शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

बजट 2018 चुनावी घोषणा पत्र


बजट, गरीबों और किसानों के लिए मौत का सौदा
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
 मोदी सरकार द्वार पेश किया गया आम बजट जहां गरीबों के लिए चंदा मामा की कहानियों से अधिक कुछ नहीं है। वहीं किसानों के लिए एक तरह से मौत का ही सौदा है। आप कहते हैं कि चांद पर जाएंगे लेकिन वहां तक जाने के लिए आपके पास वाहन कहां है? रेलवे की छोड़िये, जो ये किसान और गरीब की बात करते हैं वो भी हकीकत से दूर है। हकीकत तो यह है कि रेलवे खत्म हो चुका है, दिवालिया हो चुका है। यही नहीं इस बजट में न तो महिलाओं के लिए कुछ है  और न ही ओबीसी के लिए कुछ दिया गया है। रह गई बात शिक्षा और स्वास्थ्य की तो इस पर सेस लगाकर गरीबों की पहुंच से दूर कर दिया है। मगर वहीं कारपोरेट घरानों के लिए पिटारा खोल दिया गया है। हकीकत में यह तो सिर्फ अमीरों का ही बजट है। 
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को पांचवां और मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट पेश किया। इस बजट से उन्होंने संदेश दिया है कि नरेंद्र मोदी सरकार इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए तैयार है। जाहिर तौर पर राजनीतिक विश्लेषकों की भी राय है कि इस बजट ने ऐसे संदेश दिए हैं कि लोकसभा चुनाव इस साल के आखिर तक हो सकते हैं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले सरकार का यह अंतिम आम बजट था। इस बजट से भले ही देश के किसानों को काफी उम्मीदें थीं, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में किसानों का जिक्र भी काफी देर तक किया, लेकिन क्या यह बजट सच में किसानों के दुख दर्द को दूर करने वाला साबित होगा और क्या इस बजट से देश के किसानों की बदहाल खस्ता हालत में कुछ सुधार हो पाएगा? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब देश का हर किसान जानना चाहता है। यदि देखा जाए तो इस बजट में सरकार ने किसानों का ख्याल क्यों रखा है? वह इसलिए की किसानों के भरोसे ही मोदी मंडली 2019 का चुनाव जीतना चाहती है। यह इसलिए कहा जा रहा है कि कई ऐसे मसले हैं जिन्हें सरकार ने छोड़ दिया है। बजट पेश करते हुए बताया जा रहा है कि सरकार ने 1.5 घंटे के अंदर 27 बार किसानों का नाम लिया। केवल 27 बार नाम लेने से ही किसानों को खुश होने की बात नहीं, बल्कि सोचनीय बात तो यह है कि सरकार ने किसानों को कर्ज के सिवा दिया क्या है? जो मोदी सरकार के बीते साल के बजट में क्रमशः 06, 08,10 लाख करोड़ रूपये थे उसे मोदी ने बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रूपये कर दिया है। यानी किसानों को हर हाल में सरकार या शाहूकरों से कर्ज लेना ही पड़ेगा, यह भी तय है जब कर्ज लेना होगा तो किसानों को मजबूरन आत्महत्या भी करनी होगी। नतीजा यही निकल रहा है कि सरकार किसानों के लिए मौत का ही बजट पेश कर रही है। सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर किया जायेगा और किसानों को उनकी लागत के ऊपर 50 फीसदी मुनाफा देंगे। मगर बजट में कर्ज के सिवा कुछ भी नहीं दिया। अहम सवाल तो यह है कि क्या सरकार का यह पहला बजट है जिसमें किसानों का ध्यान रखा गया है? इसके पहले सरकार ने किसानों पर क्यां ध्यान नहीं दिया? इससे साबित होता है कि सरकार ने आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए किसानों पर ज्यादा फोकस किया है। यानी किसान आत्महत्याएं कर रहे थे, कृषि विकास दर बढ़ नहीं रही थी। इसके बाद भी सरकार के जुबान पर किसानों का नाम तक नहीं आता था।  दरअसल ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जोर देने की असल वजह राजनीतिक तो है ही, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी ऐसा करना उनकी मजबूरी थी।
आपको बताते चलें कि मोदी सरकार ने जिस तरह से किसानों को कर्ज के सिवा कुछ भी नहीं दिया है ठीक उसी प्रकार से शिक्षा और हेल्थ पर एक फीसदी सेस लगा कर शिक्षा और स्वास्थ्य को इतना ज्यादा महंगा बना दिया है कि गरीबों का वहां तक पहुंच पाना मुश्किल नहीं, बल्कि उनकी सोच से भी बाहर हो गया है। मोदी सरकार के आने बाद रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया गया। पहले रेल बजट अलग से पेश किया जाता था और पूरे देश की नजरें, रेल किराये से लेकर नई ट्रेनों पर भी टिकी रहती थी। लेकिन रेल के लिए बजट पर सरकार ने कोई बड़ी घोषणा नहीं की। इस साल रेल बजट में वित्त मंत्री ने रेलवे के विस्तार के लिए केवल 1.48 लाख करोड़ रुपये ही आवंटित किए हैं। जबकि बजट भाषण में रेलवे की समस्याओं और आगे की योजनाओं का जिक्र तक नहीं किया। 
 विशेष संवाददाता ने बताया कि कॉरपोरेट टैक्स का दायरा व्यापक कर दिया गया है। इसके तहत जो कंपनियां पहले 25 करोड़ के टर्नओवर करती थीं अब इसमें 250 करोड़ तक के टर्नओवर पर भी 25 फीसदी ही टैक्स लगेगा। जबकि वही बजट भाषण के कुल 32 पन्नों में से जब जेटली तीन चौथाई से अधिक पलट चुके थे तो तब उस पन्ने की बारी आई जिसका वेतनभोगी कर्मचारियों या कहें कि इनकम टैक्स चुकाने वालों को इंतजार था। मगर बजट भाषण 26वां पन्ना उलटते हुए जेटली ने कहा कि चूंकि उनकी सरकार ने पिछले तीन साल में व्यक्तिगत आयकर दरों में कई सकारात्मक बदलाव किए हैं, लिहाजा वो इनकम टैक्स की मौजूदा दरों में किसी तरह के बदलाव का प्रस्ताव नहीं कर रहे हैं। मतलब साफ था कि वेतनभोगी कर्मचारियों को टैक्स दरों में कोई राहत नहीं थी दी गई है, यानी ढाई लाख तक की कमाई पर पहले की तरह कोई टैक्स नहीं लगेगा। मगर पाँच लाख रुपये तक की आमदनी पर 5 प्रतिशत टैक्स चुकाना होगा। वहीं पांच से दस लाख रुपये तक की आमदनी पर 20 प्रतिशत और इससे अधिक की कमाई पर 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा। जबकि इस बजट में सैलरीड ही नहीं, आम आदमियों के लिए भी कुछ नहीं है। जिस तरह से महंगाई दर बढ़ रही है उसी हिसाब से आयकर छूट की सीमा में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी और ढाई लाख रुपये तक की सीमा को बढ़ाया जाना चाहिए था। देश-विदेश के अर्थशास्त्री मानते हैं कि बजट में जिन मौजूदा योजनाओं को आगे बढ़ाया गया है, इससे न तो रोजगार बढ़ेगा और न ही आम जनता को किसी तरह की राहत ही मिलेगी।
यही हाल बेरोजगारी की भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा बनाया था। उन्होंने हर साल नई नौकरियों पैदा करने का वादा भी किया था, लेकिन तमाम वादों के बीच बेरोजगारी दर भारत में लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार के हालात ही बताते हैं कि असंगठित क्षेत्र में जो रोजगार की कमी है उसे दूर करना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। विशेषकर देशभर का युवा रोजगार के लिए लगातार प्रदर्शन कर रहा है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो यह है कि जो आम बजट 2018 पेश किया गया है। इसमें रक्षा बजट 2.67 लाख करोड़ से बढ़ाकर 2.82 लाख करोड़ रुपए कर दिया है। भले ही यह देखने में बढ़ा हुआ लगता है मगर ये 2018-19 के संभावित जीडीपी का लगभग 1.58 फीसदी है। यदि उक्त बजट का पूर्ण रूप से विश्लेषण करें तो पता चलता है कि संघ संचालित मोदी सरकार ने गरीब और किसान को लुभाने की कोशिश करके एक तरह से अपना चुनावी घोषणा पत्र रखा है। वो कहते हैं, इस बजट का गरीबों से कोई लेना-देना नहीं है, ये सिर्फ अमीरों का बजट है। असल में मोदी का गुजरात चुनाव ट्रेलर था, राजस्थान उपचुनाव इंटरवल था और 2018 के आम बजट से 2019 में पूरी फिल्म दिखाने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। इसी रणनीति के आधार पर न केवल आम बजट पेश किया गया है, बल्कि सŸा पर कब्जा करने के लिए बजट के रूप में चुनावी घोषणा पत्र जारी किया गया है।

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