विधि आयोग और समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता के विवादास्पद मुद्दे पर विचार विमर्श के दायरे का विस्तार करते हुए विधि आयोग ने सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से अपनी राय साझा करने का आह्वान किया है और उसने इस विषय पर संवाद के लिए उनके प्रतिनिधियों को निमंत्रित करने की योजना बनायी है। आयोग ने इस विषय पर राजनीतिक दलों को प्रश्नावली भेजी है और उनसे 21नवंबर 2016 तक अपनी राय भेजने को कहा। 07अक्तूबर2016 को भेजी गयी विधि आयोग की इस प्रश्नावली में लोगों से, क्या तीन बार तलाक कहने की प्रथा खत्म की जानी चाहिए, क्या समान नागरिक संहिता ऐच्छिक होनी चाहिए, जैसे संवदेनशील मुद्दे पर शायद पहली बार उनकी राय मांगी गयी है। चुनाव आयोग में सात दल राष्ट्रीय स्तर पर और 49 दल क्षेत्रीय स्तर पर पंजीकृत है। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, राकांपा, भाकपा, माकपा और तृणमूल कांग्रेस हैं। 21वें विधि आयोग के अध्यक्ष (सेवानिवृत न्यायमूर्ति, सुप्रीम कोर्ट) डॉ. बलबीर सिंह चौहान ने सभी राजनीतिक दलों को लिखे पत्र में कहा है कि ‘‘आयोग कई दौर की चर्चा के बाद यह समझने के लिए एक प्रश्नावली तैयार की है कि आम लोग समान नागरिक संहिता के बारे में क्या महसूस करते हैं, चूंकि राजनीतिक दल किसी भी सफल लोकतंत्र के मेरुदंड हैं, अतएव, इस प्रश्नावली के संदर्भ में सिर्फ उनकी राय ही नहीं बल्कि इससे संबंधित उनके विचार भी बहुत महत्वपूर्ण है।" आयोग ने कहा है कि वह इस विवादास्पद विषय पर संवाद के लिए बाद में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित करेगा। आपका सहयोग आयोग को समान नागरिक संहिता पर त्रुटिहीन रिपोर्ट लाने में सहयोग पहुंचाएगा। कुछ दिन पहले चौहान ने मुख्यमंत्रियों से अल्पसंख्यक संगठनों, राजनीतिक दलों एवं सरकारी विभागों को उसकी प्रश्नावली पर जवाब देने के वास्ते उत्साहित करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की अपील की थी। सभी मुख्यमंत्रियों को भेजे पत्र में उनसे अपने राज्यों में संबंधित पक्षों जैसे अल्पसंख्यक संगठनों, राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटियों और यहां तक कि सरकारी संगठनों एवं एजेंसियों को आयोग के साथ अपना विचार साझा करने एवं संवाद करने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया था। परामर्श पत्र के साथ जारी अपील में आयोग ने कहा था कि इस प्रयास का उद्देश्य संभावित समूहों के विरुद्ध भेदभाव का समाधान करना और विभिन्न सांस्कृतिक प्रथाओं में संगति बनाना है। उसने लोगों को आश्वासन दिया है कि किसी भी वर्ग, समूह या समुदाय की परपंराएं परिवार विधि सुधार के अंदाज पर वर्चस्वशील नहीं होंगी। समान नागरिक आचार संहिता पर विधि आयोग की प्रश्नावली है कि क्या तीन तलाक का चलन खत्म कर देना चाहिए ? क्या समान नागरिक संहिता वैकल्पिक होनी चाहिए ? समान नागरिक संहिता पर बहस के बीच विधि आयोग ने परिवार कानूनों के पुनरीक्षण और उनमें सुधार के विषयों पर लोगों की राय मांगते हुए कहा कि उसके इस कदम का उद्देश्य कानूनों की बहुलता कायम करने की बजाय सामाजिक अन्याय को खत्म करना है। इन सवालों में मुस्लिम, हिंदू और ईसाई धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ में बदलाव के लिए राय मांगी गई। विधि आयोग के कुल 16सवाल निम्नलिखित हैं :-
1. क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद-44 में प्रावधान है कि सरकार समान नागरिक आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने का प्रयास करेगी ?
2. क्या समान नागरिक आचार संहिता में तमाम धर्मों के पर्सनल लॉ, परंपरागत रीति-रिवाज या उसके कुछ भाग शामिल हो सकते हैं, जैसे-शादी, तलाक, गोद लेने की प्रक्रिया, भरण-पोषण, उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित प्रावधान ?
3. क्या समान नागरिक आचार संहिता में पर्सनल लॉ और प्रथाओं को शामिल करने से लाभ होगा ?
4. क्या समान नागरिक आचार संहिता से लैंगिग समानता सुनिश्चित होगी ?
5. क्या समान नागरिक आचार संहिता को वैकल्पिक किया जा सकता है ?
6. क्या बहुविवाह प्रथा, बहुपति प्रथा, मैत्री करार आदि को खत्म किया जाए या फिर नियंत्रित किया जाए ?
7. क्या तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए या रहने दिया जाए या फिर संशोधन के साथ रहने दिया जाए ?
8. क्या यह तय करने का उपाय हो कि हिंदू स्त्री अपने संपत्ति के अधिकार का प्रयोग बेहतर तरीके से करे, जैसा पुरुष करते हैं ? क्या इस अधिकार के लिए हिंदू महिला को जागरूक किया जाए और तय हो कि उसके सगे-संबंधी इस बात के लिए दबाव न डालें कि वह संपत्ति का अधिकार त्याग दे ?
9. ईसाई धर्म में तलाक के लिए दो वर्ष का वेटिंग पीरियड संबंधित महिला के अधिकार का उल्लंघन तो नहीं है ?
10. क्या तमाम पर्सनल लॉ में आयुन का पैमाना एक हो ?
11. क्या तलाक के लिए तमाम धर्मों के लिए एक समान आधार तय होना चाहिए ?
12. क्या समान नागरिक आचार संहिता के तहत तलाक का प्रावधान होने से भरण-पोषण की समस्या हल होगी ?
13. विवाह पंजीकरण को बेहतर तरीके से कैसे लागू किया जा सकता है ?
14. अंतरजातीय विवाह या फिर अंतर-धर्म विवाह करने वाले युगल की रक्षा के लिए क्या उपाय हो सकते हैं ?
15. क्या समान नागरिक आचार संहिता धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है ?
16. समान नागरिक आचार संहिता या फिर पर्सनल लॉ के लिए समाज को संवेदनशील बनाने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं ?
इन सभी प्रश्नों पर लोगों को केवल हां या ना में जवाब देना है और फिर कारण और टिप्पणी करने के लिए कहा गया।
समान नागरिक संहिता के विवादास्पद मुद्दे पर विचार विमर्श के दायरे का विस्तार करते हुए विधि आयोग ने सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से अपनी राय साझा करने का आह्वान किया है और उसने इस विषय पर संवाद के लिए उनके प्रतिनिधियों को निमंत्रित करने की योजना बनायी है। आयोग ने इस विषय पर राजनीतिक दलों को प्रश्नावली भेजी है और उनसे 21नवंबर 2016 तक अपनी राय भेजने को कहा। 07अक्तूबर2016 को भेजी गयी विधि आयोग की इस प्रश्नावली में लोगों से, क्या तीन बार तलाक कहने की प्रथा खत्म की जानी चाहिए, क्या समान नागरिक संहिता ऐच्छिक होनी चाहिए, जैसे संवदेनशील मुद्दे पर शायद पहली बार उनकी राय मांगी गयी है। चुनाव आयोग में सात दल राष्ट्रीय स्तर पर और 49 दल क्षेत्रीय स्तर पर पंजीकृत है। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, राकांपा, भाकपा, माकपा और तृणमूल कांग्रेस हैं। 21वें विधि आयोग के अध्यक्ष (सेवानिवृत न्यायमूर्ति, सुप्रीम कोर्ट) डॉ. बलबीर सिंह चौहान ने सभी राजनीतिक दलों को लिखे पत्र में कहा है कि ‘‘आयोग कई दौर की चर्चा के बाद यह समझने के लिए एक प्रश्नावली तैयार की है कि आम लोग समान नागरिक संहिता के बारे में क्या महसूस करते हैं, चूंकि राजनीतिक दल किसी भी सफल लोकतंत्र के मेरुदंड हैं, अतएव, इस प्रश्नावली के संदर्भ में सिर्फ उनकी राय ही नहीं बल्कि इससे संबंधित उनके विचार भी बहुत महत्वपूर्ण है।" आयोग ने कहा है कि वह इस विवादास्पद विषय पर संवाद के लिए बाद में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित करेगा। आपका सहयोग आयोग को समान नागरिक संहिता पर त्रुटिहीन रिपोर्ट लाने में सहयोग पहुंचाएगा। कुछ दिन पहले चौहान ने मुख्यमंत्रियों से अल्पसंख्यक संगठनों, राजनीतिक दलों एवं सरकारी विभागों को उसकी प्रश्नावली पर जवाब देने के वास्ते उत्साहित करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की अपील की थी। सभी मुख्यमंत्रियों को भेजे पत्र में उनसे अपने राज्यों में संबंधित पक्षों जैसे अल्पसंख्यक संगठनों, राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटियों और यहां तक कि सरकारी संगठनों एवं एजेंसियों को आयोग के साथ अपना विचार साझा करने एवं संवाद करने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया था। परामर्श पत्र के साथ जारी अपील में आयोग ने कहा था कि इस प्रयास का उद्देश्य संभावित समूहों के विरुद्ध भेदभाव का समाधान करना और विभिन्न सांस्कृतिक प्रथाओं में संगति बनाना है। उसने लोगों को आश्वासन दिया है कि किसी भी वर्ग, समूह या समुदाय की परपंराएं परिवार विधि सुधार के अंदाज पर वर्चस्वशील नहीं होंगी। समान नागरिक आचार संहिता पर विधि आयोग की प्रश्नावली है कि क्या तीन तलाक का चलन खत्म कर देना चाहिए ? क्या समान नागरिक संहिता वैकल्पिक होनी चाहिए ? समान नागरिक संहिता पर बहस के बीच विधि आयोग ने परिवार कानूनों के पुनरीक्षण और उनमें सुधार के विषयों पर लोगों की राय मांगते हुए कहा कि उसके इस कदम का उद्देश्य कानूनों की बहुलता कायम करने की बजाय सामाजिक अन्याय को खत्म करना है। इन सवालों में मुस्लिम, हिंदू और ईसाई धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ में बदलाव के लिए राय मांगी गई। विधि आयोग के कुल 16सवाल निम्नलिखित हैं :-
1. क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद-44 में प्रावधान है कि सरकार समान नागरिक आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने का प्रयास करेगी ?
2. क्या समान नागरिक आचार संहिता में तमाम धर्मों के पर्सनल लॉ, परंपरागत रीति-रिवाज या उसके कुछ भाग शामिल हो सकते हैं, जैसे-शादी, तलाक, गोद लेने की प्रक्रिया, भरण-पोषण, उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित प्रावधान ?
3. क्या समान नागरिक आचार संहिता में पर्सनल लॉ और प्रथाओं को शामिल करने से लाभ होगा ?
4. क्या समान नागरिक आचार संहिता से लैंगिग समानता सुनिश्चित होगी ?
5. क्या समान नागरिक आचार संहिता को वैकल्पिक किया जा सकता है ?
6. क्या बहुविवाह प्रथा, बहुपति प्रथा, मैत्री करार आदि को खत्म किया जाए या फिर नियंत्रित किया जाए ?
7. क्या तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए या रहने दिया जाए या फिर संशोधन के साथ रहने दिया जाए ?
8. क्या यह तय करने का उपाय हो कि हिंदू स्त्री अपने संपत्ति के अधिकार का प्रयोग बेहतर तरीके से करे, जैसा पुरुष करते हैं ? क्या इस अधिकार के लिए हिंदू महिला को जागरूक किया जाए और तय हो कि उसके सगे-संबंधी इस बात के लिए दबाव न डालें कि वह संपत्ति का अधिकार त्याग दे ?
9. ईसाई धर्म में तलाक के लिए दो वर्ष का वेटिंग पीरियड संबंधित महिला के अधिकार का उल्लंघन तो नहीं है ?
10. क्या तमाम पर्सनल लॉ में आयुन का पैमाना एक हो ?
11. क्या तलाक के लिए तमाम धर्मों के लिए एक समान आधार तय होना चाहिए ?
12. क्या समान नागरिक आचार संहिता के तहत तलाक का प्रावधान होने से भरण-पोषण की समस्या हल होगी ?
13. विवाह पंजीकरण को बेहतर तरीके से कैसे लागू किया जा सकता है ?
14. अंतरजातीय विवाह या फिर अंतर-धर्म विवाह करने वाले युगल की रक्षा के लिए क्या उपाय हो सकते हैं ?
15. क्या समान नागरिक आचार संहिता धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है ?
16. समान नागरिक आचार संहिता या फिर पर्सनल लॉ के लिए समाज को संवेदनशील बनाने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं ?
इन सभी प्रश्नों पर लोगों को केवल हां या ना में जवाब देना है और फिर कारण और टिप्पणी करने के लिए कहा गया।
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