शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

लंदन के बाद अब भारत में लगे आरएसएस गो बैक के नारे

लंदन के बाद अब भारत में लगे आरएसएस गो बैक के नारे

दै.मू.ब्यूरो/असम
अभी पिछले ही दिन भीमा कोरेगांव हिंसा के खिलाफ लंदन की सड़कों पर न केवल मोदी विरोधी नारे लगाए जा रहे थे, बल्कि भारत में ब्राह्मणवाद के खिलाफ लंदन में हल्ला बोला भी बोला गया था अभी इसे दो दिन भी नहीं बीता कि वही अब ‘आरएसएस गो बैक’ के तेल नारों से पूरा भारत गूंज उठा है। इसका बेहतरीन नजारा तब देखने को मिला जब बृहस्पतिवार 25 जनवरी 2018 को भीमाकोरेगांव में यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा खूनी हिंसा को अंजाम देने देने वाले मिलिंद एकबोट, मनोहर भिड़े और आनन्द दवे को फांसी की मांग रकते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम के दिशानिर्देशन में भारत मुक्ति मोर्चा एवं सभी ऑफसूट संगठनों द्वारा उŸार प्रदेश के 75 जिलों में उग्र धरना प्रदर्शन कर डीएम को ज्ञापन सौंपा गया उसी दिन असम की सड़कों पर आरएसएस गो बैंक के नारे भी लगाए जा रहे थे।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देत हुए बताया कि देश में महज एक फिल्म ‘पद्मावत’ को लेकर हो रही हिंसा और प्रदर्शनों के शोर में उत्तर-पूर्व से आ रही चिंताजनक खबरों को ब्राह्मणवादी मीडिया द्वारा एक साथ बड़ी कुशलता के साथ दबा दिया गया है। असम के पहाड़ी जिले दीमा हसाओं की सड़कों पर ”आरएसएस गो बैक यानी ‘‘आरएसएस वापस जाओ’’ के नारे लग रहे हैं, लेकिन ये तस्वीरें टीवी से पूरी तरह नदारद हैं और प्रिंट माध्यम में भी तकरीबन नहीं के बराबर हैं। नगालैंड और मणिपुर के कुछ उग्रवादी गुटों ने गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की यह घोषणा करते हुए की है कि उन्होंने इस गणतंत्र का हिस्सा होना स्वेच्छा से नहीं चुना था। उधर, नगालैंड के सबसे बड़े उग्रवादी समूह एनएससीएन(आइएम) ने एक बयान जारी करते हुए यहां विधानसभा चुनावों के बहिष्कार की बात की है और कहा है कि चुनाव से पहले नगा समझौते को लागू कर दिया जाना चाहिए। 
आपको बताते चलें कि असम में दीमा हसाओं की सड़कों पर उतरे नगाओं की आवाज और बैनर-पोस्टर में झलक रहा एक शख्स का नाम यह बताने के लिए काफी है कि नगा समझौते के साथ आरएसएस का रिश्ता क्या है और आखिर इस मामले में भारत सरकार ने कैसे नगाओं के साथ धोखा किया है? करीब ढाई साल पहले 3 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर अचानक एलान किया था कि उसने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के साथ एक समझौता कर लिया है और यह संधि न केवल समस्या का अंत होगी बल्कि एक नए भविष्य का आरंभ भी करेगी। इस बीच एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में आरएसएस की ओर से नगा समझौते का एक मसौदा दस्तावेज सामने रखा गया जिसे उत्तर-पूर्व में चार दशक से कथित रूप से सक्रिय संघ के कार्यकर्ता जगदम्बा मल्ल ने तैयार किया है। असम की सड़कों पर इन्हीं सज्जन के खिलाफ पिछले दो दिनों से नारे लग रहे हैं और ‘‘आरएसएस वापस जाओ’’ की मांग की जा रही है। 
दरअसल मामला यह है कि जगदम्बा मल्ल पिछले दिनों उत्तर-पूर्व में बीजेपी की चुनावी घुसपैठ में अहम व निर्णायक भूमिका निभाने वाले व्यक्ति हैं। उनका निजी प्रयास है जो 45 साल से ज्यादा समय तक नगा मसले पर उनके अध्ययन की उपज है। वे कि केंद्र को समझौता लागू करने के लिए अंतिम समयसीमा 31 जनवरी, 2018 की तय करनी चाहिए। इस समय सीमा में अब केवल छह दिन का वक्त शेष है, जबकि नगालैंड सहित दो अन्य राज्यों में चुनाव आचार संहिता पहले ही लग चुकी है। मल्ल ने प्रस्ताव दिया है कि नगालैंड के पांच सीमावर्ती जिलों के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर एक सीमांत नगालैंड नाम के केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया जाए। जबकि यह नगालिम की मांग के एकदम खिलाफ है और इसके चलते सीमावर्ती राज्यों को भी दिक्कत होगी, इसी बात ने मणिपुर के नगालैंड से लगे जिलों सेनापति, तामेंगलांग, उखरुल, चंदेल, नोनी, कामजांग और तेंगनोपाल के लोगों को चिंता में डाल दिया है, जबकि दीमा हसाओं के लोग सड़कों पर उतर चुके हैं और आज उनहोंने 12 घंटे के बंद का एलान कर दिया है। इससे यह साबित होता है कि अब न केवल बीजेपी, बल्कि आरएसएस के ऊपर खतरा मंडराने लगा है।

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