गुरुवार, 17 मई 2018

आतंकवाद का जनक ‘‘बाल गंगाधर तिलक’’-राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड



आतंकवाद का जनक ‘‘बाल गंगाधर तिलक’’-राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड
राजस्थान/दै.मू.एजेंसी
इस बात से अब इनकार नहीं किया जा सकता है कि शासक जातियों द्वारा जिन भारतीय इतिहास को दबाया गया था अब उसकी परत दर परत सच्चाई खुलने लगी है। राजस्थान में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा बाल गंगाधर तिलक को आतंकवाद का जनक बताना भले ही किसी को नागवार लगे परन्तु जमीनी हकीकत यही है कि बाल गंगाधर तिलक केवल ब्राह्मणों के लिए स्वतंत्रता सेनानी हो सकते हैं, लेकिन मूलनिवासियों के लिए आतंकवादी से कम नहीं थे। क्योंकि ब्राह्मणों द्वारा 1947 में चलाया गया आजादी का आंदोलन, आजादी का आंदोलन नहीं था, बल्कि यूरेशियन ब्राह्मणों के लिए ही आजादी का आंदोलन था और मूलनिवासी बहुजनों को गुलाम बनाने का आंदोलन था। 

सूत्रों के मुताबिक अंग्रेजी मीडियम के निजी स्कूलों की 8वीं कक्षा के छात्रों की एक किताब में बाल गंगाधर तिलक को ‘आतंकवाद का जनक’ (फॉदर ऑफ टेररिज्म) बताया गया है। ये स्कूल राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं। मामले पर विवाद बढ़ता देख किताब के प्रकाशक ने सफाई दी और इसे अनुवाद की गलती बता दिया। उधर, कांग्रेस ने किताब को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग कर रही है। राजस्थान राज्य पाठ्यक्रम बोर्ड किताबों को हिंदी में प्रकाशित करता है इसलिए बोर्ड से मान्यता पाए अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के लिए मथुरा के एक प्रकाशक की संदर्भ पुस्तक का इस्तेमाल होता है। इसी पुस्तक के अध्याय 22 और पेज संख्या 267 पर तिलक के बारे में लिखा गया है कि उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन का रास्ता दिखाया था, इसलिए उन्हें ‘आतंकवाद का जनक’ कहा जाता है। किताब में तिलक के बारे में 18वीं और 19वीं शताब्दी के राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में लिखा गया है। मथुरा के प्रकाशक स्टूडेंट अडवाइजर पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारी राजपाल सिंह ने बताया कि गलती पकड़ी जा चुकी है जिसे संशोधित प्रकाशन में सुधार दिया गया है। हालांकि राजस्थान के स्कूलों में बाल गंगाधर तिलक का अपमान किए जाने का मामला गलत नहीं है, लेकिन बात को तुल देने के लिए अपमान करने का आरोप गलाया जा रहा है। 

बताते चलें कि भारत में सबसे पहले राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने सन् 1882 में अंग्रेजों के हण्टर कमीशन के समक्ष प्रत्यावेदन देकर गैर ब्राह्मणों को आरक्षण देने की मांग की थी। उसके बाद 26 जुलाई सन् 1902 को छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने रियासत कोल्हापुर में पिछड़े वर्गों के लिए पहली बार 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। सन् 1918 में साउथ बोरो कमीशन के समक्ष शाहूजी महाराज के कहने पर भास्कर राव जाधव ने पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की मांग किया था, जिसका उग्र विरोध करते हुए बाल गंगाधर तिलक ने कोल्हापुर के अथनी गांव में कहा कि ‘तेली, तंबोली, नाई, कोल, कलवार और कुणभटों (कुर्मी) को संसद में जाकर क्या हल चलाना है? यही नहीं बाल गंगाधर तिलक ने ही स्वराज का नारा देते हुए कहा था कि स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, इसे मैं लेकर रहूंगा। लेकिन तिलक ने किस स्वराज की बात की यह बात मूलनिवासियों को आज तक पता नहीं चल सका है। तिलक के स्वराज का अर्थ यह था कि यदि अंग्रेज हम ब्राह्मणों को अपने शासन-प्रशासन मे प्रर्याप्त हिस्सेदारी देते हैं तो उन्हें देश छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। इससे भी भयानक बात यह है कि बाल गंगाधर तिलक ने मूलनिवासियों का इतिहास भी बदलने के लिए काम किया है। तिलक ने ही महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्मोत्सव को बंद करने के लिए गणेश उत्सव शुरू किया था। यानी तिलक ने मूलनिवासी इतिहास को दबा दिया। इससे तिलक मूलनिवासी बहुजनों के लिए आतंकवादी ही है।

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