शुक्रवार, 24 मार्च 2017

आधुनिक भारत में आजादी के दो आंदोलन

आधुनिक भारत में आजादी के दो आंदोलन
 आधुनिक भारत में काँग्रेस (ब्राह्मणों का संगठन) के माध्यम से अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने का गोखले, तिलक, गांधी, नेहरू आदि के माध्यम से आंदोलन चला।
दूसरा :- ब्राह्मणों की गुलामी से आजादी पाने का आंदोलन 1848 से 1956 तक चलाया गया। यह आंदोलन ज्योतिराव फुले, शाहूजी महाराज, रामासामी पेरियार, डॉ.अंबेडकर आदि के द्वारा मूलनिवासियों की आजादी के लिए चलाया गया।
👉आजादी का आंदोलन :- गोखले, तिलक, गांधी, नेहरू के साथ फुले, शाहू, पेरियार, अंबेडकर ने मिलकर आजादी का आंदोलन नही चलाया बल्कि इन्होंने अलग अर्थात गोखले, तिलक, गांधी, नेहरू की गुलामी से मुक्त होने का आंदोलन चलाया। इस प्रकार भारत में आजादी के दो आंदोलन चले अर्थात फुले, शाहूजी, पेरियार, अंबेडकर काँग्रेस द्वारा चलाये हुए आजादी के आंदोलन में शामिल नही हुए क्योंकि यह ब्राह्मणों का ब्राह्मणों की आजादी के लिए बनाया गया संगठन था और उससे विदेशी ब्राह्मण आजाद हुए और मुलनिवासी बहुजन विदेशी ब्राह्मणों के गुलाम हो गये अर्थात आजादी का आंदोलन मुलनिवासी बहुजनों की आजादी का आंदोलन नही था, बल्कि विदेशी ब्राह्मणों की आजादी का आंदोलन था। हमें पाठ्यक्रम में एक ही आजादी का आंदोलन पढाया जाता है जो काँग्रेस (ब्राह्मणों का संगठन) के माध्यम से गोखले, तिलक, गांधी, नेहरू आदि द्वारा चलाया गया और दूसरा आन्दोलन फुले, शाहू, पेरियार, अंबेडकर आदि के द्वारा ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्त होने के लिए चलाया गया आजादी का आंदोलन पढाया ही नही जाता। अगर भारत में आजादी के दो आंदोलन चले तो लोग विचार करेंगे कि भारत में आजादी के दो आंदोलन क्यों चले ? इस पर मुलनिवासी विचार विमर्श करेगें, उनके साथ की जा रही धोखेबाजी का भांडाफोड़ हो जाएगा इसलिए आजादी का दूसरा आंदोलन पढाया ही नही जाता, इसलिए बहुजन मूलनिवासियों की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है।
👉15अगस्त1947 :- 15 August मूलनिवासियों की आजादी का दिन नही है बल्कि ब्राह्मणो की आजादी का दिन है, भारत का मूलनिवासी आज भी गुलाम है। 1848 में फुलेजीे ने मूलनिवासियों की आजादी का आंदोलन शुरू किया था, तब गांधी पैदा भी नहीं हुए थे क्योंकि गांधी उसके 21साल बाद 1869 में पैदा हुए। इसका मतलब है कि मूलनिवासियों का आंदोलन अंग्रेज़ों से आजादी का आंदोलन नही था, बहुजन मूलनिवासियों की आजादी का आंदोलन तो फुलेजीे नें 1848 में ही शुरू कर दिया था। यह बात सोचो कि जब अंग्रेज भारत में नहीं थे, मुगल भी भारत में नहीं आयें थे, तब भारत किसका गुलाम था अथवा तब मूलनिवासी किसके गुलाम थे, तब हमारे ऊपर अत्याचार, शोषण कौन कर रहा था, यह बात हमारे लोगों को सोचनी चाहिए। अंग्रेज भारत छोडकर चले गये, इस बात को आजादी मानकर चलना यही गलत बात है क्योंकि फुले, शाहुजी, पेरियार, अंबेडकर यह मानते थे कि अंग्रेजों ने हमको गुलाम नहीं बनाया बल्कि हमको ब्राह्मणों ने गुलाम बनाया है। अंग्रेजों की गुलामी केवल राजनीतिक थी परन्तु ब्राह्मणों की गुलामी सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक एंव शोषण व अमानवीय अत्याचार से भरी पडी है, इसलिए अग्रेजो से आजादी का आंदोलन ब्राह्मणो का हो सकता है, मूलनिवासियों का नहीं, क्योंकि अंग्रेजों के भारत में आने से पहले भी हम गुलाम थे। फुलेजी ने कहा था कि अंग्रेज भारत में है तब तक हमें अवसर है, अपनी आजादी हासिल करने का, अंग्रेज भारत से चल चले जायेंगें और ब्राह्मण भारत का शासक बन जायेगा तो तुम्हारे पास जो अवसर है, वह भी नही रहेगा। बाबासाहब नें कहा था गुलाम भारत में जिसकी बातें भी सहन नहीं होती हैं, आजाद भारत में उनकी लातें खानी पडेगी, इसलिए साथियों 15अगस्त मूलनिवासियों की आजादी का दिन नही है, भारत के मुलनिवासी आज भी गुलाम ही हैं। यदि आजादी का आन्दोलन हमारा आन्दोलन था, तो सारी समस्याएँ हमारे समाज की ही क्यों हैं ? सारे अत्याचार, शोषण जो आजादी से पहले थे, वह आज भी जस के तस क्यों हैं ? 3.5% ब्राह्मणों के 367 सांसद क्यों हैं ? 3.5% ब्राह्मणों के ही लगभग 90% कैबिनेट मंत्री क्यों हैं ? 3.5% ब्राह्मणों के ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कुल जजों में से 98% क्यों है ? 3.5% ब्राह्मणों के ही देश में 79% IAS क्यों है ? 100% मीडिया ब्राह्मण बानियों का है, परन्तु बहुजन मूलनिवासी पत्रकार, टीवी एंकर कितने हैं ?
👉शिक्षित बनो! संगठित रहो! संघर्ष करो! :- बाबासाहब का सबसे अधिक विरोध कांग्रेस नें क्यों किया था ? बाबासाहब इतने विद्वान थे वह आजादी के आन्दोलन में शामिल नहीं थे, तो वह किसकी लड़ाई लड़ रहे थे ? बाबासाहब नें क्यों कहा था कि मेरा अधूरा आन्दोलन पूरा करना, तो हमें कौन-सा आन्दोलन बता कर गये ? यदि 15अगस्त को जब हम आजाद ही हो गये तो बाबा साहब ऐसा क्यों कह कर गये ? विचार करो कि बाबासाहब ने शिक्षा के बाद ऐसा क्यों कहा कि संगठित हो, तो क्यों संगठित हो, किसके खिलाफ संगठित हो। फिर कहा संघर्ष करो, जब हम आजाद हैं तो किसके खिलाफ संगठित हो और किससे संघर्ष करें ? बहुजन मूलनिवासी बुध्दिजीवी वर्ग इस आंदोलन को समझने की कोशिश करेगें, विचार विमर्श करेंगे।
बहुजन महापुरुषों का अधूरा कार्य पूरा करने का काम "बामसेफ व भारत मुक्ति मोर्चा" कर रहा है। आप अपनी/ खुद स्वयं की आजादी हेतु इसमें शामिल हो जाइये।
जागो! बहुजन!! जागो! मूलनिवासी!!

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