गंगाजल में पड़े कीड़े, लो! टूट गया मिथक
पतितपावनी, पापनाशिनी, मोक्षदायिनी, पुण्यसलिला, सरित्श्रेष्ठा आदि नामों से अलंकृत पवित्र गंगा नदी की स्वच्छता हेतु गंगा कार्य योजना (गंगा एक्शन प्लान) GAP की शुरुआत अप्रैल 1985 से हुई जिस पर 1200 करोड़ रुपये खर्च हुए और यह योजना 31मार्च2000 में बंद हो गयी। इसके बाद दिसंबर 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी) NGRBA की स्थापना की गई जिसके चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं। इसके लिए विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने 31मई 2011 को 1.556 अरब डॉलर की लागत वाली राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना को स्वीकृति प्रदान की, जिसके लिए विश्व बैंक समूह से 1 अरब डॉलर की धनराशि प्राप्त होगी (जिसमें आईडीए से 19.9 करोड़ डॉलर का ब्याजमुक्त ऋण (क्रेडिट) और आईबीआरडी से 80.1 करोड़ डॉलर का कम ब्याज पर ऋण (लोन) शामिल है)। इस परियोजना को आठ वर्षों में पूरा किया जाएगा। और अब 2014-15 के केन्द्रीय बजट में स्वच्छ गंगा परियोजना आधिकारिक नाम एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना या "नमामि गंगे" 2037 करोड़ रुपयों की आरंभिक धनराशि का प्रावधान करके 07जुलाई 2016 से प्रथम चरण की शुरुआत हरिद्वार से की गयी। इसके साथ ही गंगा रिवर डॉल्फिन जैसे अन्य प्रोग्राम भी चल रहे हैं। किन्तु गंगा का मामला अबतक तो जस का तस है क्योंकि इसमें भी गंगा नदी में पानी छोड़ने की कोई बात नहीं है। ऐसे में गंगा क्या बिना पानी के ठीक हो पाएगी या नहीं, यह देखने वाली बात होगी जबकि गंगा 2008 में गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया जा चुका है।
हिन्दू धर्म के शैव मतानुसार कहा जाता है कि गंगा नदी शिव-शंकर की जटाओं से निकली है और अमर उजाला, कानपुर, 02मार्च2017 (01) के अनुसार गंगा के पानी अर्थात पवित्र गंगाजल में लाल रंग के कीड़े (लार्वा) मौजूद हैं। अभी 24फरवरी 2017 को महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में स्नान किया तो क्या उन्हें यह कीड़े अंधश्रद्धा के कारण पता ही नहीं चले। ऐसी स्थिति में उन्हें यह विचार करना चाहिए कि सरकार द्वारा गंगा सफाई के नाम पर अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद आखिर कीड़े कहां से आये। कहीं ऐसा तो नहीं कि गंगा के उद्गम अर्थात शिव की जटाओं में ही कीड़े पड़ गये हों और यह कीड़े वहीं से आ रहे हों। लोग 'एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना' "नमामि गंगे" को ठीक वैसा ही कहते हैं जैसा 'एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम'(Integrated Rural Development Program) को "आयी रकम डकारि जाउ प्यारे"।
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पतितपावनी, पापनाशिनी, मोक्षदायिनी, पुण्यसलिला, सरित्श्रेष्ठा आदि नामों से अलंकृत पवित्र गंगा नदी की स्वच्छता हेतु गंगा कार्य योजना (गंगा एक्शन प्लान) GAP की शुरुआत अप्रैल 1985 से हुई जिस पर 1200 करोड़ रुपये खर्च हुए और यह योजना 31मार्च2000 में बंद हो गयी। इसके बाद दिसंबर 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी) NGRBA की स्थापना की गई जिसके चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं। इसके लिए विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने 31मई 2011 को 1.556 अरब डॉलर की लागत वाली राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना को स्वीकृति प्रदान की, जिसके लिए विश्व बैंक समूह से 1 अरब डॉलर की धनराशि प्राप्त होगी (जिसमें आईडीए से 19.9 करोड़ डॉलर का ब्याजमुक्त ऋण (क्रेडिट) और आईबीआरडी से 80.1 करोड़ डॉलर का कम ब्याज पर ऋण (लोन) शामिल है)। इस परियोजना को आठ वर्षों में पूरा किया जाएगा। और अब 2014-15 के केन्द्रीय बजट में स्वच्छ गंगा परियोजना आधिकारिक नाम एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना या "नमामि गंगे" 2037 करोड़ रुपयों की आरंभिक धनराशि का प्रावधान करके 07जुलाई 2016 से प्रथम चरण की शुरुआत हरिद्वार से की गयी। इसके साथ ही गंगा रिवर डॉल्फिन जैसे अन्य प्रोग्राम भी चल रहे हैं। किन्तु गंगा का मामला अबतक तो जस का तस है क्योंकि इसमें भी गंगा नदी में पानी छोड़ने की कोई बात नहीं है। ऐसे में गंगा क्या बिना पानी के ठीक हो पाएगी या नहीं, यह देखने वाली बात होगी जबकि गंगा 2008 में गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया जा चुका है।
हिन्दू धर्म के शैव मतानुसार कहा जाता है कि गंगा नदी शिव-शंकर की जटाओं से निकली है और अमर उजाला, कानपुर, 02मार्च2017 (01) के अनुसार गंगा के पानी अर्थात पवित्र गंगाजल में लाल रंग के कीड़े (लार्वा) मौजूद हैं। अभी 24फरवरी 2017 को महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में स्नान किया तो क्या उन्हें यह कीड़े अंधश्रद्धा के कारण पता ही नहीं चले। ऐसी स्थिति में उन्हें यह विचार करना चाहिए कि सरकार द्वारा गंगा सफाई के नाम पर अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद आखिर कीड़े कहां से आये। कहीं ऐसा तो नहीं कि गंगा के उद्गम अर्थात शिव की जटाओं में ही कीड़े पड़ गये हों और यह कीड़े वहीं से आ रहे हों। लोग 'एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना' "नमामि गंगे" को ठीक वैसा ही कहते हैं जैसा 'एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम'(Integrated Rural Development Program) को "आयी रकम डकारि जाउ प्यारे"।
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