकरीबन 90 करोड़ रुपए बकाया हैं.

असलियत में चावल घोटाले का यह खेल पिछले 8 सालों से चल रहा था. साल 2011-12 में राज्य खाद्य निगम ने 17 लाख, 6 हजार टन धान किसानों से खरीदा था. सारा धान चावल मिलों को दे दिया गया था. चावल मिलों से 14 लाख, 47 हजार टन चावल सरकार को मिलना था, पर उन्होंने केवल 8 लाख, 56 हजार टन चावल ही लौटाया है. बाकी चावल चावल मिलों ने आज तक नहीं लौटाया. उस चावल की कीमत 1,200 करोड़ रुपए है. बिहार महालेखाकार ने पिछले साल की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि धान को लेकर मिलरों ने सरकार को 434 करोड़ रुपए का चूना लगाया था. इस के बाद भी राइस मिल मालिकों पर कानूनी नकेल कसने में सरकार पता नहीं क्यों सुस्त रही?

बिहार राज्य खाद्य निगम के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, केवल 50 हजार रुपए की गारंटी रकम पर ही 3 से 6 करोड़ रुपए के धान चावल मिलों को सौंप दिए जाते रहे. चावल मिलों को धान देने के बारे में नियम यह है कि भारतीय खाद्य निगम मिलों से एग्रीमैंट करता है, जिसके तहत मिलर पहले निगम को 67 फीसदी चावल देते हैं, जिसके बदले में उन्हें रसीद मिलती है. उस रसीद को दिखाने के बाद ही निगम द्वारा मिलों को 100 फीसदी धान दिया जाता है. इस मामले में हेराफेरी के बाद भी राइस मिलों को सरकारी धान कुटाई के लिए मिलता रहा और वे घोटाले का खेल साल दर साल खेलते रहे.
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

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