गुजराती गधे 'खुड़खर' की विशेषताएं
गुजराती गधा सिर्फ गधा ही नहीं बल्कि घोड़ा भी है अर्थात यह घोड़े और गधे का हाइब्रिड क्रॉस प्रोडक्ट है जिसे "घुड़खर" के नाम से जाना जाता है। कच्छ के लघु रण अभ्यारण्य में विभिन्न प्रजाति के जन्तु और पक्षियों के साथ-२ भारतीय जंगली गधे की लुप्तप्राय प्रजाति भी यहां पायी जाती है क्योंकि भारत में गधों के लिए केवल यही एकमात्र अभ्यारण्य है। यह अक्सर झुण्ड में रहते हैं, खासतौर से प्रजनन काल में। यह घुड़खर के नाम से जाना जाने वाला यह जंगली गधा पूरी तरह से न तो गधा है और न ही घोड़ा। यह गधे और घोड़े दोनों के बीच की प्रजाति है इसमें दोनों के गुण पाए जाते हैं। जैसा कि इसके नाम पर गौर करें तो पता चलता है कि घुड़ शब्द घोड़े से लिया गया है और खर का मतलब गधा होता है। इस तरह घोड़े और गधे दोनों के नाम को मिलाकर इसे यह 'घुड़खर' नाम मिला है। वैसे इसे भारत में ‘गधेरा’, ‘खच्चर’ और ‘जंगली गधा' भी कहते हैं।
यह गुजरात के लघु कच्छ रण में स्थित अभ्यारण्य में ही अपनी सबसे ज्यादा तादाद में मिलता है। इन जंगली गधों का निवास यह अभ्यारण्य कोई छोटा-मोटा अभ्यारण यानी सेंचुरी नहीं बल्कि भारत की सबसे बड़ी सेंचुरी है। यह अभ्यारण 4953.70 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। साल 2015 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में कुल 4500 जंगली गधे हैं जिनमें से तकरीबन 3000 घुड़खर केवल इसी अभ्यारण्य में पाए जाते हैं। गुजरात के इस सेंचुरी में पैदा होने वाली घास की वजह से घुड़खर सबसे ज्यादा यहां पाए जाते हैं। खारे रेगिस्तान में उगने वाली एक खास किस्म की घास को खाने का शौकीन होने के कारण कच्छ का लघु रण इसकी पसंदीदा जगह है। लगभग 250 किग्रा वजन व 210 सेमी लंबाई के शरीर वाला यह घुड़खर 70 से 80 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है क्योकि इसकी छलांगे काफी लंबी होती हैं। दस से लेकर बीस के झुंड में चलने वाले घुड़खर इनकी खासियत यह भी है कि यह महीनों बिना नहाए भी चमकदार ही दिखते हैं। इतनी सब विशेषताएं होने के बावजूद गधे को लेकर हमारी मानसिकता के चलते यह दुर्लभ वन्य प्रजाति अनदेखी का शिकार है। एशियाई शेर की तरह ही यह एशियाई गधा भी सिर्फ भारत में ही पाया जाता है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इस प्रजाति को विलुप्ति के खतरे के अंतर्गत रखा है। भारत सरकार द्वारा वन्य पशु सुरक्षा अधिनियम 1972 के अंतर्गत इसे पहली सूची में रखा गया है। शायद आप यह जानकर चौंक जाएं कि कच्छ के घुड़खर और इसी तरह की प्रजाति जिसे लद्दाख में किआंग के नाम से जाना जाता है, के नाम पर 2013 में डाक टिकट भी जारी किये जा चुके हैं जिस तरह की विशेषताएं इस जंगली गधे "घुड़खर" में हैं उनको देखते हुए यह किसी घोड़े से कम नहीं है। इस आधे घोड़े और आधे गधे में वे विशेषताएं हैं जिनका प्रचार सारे संसार में गर्व के साथ हो रहा है।
गुजराती गधा सिर्फ गधा ही नहीं बल्कि घोड़ा भी है अर्थात यह घोड़े और गधे का हाइब्रिड क्रॉस प्रोडक्ट है जिसे "घुड़खर" के नाम से जाना जाता है। कच्छ के लघु रण अभ्यारण्य में विभिन्न प्रजाति के जन्तु और पक्षियों के साथ-२ भारतीय जंगली गधे की लुप्तप्राय प्रजाति भी यहां पायी जाती है क्योंकि भारत में गधों के लिए केवल यही एकमात्र अभ्यारण्य है। यह अक्सर झुण्ड में रहते हैं, खासतौर से प्रजनन काल में। यह घुड़खर के नाम से जाना जाने वाला यह जंगली गधा पूरी तरह से न तो गधा है और न ही घोड़ा। यह गधे और घोड़े दोनों के बीच की प्रजाति है इसमें दोनों के गुण पाए जाते हैं। जैसा कि इसके नाम पर गौर करें तो पता चलता है कि घुड़ शब्द घोड़े से लिया गया है और खर का मतलब गधा होता है। इस तरह घोड़े और गधे दोनों के नाम को मिलाकर इसे यह 'घुड़खर' नाम मिला है। वैसे इसे भारत में ‘गधेरा’, ‘खच्चर’ और ‘जंगली गधा' भी कहते हैं।
यह गुजरात के लघु कच्छ रण में स्थित अभ्यारण्य में ही अपनी सबसे ज्यादा तादाद में मिलता है। इन जंगली गधों का निवास यह अभ्यारण्य कोई छोटा-मोटा अभ्यारण यानी सेंचुरी नहीं बल्कि भारत की सबसे बड़ी सेंचुरी है। यह अभ्यारण 4953.70 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। साल 2015 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में कुल 4500 जंगली गधे हैं जिनमें से तकरीबन 3000 घुड़खर केवल इसी अभ्यारण्य में पाए जाते हैं। गुजरात के इस सेंचुरी में पैदा होने वाली घास की वजह से घुड़खर सबसे ज्यादा यहां पाए जाते हैं। खारे रेगिस्तान में उगने वाली एक खास किस्म की घास को खाने का शौकीन होने के कारण कच्छ का लघु रण इसकी पसंदीदा जगह है। लगभग 250 किग्रा वजन व 210 सेमी लंबाई के शरीर वाला यह घुड़खर 70 से 80 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है क्योकि इसकी छलांगे काफी लंबी होती हैं। दस से लेकर बीस के झुंड में चलने वाले घुड़खर इनकी खासियत यह भी है कि यह महीनों बिना नहाए भी चमकदार ही दिखते हैं। इतनी सब विशेषताएं होने के बावजूद गधे को लेकर हमारी मानसिकता के चलते यह दुर्लभ वन्य प्रजाति अनदेखी का शिकार है। एशियाई शेर की तरह ही यह एशियाई गधा भी सिर्फ भारत में ही पाया जाता है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इस प्रजाति को विलुप्ति के खतरे के अंतर्गत रखा है। भारत सरकार द्वारा वन्य पशु सुरक्षा अधिनियम 1972 के अंतर्गत इसे पहली सूची में रखा गया है। शायद आप यह जानकर चौंक जाएं कि कच्छ के घुड़खर और इसी तरह की प्रजाति जिसे लद्दाख में किआंग के नाम से जाना जाता है, के नाम पर 2013 में डाक टिकट भी जारी किये जा चुके हैं जिस तरह की विशेषताएं इस जंगली गधे "घुड़खर" में हैं उनको देखते हुए यह किसी घोड़े से कम नहीं है। इस आधे घोड़े और आधे गधे में वे विशेषताएं हैं जिनका प्रचार सारे संसार में गर्व के साथ हो रहा है।
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