गुरुवार, 9 मार्च 2017

जज के सामने हुए इक़बालिया बयान से पता चलता है कि स्वामी असीमानंद धमाकों के मास्टरमाइंड थे



जज के सामने हुए इक़बालिया बयान से पता चलता है कि स्वामी असीमानंद धमाकों के मास्टरमाइंड थे
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अजमेर दरगाह में 2007 में हुए विस्फोट मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद सहित सात मुलज़िमों को बरी कर दिया. जबकि तीन आरोपियों देवेन्द्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को दोषी माना है. सुनील जोशी की 2008 में मौत हो चुकी है. साल 2006 से 2008 के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में कई धमाके हुए थे. जांच एजेंसियों ने इन धमाकों के तार हिंदू चरमपंथियों से जुड़े पाए थे. एजेंसियों ने स्वामी असीमानंद की गिरफ्तारी 19 नवंबर, 2010 को उत्तराखंड के हरिद्वार से की थी और उन्हें धमाकों का मुख्य षडयंत्रकर्ता बताया था. मगर हिंदू चरमपंथ के इन मामलों में एक के बाद एक मामले में आरोपी बरी होते जा रहे हैं.  असीमानंद को समझौता एक्सप्रेस धमाके में 2014 में ही ज़मानत मिल चुकी है जबकि अजमेर दरगाह धमाके में एनआईए की विशेष अदालत के विशेष न्यायाधीश दिनेश गुप्ता ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है.  असीमानंद को बरी करने का फैसला थोड़ा हैरान करने वाला है, क्योंकि 18 दिसंबर, 2010 में असीमानंद ने दिल्ली में जज दीपक डबास के सामने अपना इक़बालिया बयान दिया था. 164 सीआरपीसी के तहत हुए बयान में स्वामी असीमानंद ने हिंदू चरमपंथियों की तरफ से किए गए कई धमाकों का सिलसिलेवार ब्यौरा पेश किया था. अपने बयान में उन्होंने आरएसएस के इंद्रेश कुमार जैसे बड़े नाम लेकर हंगामा मचा दिया था लेकिन बाद में वह इस बयान से मुकर गए, और अब उन्हें कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है.
कौन हैं स्वामी असीमानंद
स्वामी असीमानंद की पैदाइश पश्चिम बंगाल के हुगली के गांव कमारपुकुर की है. कॉलेज में उनके नाम का पंजीकरण नब कुमार के नाम से है. 1971 में फिजिक्स की पढ़ाई की दौरान ही वह पहली बार आरएसएस के संपर्क में आए. इसी साल एमएससी में दाख़िले के लिए वह बर्धमान ज़िले में गए और पूरी तरह आरएसएस में सक्रिय हो गए. 1981 में वह एक गुरु स्वामी परमानंद की शरण में आए जिन्होंने इनका नाम नब कुमार से बदलकर स्वामी असीमानंद कर दिया. असीमानंद शुरु से ही आदिवासियों के लिए काम करना चाहते थे. लिहाज़ा, वह आरएसएस की एक शाखा वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़ गए. उन्होंने बीरभूम, पुरुलिया, बांकुरा के अलावा अंडमान निकोबार जाकर आदिवासियों के लिए काम किया और 1997 में स्थायी रूप से गुजरात के डांग ज़िले में बस गए. यहां का वातावरण बेहतर देखकर उन्होंने एक ट्रस्ट शबरी माता सेवा समिति का गठन किया. इस ट्रस्ट के लिए पैसा जुटाने के लिए उन्होंने 2002 में एक राम कथा का आयोजन किया. इस आयोजन की सफलता ने असीमानंद के हौसले बुलंद कर दिए. उन्होंने शबरी कुंभ नाम से इससे भी बड़ा आयोजन करने का फैसला किया जिसे करवाने की ज़िम्मेदारी आरएसएस ने ली. शबरी कुंभ का भी आयोजन बड़े पैमाने पर हुआ.
बम का जवाब बम
शबरी माता सेवा समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष जयंती भाई केवट थे जिन्होंने पहली बार 2003 में साध्वी प्रज्ञा और असीमानंद की पहली मुलाक़ात कराई. प्रज्ञा ने मुलाक़ात के बाद कहा कि वह उनसे अगले महीने उनके वाघई स्थित आश्रम में मिलना चाहेंगी. अगली मुलाक़ात में प्रज्ञा के साथ सुनील जोशी भी थे. अप्रैल-मई 2004 में असीमानंद उज्जैन के कुंभ मेले में गए थे. यहां प्रज्ञा सिंह ने जय वंदेमातरम नाम के एक संगठन का तंबू लगाया था जिसकी वह अध्यक्ष थीं. गुजरात के वलसाड़ के आए एक व्यक्ति भारतभाई प्रज्ञा सिंह के तंबू में ठहरे थे.  जज को दिए गए अपने बयान में स्वामी कहते हैं, '2002 में हिंदू मंदिरों पर मुस्लिमों द्वारा बम हमले हो रहे थे. मैं बहुत विचलित होता था. इस बारे में मैं भारत भाई, प्रज्ञा और सुनील जोशी से चर्चा करता था. मुझे समझ आया कि उनके अंदर भी मेरे जैसी सोच थी.' इसके बाद 2006 में काशी स्थित संकटमोचन मंदिर में बम हमले ने हम सभी को विचलित कर दिया. मार्च 2006 में भारतभाई, प्रज्ञा सिंह और सुनील जोशी शबरी धाम आए. यहीं तय हुआ कि इसका जवाब देना चाहिए. हमने यहां मीटिंग के दौरान तय किया कि सुनील जोशी और भारतभाई झारखंड जाएंगे और कुछ सिम कार्ड और पिस्टल जैसे हथियार खरीदेंगे. मैंने उन दोनों को सुझाव दिया कि गोरखपुर और आगरा भी जाना. मैंने कहा कि गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ से मिलना और आगरा में राजेश्वर सिंह ने मिलना और इस बारे में बात करना. मैंने ये सामान लाने के लिए 25 हज़ार रुपए सुनील जोशी के हाथ में दिए. अप्रैल 2006 में दोनों इस काम के लिए निकल गए.
साज़िश
अपने इकबालिया बयान में असीमानंद ने कहा, 'अगली बैठक में सुनील जोशी, भारतभाई, प्रज्ञा सिंह असीमानंद साथ में मिले. इस बैठक में तय हुआ कि मालेगांव में 80 फीसदी मुसलमान रहते हैं, इसलिए हमारा काम नज़दीक से शुरू होना चाहिए और पहला बम यहीं रखा जाना चाहिए.' फिर असीमानंद ने कहा कि स्वतंत्रता के समय हैदराबाद के निज़ाम ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया था, इसलिए हैदराबाद को भी सबक सिखाया जाना चाहिए और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में भी धमाका करना चाहिए. असीमानंद के मुताबिक यह तय हुआ कि अजमेर ऐसी जगह है जहां की दरगाह में हिंदू भी काफी संख्या में आते हैं. इसलिए अजमेर में भी एक बम रखा जाना चाहिए जिससे हिंदू डर जाएंगे और वहां नहीं जाएंगे. जज को दिए बयान में असीमानंद ने यह भी बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बम रखा जाना चाहिए क्योंकि वहां पर जवान मुस्लिम लड़के होंगे. मेरा सुझाव सभी लोगों ने मान लिया और यह तय हुआ कि इन चारों जगहों पर हम बम धमाका करेंगे. सुनील जोशी ने चारों जगहों की रेकी करने की जिम्मेदारी ली. सुनील जोशी ने सुझाव दिया कि इंडिया पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में केवल पाकिस्तानी ही यात्रा करते हैं, इसलिए समझौता एक्सप्रेस में भी धमाका करना चाहिए. इसकी ज़िम्मेदारी खुद सुनील जोशी ने ली. सुनील जोशी ने बताया कि झारखंड से उसे हथियार मिल गए हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ और राजेंद्र सिंह से कोई मदद नहीं मिली.

धमाके
स्वामी के इकबालिया बयान के मुताबिक, सुनील जोशी ने कहा कि इस काम के लिए तीन समूह की ज़रूरत है. एक ग्रुप आर्थिक मदद करेगा. दूसरा बम के सामान का संग्रह का काम करेगा. और तीसरा समूह बम रखने का काम करेगा. तीनों समूह अपने-अपने स्तर पर काम करेंगे. मीटिंग में असीमानंद को आर्थिक मदद और जगह का इतंज़ाम करने के लिए कहा गया. संदीप डांगे को बम बनाने और रखने का काम दिया गया. उसके बाद दीवाली में 2006 सुनील जोशी ने शबरी धाम आश्रम गए, तब तक मालेगांव धमाका हो चुका था. असीमानंद को शुरु में विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने अखबारों में पढ़ा कि मालेगांव धमाके में मुस्लिम लड़के पकड़े गए हैं. सुनील ने असीमानंद से कहा कि धमाके उनके अपने आदमियों ने किए हैं. फरवरी 2007 में सुनील और भारतभाई, भारत भाई के घर से थोड़ी दूर स्थित शिवमंदिर आए. वहां सुनील ने कहा कि एक दो दिन में कुछ अच्छी खबर मिलेगी. उसके दो तीन दिन बाद मैं फिर भारत भाई के घर गया जहां सुनील और प्रज्ञा मौजूद थे. तब तक समझौता एक्सप्रेस में धमाका हो चुका था. इसके बाद सुनील जोशी ने हैदराबाद में बम धमाका करने के लिए मुझसे 40 हज़ार रुपए लिए. इसके एक दो महीने बाद उन्होंने मुझे फोन करके कहा कि देखते रहना कि एक दो दिन में कुछ अच्छी खबर मिलेगी. इसके तीन चार दिन बाद मक्का मस्जिद धमाके की खबर आई. मैंने कहा कि कुछ मुस्लिम लड़के पकड़े गए हैं लेकिन सुनील ने कहा कि हमारे आदमियों ने किया है. इसके कुछ दिन बाद सुनील ने असीमानंद के शबरी धाम स्थित आश्रम जाकर कहा कि अजमेर धमाका भी हमारे लोगों ने ही किया है. सुनील ने यह भी बताया कि वह भी वहां पर थे और दो मुस्लिम लड़के भी साथ थे. मैंने पूछा कि ये लड़के तुम्हें कहां से मिले तो उसने कहा कि ये लड़के इंद्रेश जी ने दिए थे. मैंने सुनील जोशी से कहा कि इंद्रेश जी ने अगर आपको मुस्लिम लड़के दिए हैं तो आप जब पकड़े जाएंगे तो इंद्रेश जी का भी नाम सकता है. मैंने सुनील जोशी से कहा कि इंद्रेशजी से उसकी जान को खतरा है. इसके बाद सुनील जोशी चले गए और कुछ दिन बाद भरत भाई का फोन आया कि उनका मर्डर हो गया है. मैंने उसी दिन कर्नल पुरोहित को फोन करके कहा कि सुनील जोशी नाम के हमारे लड़के का मर्डर हो गया है जो अजमेर ब्लास्ट में शामिल थे.
मर्डर  असीमानंद के कबूलनामें के मुताबिक, '2005 में शबरीधाम में असीमानंद की इंद्रेशजी से मुलाकात हुई थी. उनके साथ आरएसएस के सभी बड़े पदाधिकारी थी. इंद्रेशजी ने असीमानंद को कहा कि आप जो बम का जवाब बम की बात करते हो, वह आपका काम नहीं है. उन्होंने कहा कि आरएसएस ने आपको आदिवासियों के बीच रहकर काम करने का आदेश दिया है, वह करो.' असीमानंद के बयान के मुताबिक इंद्रेश कुमार ने कहा, 'सुनील को इस काम के लिए जिम्मेदारी दी गई है, सुनील को जो मदद चाहिए हम करेंगे. मुझे यह भी पता चला कि भारत भाई के साथ सुनील जोशी नागपुर में इंद्रेश कुमार से मिले थे और इंद्रेशजी ने भारतभाई के सामने सुनील जोशी को 50 हज़ार रुपए दिया थे. असीमानंद ने अपने बयान में यह भी कहा है कि धमाका करने की हर घटना से पहले या एक दो दिन बाद सुनील मुझसे बताता था कि यह हमारे लोगों ने किया है. मगर जज दीपक डबास के सामने दिए गए इक़बालिया बयान का अब कोई मायने नहीं रह गया है. स्वामी असीमानंद ने अपना बयान दर्ज करवाने के कुछ दिन बाद बयान दिया था कि यह कबूलनामा उनसे दबाव में लिया गया था.

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