"नवबुद्ध" शब्द के इस्तेमाल का सुझाव
दलित शब्द को लेकर कई मामलों में आपत्तियां दर्ज कराई जाती रही है। अब यह मामला कोर्ट में पहुंच गया है। दलित शब्द का उपयोग रोकने के लिए बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में सरकारी कामकाज, प्रसार माध्यमों और अन्य किसी के भी द्वारा इस शब्द के प्रयोग पर रोक लगाने की प्रार्थना की गई है। कोर्ट से मांग की गई है कि दलित की बजाय ‘नवबुद्ध’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए। याचिका पंकज मेश्राम की ओर से डाली गई है, जिसकी पैरवी अधिवक्ता शैलेश नारनवरे कर रहे हैं। याचिकाकर्ता के मुताबिक दलित शब्द आपत्तिजनक और असंवैधानिक है, इसके प्रयोग से जातिवाद और भेदभाव झलकता है। साथ ही यह भी तर्क दिया गया है कि इसके प्रयोग से संविधान के आर्टिकल 14,15,16,17,18,19,21, 341 का उल्लंघन होता है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि विविध स्तरों पर ज्ञापन सौंपने के बाद भी सरकार ने मांग पर कोई फैसला नहीं लिया।
याचिकाकर्ता पंकज मेश्राम ने इस मामले में राज्य सरकार के अलावा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग को प्रतिवादी बनाया है। 17जनवरी2017 को इस मामले में सुनवाई थी, लेकिन प्रतिवादी जवाब प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे, इससे नाराज हाईकोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग और राज्य सरकार को दो सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
दलित शब्द को लेकर कई मामलों में आपत्तियां दर्ज कराई जाती रही है। अब यह मामला कोर्ट में पहुंच गया है। दलित शब्द का उपयोग रोकने के लिए बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में सरकारी कामकाज, प्रसार माध्यमों और अन्य किसी के भी द्वारा इस शब्द के प्रयोग पर रोक लगाने की प्रार्थना की गई है। कोर्ट से मांग की गई है कि दलित की बजाय ‘नवबुद्ध’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए। याचिका पंकज मेश्राम की ओर से डाली गई है, जिसकी पैरवी अधिवक्ता शैलेश नारनवरे कर रहे हैं। याचिकाकर्ता के मुताबिक दलित शब्द आपत्तिजनक और असंवैधानिक है, इसके प्रयोग से जातिवाद और भेदभाव झलकता है। साथ ही यह भी तर्क दिया गया है कि इसके प्रयोग से संविधान के आर्टिकल 14,15,16,17,18,19,21, 341 का उल्लंघन होता है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि विविध स्तरों पर ज्ञापन सौंपने के बाद भी सरकार ने मांग पर कोई फैसला नहीं लिया।
याचिकाकर्ता पंकज मेश्राम ने इस मामले में राज्य सरकार के अलावा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग को प्रतिवादी बनाया है। 17जनवरी2017 को इस मामले में सुनवाई थी, लेकिन प्रतिवादी जवाब प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे, इससे नाराज हाईकोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता विभाग और राज्य सरकार को दो सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
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