शुक्रवार, 24 मार्च 2017

फुलेजी, शाहूजी और अंबेडकर का आंदोलन

फुलेजी, शाहूजी और अंबेडकर का आंदोलन
(1) ज्योतिबा फुले के पास जब न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाडे गये कि आप आजादी के आंदोलन में शामिल हों तो तथाकथित आजादी के आंदोलन में ज्योतिबा फुले शामिल नहीं हुए और कहा कि हम दोहरे गुलाम हैं, ब्राह्मण अंग्रेजों के गुलाम हैं और हम ब्राह्मणों के गुलाम हैं। भारत में अंग्रेजों के रहते हमें ब्राह्मणों से आजादी का आंदोलन चलाना होगा। यह मौका है, इसे बेकार मत जाने दो।
(2) बाल गंगाधर तिलक कोल्हापुर (महाराष्ट्र )में शाहूजी महाराज के पास गये कि आजादी के आंदोलन में शामिल हों शाहूजी महाराज नें मना कर दिया और अपने लोगों को अपनी आजादी के आंदोलन को चलाने के लिए कहा।
(3) लाला लाजपत राय अमेरिका में अध्ययनरत बाबासाहब अंबेडकर के पास गये और कहा आजादी के आंदोलन में शामिल हों बाबा साहब नें मना किया और अपने लोगों को तथाकथित आजादी के आंदोलन के बारे में कहा जिन लोगों कि बातें गुलामी में सहन नहीं होती है आजाद भारत में इनकी लातें खानी पडेगी, हमें अपनी आजादी का आंदोलन चलाना होगा।
हमारे महापुरुषों पर यह आरोप लगाया जाता है कि वह तथाकथित आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं हुए जो कि गलत और बिल्कुल बेबुनियाद है उन्हें आरोप सही तरह से लगाना चाहिए कि हमारे महापुरुष ब्राह्मणों कि आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं हुए। तब तो हमारे लोगों को तथाकथित आजादी का आंदोलन भी समझ आता और उनके आरोप का जवाब देने कि जरूरत भी नहीं होती। भारत में कानून बनाने वाली सभा में हमारे लोग भी शामिल होने के लिए मांग कर रहे थे तब बाल गंगाधर तिलक नें अथनी व पंढरपुर में सभा करके कहा कि "तेली, तम्बोली और कुन्भटों को संसद में जाकर क्या हल चलाना है "जो यह विधि मंडल में जाने कि बात कर रहें हैं यह बात तिलक जिसके संपादक थे केसरी नामक पत्रिका में उस समय छपी। हमें यह पढाया जाता है कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हे हम इसे लेकर रहेगें और कहा जाता है कि यह इतिहास है, परन्तु हमें यह कभी नहीं पढाया जाता कि तेली तम्बोली कुन्भटों को संसद में जाकर क्या हल चलाना है। हम कहते हैं यह भी पढाओ, यह भी इतिहास है।


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