जज के सामने हुए इक़बालिया बयान से पता चलता है कि स्वामी असीमानंद धमाकों के मास्टरमाइंड थे
अजमेर
दरगाह में 2007 में
हुए विस्फोट मामले
में एनआईए की
विशेष अदालत ने
मुख्य आरोपी स्वामी
असीमानंद सहित सात मुलज़िमों को
बरी कर दिया.
जबकि तीन आरोपियों देवेन्द्र गुप्ता,
भावेश पटेल और
सुनील जोशी को
दोषी माना है.
सुनील जोशी की
2008 में
मौत हो चुकी
है. साल 2006 से
2008 के
बीच देश के
अलग-अलग हिस्सों में
कई धमाके हुए
थे. जांच एजेंसियों ने
इन धमाकों के
तार हिंदू चरमपंथियों से
जुड़े पाए थे.
एजेंसियों ने स्वामी असीमानंद की
गिरफ्तारी 19 नवंबर, 2010 को उत्तराखंड के
हरिद्वार से की थी
और उन्हें धमाकों
का मुख्य षडयंत्रकर्ता बताया
था. मगर हिंदू
चरमपंथ के इन
मामलों में एक
के बाद एक
मामले में आरोपी
बरी होते जा
रहे हैं. असीमानंद को समझौता एक्सप्रेस धमाके
में 2014 में ही
ज़मानत मिल चुकी
है जबकि अजमेर
दरगाह धमाके में
एनआईए की विशेष
अदालत के विशेष
न्यायाधीश दिनेश गुप्ता ने
उन्हें सबूतों के
अभाव में बरी
कर दिया है.
असीमानंद को
बरी करने का
फैसला थोड़ा हैरान
करने वाला है,
क्योंकि 18 दिसंबर, 2010 में असीमानंद ने
दिल्ली में जज
दीपक डबास के
सामने अपना इक़बालिया बयान
दिया था. 164 सीआरपीसी के
तहत हुए बयान
में स्वामी असीमानंद ने
हिंदू चरमपंथियों की
तरफ से किए
गए कई धमाकों
का सिलसिलेवार ब्यौरा
पेश किया था.
अपने बयान में
उन्होंने आरएसएस के इंद्रेश कुमार
जैसे बड़े नाम
लेकर हंगामा मचा
दिया था लेकिन
बाद में वह
इस बयान से
मुकर गए, और
अब उन्हें कोर्ट
ने क्लीन चिट
दे दी है.
कौन हैं स्वामी असीमानंद
स्वामी
असीमानंद की पैदाइश पश्चिम
बंगाल के हुगली
के गांव कमारपुकुर की
है. कॉलेज में
उनके नाम का
पंजीकरण नब कुमार के
नाम से है.
1971 में
फिजिक्स की पढ़ाई की
दौरान ही वह
पहली बार आरएसएस
के संपर्क में
आए. इसी साल
एमएससी में दाख़िले के
लिए वह बर्धमान ज़िले
में आ गए
और पूरी तरह
आरएसएस में सक्रिय
हो गए. 1981 में वह
एक गुरु स्वामी
परमानंद की शरण में
आए जिन्होंने इनका
नाम नब कुमार
से बदलकर स्वामी
असीमानंद कर दिया. असीमानंद शुरु
से ही आदिवासियों के
लिए काम करना
चाहते थे. लिहाज़ा, वह
आरएसएस की एक
शाखा वनवासी कल्याण
आश्रम से जुड़
गए. उन्होंने बीरभूम,
पुरुलिया, बांकुरा के अलावा अंडमान
निकोबार जाकर आदिवासियों के
लिए काम किया
और 1997 में स्थायी
रूप से गुजरात
के डांग ज़िले
में बस गए.
यहां का वातावरण बेहतर
देखकर उन्होंने एक
ट्रस्ट शबरी माता
सेवा समिति का
गठन किया. इस
ट्रस्ट के लिए
पैसा जुटाने के
लिए उन्होंने 2002 में
एक राम कथा
का आयोजन किया.
इस आयोजन की
सफलता ने असीमानंद के
हौसले बुलंद कर
दिए. उन्होंने शबरी
कुंभ नाम से
इससे भी बड़ा
आयोजन करने का
फैसला किया जिसे
करवाने की ज़िम्मेदारी आरएसएस
ने ली. शबरी
कुंभ का भी
आयोजन बड़े पैमाने
पर हुआ.
बम का जवाब बम
शबरी
माता सेवा समिति
ट्रस्ट के अध्यक्ष जयंती
भाई केवट थे
जिन्होंने पहली बार 2003 में
साध्वी प्रज्ञा और
असीमानंद की पहली मुलाक़ात कराई.
प्रज्ञा ने मुलाक़ात के
बाद कहा कि
वह उनसे अगले
महीने उनके वाघई
स्थित आश्रम में
मिलना चाहेंगी. अगली
मुलाक़ात में प्रज्ञा के
साथ सुनील जोशी
भी थे. अप्रैल-मई 2004 में असीमानंद उज्जैन
के कुंभ मेले
में गए थे.
यहां प्रज्ञा सिंह
ने जय वंदेमातरम नाम
के एक संगठन
का तंबू लगाया
था जिसकी वह
अध्यक्ष थीं. गुजरात के
वलसाड़ के आए
एक व्यक्ति भारतभाई प्रज्ञा सिंह
के तंबू में
ठहरे थे. जज को दिए
गए अपने बयान
में स्वामी कहते
हैं, '2002 में हिंदू मंदिरों पर
मुस्लिमों द्वारा बम हमले
हो रहे थे.
मैं बहुत विचलित
होता था. इस
बारे में मैं
भारत भाई, प्रज्ञा और
सुनील जोशी से
चर्चा करता था.
मुझे समझ आया
कि उनके अंदर
भी मेरे जैसी
सोच थी.' इसके
बाद 2006 में काशी
स्थित संकटमोचन मंदिर
में बम हमले
ने हम सभी
को विचलित कर
दिया. मार्च 2006 में
भारतभाई, प्रज्ञा सिंह और सुनील
जोशी शबरी धाम
आए. यहीं तय
हुआ कि इसका
जवाब देना चाहिए.
हमने यहां मीटिंग
के दौरान तय
किया कि सुनील
जोशी और भारतभाई झारखंड
जाएंगे और कुछ
सिम कार्ड और
पिस्टल जैसे हथियार
खरीदेंगे. मैंने उन दोनों
को सुझाव दिया
कि गोरखपुर और
आगरा भी जाना.
मैंने कहा कि
गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ से
मिलना और आगरा
में राजेश्वर सिंह
ने मिलना और
इस बारे में
बात करना. मैंने
ये सामान लाने
के लिए 25 हज़ार
रुपए सुनील जोशी
के हाथ में
दिए. अप्रैल 2006 में
दोनों इस काम
के लिए निकल
गए.
साज़िश
अपने
इकबालिया बयान में असीमानंद ने
कहा, 'अगली बैठक
में सुनील जोशी,
भारतभाई, प्रज्ञा सिंह असीमानंद साथ
में मिले. इस
बैठक में तय
हुआ कि मालेगांव में
80 फीसदी
मुसलमान रहते हैं, इसलिए
हमारा काम नज़दीक
से शुरू होना
चाहिए और पहला
बम यहीं रखा
जाना चाहिए.' फिर
असीमानंद ने कहा कि
स्वतंत्रता के समय हैदराबाद के
निज़ाम ने पाकिस्तान जाने
का फैसला किया
था, इसलिए हैदराबाद को
भी सबक सिखाया
जाना चाहिए और
हैदराबाद की मक्का मस्जिद
में भी धमाका
करना चाहिए. असीमानंद के
मुताबिक यह तय हुआ
कि अजमेर ऐसी
जगह है जहां
की दरगाह में
हिंदू भी काफी
संख्या में आते
हैं. इसलिए अजमेर
में भी एक
बम रखा जाना
चाहिए जिससे हिंदू
डर जाएंगे और
वहां नहीं जाएंगे.
जज को दिए
बयान में असीमानंद ने
यह भी बताया
कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में
बम रखा जाना
चाहिए क्योंकि वहां
पर जवान मुस्लिम लड़के
होंगे. मेरा सुझाव
सभी लोगों ने
मान लिया और
यह तय हुआ
कि इन चारों
जगहों पर हम
बम धमाका करेंगे.
सुनील जोशी ने
चारों जगहों की
रेकी करने की
जिम्मेदारी ली. सुनील जोशी
ने सुझाव दिया
कि इंडिया पाकिस्तान के
बीच चलने वाली
समझौता एक्सप्रेस में
केवल पाकिस्तानी ही
यात्रा करते हैं,
इसलिए समझौता एक्सप्रेस में
भी धमाका करना
चाहिए. इसकी ज़िम्मेदारी खुद
सुनील जोशी ने
ली. सुनील जोशी
ने बताया कि
झारखंड से उसे
हथियार मिल गए
हैं लेकिन योगी
आदित्यनाथ और राजेंद्र सिंह
से कोई मदद
नहीं मिली.
धमाके
स्वामी
के इकबालिया बयान
के मुताबिक, सुनील
जोशी ने कहा
कि इस काम
के लिए तीन
समूह की ज़रूरत
है. एक ग्रुप
आर्थिक मदद करेगा.
दूसरा बम के
सामान का संग्रह
का काम करेगा.
और तीसरा समूह
बम रखने का
काम करेगा. तीनों
समूह अपने-अपने
स्तर पर काम
करेंगे. मीटिंग में
असीमानंद को आर्थिक मदद
और जगह का
इतंज़ाम करने के लिए
कहा गया. संदीप
डांगे को बम
बनाने और रखने
का काम दिया
गया. उसके बाद
दीवाली में 2006 सुनील
जोशी ने शबरी
धाम आश्रम गए,
तब तक मालेगांव धमाका
हो चुका था.
असीमानंद को शुरु में
विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने अखबारों में
पढ़ा कि मालेगांव धमाके
में मुस्लिम लड़के
पकड़े गए हैं.
सुनील ने असीमानंद से
कहा कि धमाके
उनके अपने आदमियों ने
किए हैं. फरवरी
2007 में
सुनील और भारतभाई, भारत
भाई के घर
से थोड़ी दूर
स्थित शिवमंदिर आए.
वहां सुनील ने
कहा कि एक
दो दिन में
कुछ अच्छी खबर
मिलेगी. उसके दो
तीन दिन बाद
मैं फिर भारत
भाई के घर
गया जहां सुनील
और प्रज्ञा मौजूद
थे. तब तक
समझौता एक्सप्रेस में
धमाका हो चुका
था. इसके बाद
सुनील जोशी ने
हैदराबाद में बम धमाका
करने के लिए
मुझसे 40 हज़ार रुपए
लिए. इसके एक
दो महीने बाद
उन्होंने मुझे फोन करके
कहा कि देखते
रहना कि एक
दो दिन में
कुछ अच्छी खबर
मिलेगी. इसके तीन
चार दिन बाद
मक्का मस्जिद धमाके
की खबर आई.
मैंने कहा कि
कुछ मुस्लिम लड़के
पकड़े गए हैं
लेकिन सुनील ने
कहा कि हमारे
आदमियों ने किया है.
इसके कुछ दिन
बाद सुनील ने
असीमानंद के शबरी धाम
स्थित आश्रम जाकर
कहा कि अजमेर
धमाका भी हमारे
लोगों ने ही
किया है. सुनील
ने यह भी
बताया कि वह
भी वहां पर
थे और दो
मुस्लिम लड़के भी साथ
थे. मैंने पूछा
कि ये लड़के
तुम्हें कहां से मिले
तो उसने कहा
कि ये लड़के
इंद्रेश जी ने दिए
थे. मैंने सुनील
जोशी से कहा
कि इंद्रेश जी
ने अगर आपको
मुस्लिम लड़के दिए हैं
तो आप जब
पकड़े जाएंगे तो
इंद्रेश जी का भी
नाम आ सकता
है. मैंने सुनील
जोशी से कहा
कि इंद्रेशजी से
उसकी जान को
खतरा है. इसके
बाद सुनील जोशी
चले गए और
कुछ दिन बाद
भरत भाई का
फोन आया कि
उनका मर्डर हो
गया है. मैंने
उसी दिन कर्नल
पुरोहित को फोन करके
कहा कि सुनील
जोशी नाम के
हमारे लड़के का
मर्डर हो गया
है जो अजमेर
ब्लास्ट में शामिल थे.
मर्डर असीमानंद के कबूलनामें के
मुताबिक, '2005 में शबरीधाम में
असीमानंद की इंद्रेशजी से
मुलाकात हुई थी. उनके
साथ आरएसएस के
सभी बड़े पदाधिकारी थी.
इंद्रेशजी ने असीमानंद को
कहा कि आप
जो बम का
जवाब बम की
बात करते हो,
वह आपका काम
नहीं है. उन्होंने कहा
कि आरएसएस ने
आपको आदिवासियों के
बीच रहकर काम
करने का आदेश
दिया है, वह
करो.' असीमानंद के
बयान के मुताबिक इंद्रेश कुमार
ने कहा, 'सुनील
को इस काम
के लिए जिम्मेदारी दी
गई है, सुनील
को जो मदद
चाहिए हम करेंगे.
मुझे यह भी
पता चला कि
भारत भाई के
साथ सुनील जोशी
नागपुर में इंद्रेश कुमार
से मिले थे
और इंद्रेशजी ने
भारतभाई के सामने सुनील
जोशी को 50 हज़ार
रुपए दिया थे.
असीमानंद ने अपने बयान
में यह भी
कहा है कि
धमाका करने की
हर घटना से
पहले या एक
दो दिन बाद
सुनील मुझसे बताता
था कि यह
हमारे लोगों ने
किया है. मगर
जज दीपक डबास
के सामने दिए
गए इक़बालिया बयान
का अब कोई
मायने नहीं रह
गया है. स्वामी
असीमानंद ने अपना बयान
दर्ज करवाने के
कुछ दिन बाद
बयान दिया था
कि यह कबूलनामा उनसे
दबाव में लिया
गया था.
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