रविवार, 8 अक्तूबर 2017

मोदी सरकार बनने के 11 माह में ही हजारो करोड़ विदेशी खातों के हवाले


नोटबंदी में हजारों करोड़ का खेल
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
केंद्र की संघ संचालित मोदी सरकार भले ही हर मंच से कालेधन के खिलाफ भाषणबाजी करती आई है, लेकिन उनकी सरकार के कुछ फैसलों से हवाला करोबारियों को कानूनी रूप से विदेशों में कालाधन भेजने का सुनहरा मौका मिल गया। इस बात का शुक्रवार 05 अक्टूबर 2017 को खुलासा हुआ कि नोटबंदी के दौरान 5800 संदिग्ध कंपनियों के 13 हजार से अधिक खातों के जरिये हजारों करोड़ों रुपये के नोट बदले गए। 
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि वित्त मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि 13 बैंकों के पहले चरण में 5800 संदिग्ध कंपनियों के बैंक खातों की जानकारी हाशिल हुई है। ये कंपनियां संदिग्ध लेन देन के कारण पंजीकरण रद्द की जा चुकी दो लाख नौ हजार 32 कंपनियों में शामिल हैं। नोटबंदी की घोषणा के दिन खातों से इतर इन कंपनियों के खातों में कुल जमा राशि 22 करोड़ पांच लाख रुपये थी। नोटबंदी की घोषणा के बाद से पंजीकरण रद्द किये जाने तक इनके खातों में कुल 4,573.87 करोड़ रुपये जमा कराये गये और 4,552 करोड़ रुपये निकाल लिए गए। पैसे निकाले जाने के बाद एक बार फिर इन कंपनियों में लेन-देन शिथिल पड़ गया है। कुछ कंपनियों ने तो पंजीकरण रद्द किए जाने के बाद भी खातों में लेन-देन करने की कोशिश की। वहीं 08 नवंबर 2016 को शून्य बैलेंस वाली 429 कंपनियों के खातों में नोटबंदी के बाद से 11 करोड़ रुपये से अधिक जमा किए गए और निकाले गए और खाते फ्रीज करने के दिन उनका कुल बैलेंस 42 हजार रुपये रह गया था। मंत्रालय ने कहा है कि संदिग्ध लेनदेन वाली कुल कंपनियों में से सिर्फ ढाई प्रतिशत के आंकड़े ही अभी उपलब्ध कराए गए हैं। यह इन कंपनियों के भ्रष्टाचार, कालाधन और गोरखधंधे की झलक मात्र है। सभी कंपनियों के आंकड़े आने के बाद यह खेल अरबों रुपये का हो सकता है। हैरानी की बात तो यह है कि इन 5800 कंपनियों के नाम पर कुल 13,140 खाते होने का पता चला है। इसमें एक कंपनी के नाम पर तो 2,134 बैंक खाते थे। कुछ कंपनियों के नाम पर 900 तो कुछ के नाम पर 300 से ज्यादा खाते पाये गए हैं। इन कंपनियों के खातों में नोटबंदी के दौरान अचानक बड़ी मात्र में पैसा जमा कराया गया और फिर नए नोट के रूप में निकाल लिए गए।
अब हकीकत क्या है, इस राज से दैनिक मूलनिवासी नायक पर्दा उठा रहा है। हकीकत यह है कि केंद्र की संघ संचालित मोदी सरकार भले ही हर मंच से कालेधन के खिलाफ भाषणबाजी करती आई हो, लेकिन उनकी सरकार के कुछ फैसलों से हवाला करोबारियों को कानूनी रूप से विदेशों में कालाधन भेजने का सुनहरा मौका मिल गया। देश में 500 व 1000 के नोटबंद करने के पहले पिछले 11 महीनों में सरकार के फैसलों का फायदा उठाते हुए यूरेशियन ब्राह्मणों ने 30,000 करोड़ रूपये विदेशों में ट्रांसफर कर दिया। यह पिछले सालों में विदेश भेजी गई राशि का तिनगुना है। मोदी सरकार बनने के पहले एलआरएस (लिबेरालाइज्ड रेमिटेंस स्कीम) के तहत विदेश में धन भेजने की सीमा सिर्फ 75 हजार डॉलर थी, उसे भाजपा ने सŸा में आने के एक हफ्ते के अंदर ही 03 जून 2015 को इसकी सीमा बढ़ाकर 125 हजार डॉलर कर दी थी। पिछले दो साल 26 मई 2015 को दोबारा एलआरएस की सीमा बढ़ाकर 250 हजार डॉलर कर दी गई। यह फैसला हवाला करोबार को कानूनी दर्जा देने जैसा साबित हुआ है। क्योंकि इस फैसले के चलते जून 2015 से पिछले 11 महीनों में 30,000 करोड़ रूपये विदेशी खातों में लोगों ने ट्रांसफर कर दिया है। 
आरबीआई की जानकारी में यह सब तब तक होता रहा जब तक मोदी सरकार गुपचुप तरीके से 500 व 1000 रूपये के नोट बंद करने की तैयारी कर रही थी। जबकि नोटबंदी के बाद न केवल मोदी बताने से पीछे नहीं हटे कि इस बात की जानकारी किसी को दिए बगैर ही नोटबंदी का फैसला लिया बल्कि भाजपा के नेता भी इस बात से इनकार करते रहे कि मोदीजी ने किसी को सूचना दिए ही ऐसा फैसला किया था। आरबीआई के पास आज भी इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है कि इतनी बड़ी रकम हवाला कारोबारियों ने अचानक किस कारण विदेशी खातों में स्थानांतरित कर दी। यदि उक्त बातों का पूर्णरूप से विश्लेषण करें तो पता चलता है कि एलआरएस के तहत लोंगों को कानूनी रूप से यह अधिकार है कि वे विदेशों में रह रहे अपने किसी रिश्तेदार के जीवन यापन के लिए खर्च या उपहार के लिए धन भेज सकते हैं। लेकिन मोदी सरकार ने इस कानून में हेराफेरी कर देश का कालाधन विदेशी खातों में ट्रांसफर करने में आसान बना दिया है। इसी कानून के तहत शासक वर्ग देश के कालेधन को विदेशों में ट्रांसफर कर रहे हैं और मोदी कालाधन वापस लाने की भाषणबाजी कर रहे हैं।

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