मौत के मुहाने पर खड़ा मूलनिवासी
दै.मू.ब्यूरो/नई दिल्ली
आज देश के मूलनिवासी बहुजन समाज को मौत के मुहाने पर खड़ा करने में मनुवादी सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ा है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में जहां घातक बीमारियों की बेहद जरूरी एंटीबायोटिक दवाओं को महंगा कर गरीबों की पहुंच से दूर कर दिया गया है वहीं दूसरी तरफ किसी भी तरह से उपलब्ध होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं को पहले से ज्यादा निष्क्रिय बना कर मूलनिवासी बहुजन समाज को मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया गया है। इस बात का खुलासा तब हुआ जब सोमवार 05 फरवरी 2018 को यूके की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत में बिकने वाली 64 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं अवैध हैं।
दैनिक मूलनिवासी नायक प्रमुख संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि भारत में एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर यूके की एक नई रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बिकने वाली लाखों एंटीबायोटिक दवाओं की रोकथाम के लिए मोदी सरकार ने अब तक कोई कठोर कानून नहीं बनाया है। जिसका नतीजा सामने है कि भारत में 64 प्रतिशत अवैध दवाओं को धड़ल्ले से बेंचा जा रहा है। गौरतलब है कि यूके में काफी लंबे अरसे से भारत में बिकने वाली दवाओं पर रिसर्च चल रहा था। लंबे रिसर्च के बाद जो नतीजा सामने आया उसे देखकर रिपोर्ट तैयार करने वाले ही चौंक उठे। जब पता चला कि भारत में बिकने वाली 64 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं अवैध हैं जिसे मंल्टीनेशनल कंपनियां इस सबके बावजूद इन एंटीबायोटिक दवाओं को भारत में बेच रही हैं और बना भी रही हैं।
आपको बताते चलें कि यह रिसर्च क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में की गई है, इसमें पाया गया कि 2007 से 2012 के बीच 118 प्रकार की विभिन्न एफडीसी एंटीबायोटिक भारतीय बाजार में बिकती हैं, जिसमें से 64 प्रतिशत ऐसी हैं जो सेंट्र ड्रग्स स्टेंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन से मंजूरी भी नहीं मिली है। इस प्रकार भारत में बिकने वाली यह दवाईयां पूरी तरह से अवैध ही नहीं, बल्कि जानलेवा भी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी थी कि एंटीबायोटिक दवाएं जो वर्तमान में क्लिनिकल विकास में हैं, बीमारी से निपटने के लिए अपर्याप्त हैं। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि केन्द्र में आने के बाद मोदी सरकार ने अमेरिका दौरे पर भारत में दवा बनाने वाली विश्व की कई कंपनियों के सीईओ के साथ नाश्ते के टेबल पर जो समझौता किया था उसमें से पहला यह था कि भारत में दवाओं के दाम भारत सरकार तय न कर दवा बनाने वाली कंपनियां ही तय करेंगी। दूसरा यह था कि भारत में बेहद घातक बीमारियों की बेहद जरूरी दवाओं को इतना ज्यादा महंगा कर दिया जाए जो गरीबों की पहुंच से दूर हो जाए। उक्त बातों को र्पूणरूप से विश्लेषण करने से पता चलता है कि उस समझौते में एक समझौता यह भी रहा होगा कि जो भारत में एंटिबायोटिक दवाएं बेंची जा रही हैं उन एंटिबायोटिक दवाओं को निष्क्रिय कर दिया जाए। यही कारण है कि आज भारत में मल्टीनेशनल कंपनियां न केवल धड़ल्ले से अवैध दवाओं को बेंच रही हैं, बल्कि मोदी सरकार बेचवा भी रही है।
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