अंबेडकर यानि जंग
सात करोड़ जनता असहाय हुई। जुल्म और बनावटी बेइन्साफी के खिलाफ आजीवन ईमान से जूझनेवाले जुझारू बहादुर चले गए। पाँच हजार वर्षों तक पाँच करोड़ लोगों को हिन्दू समाज द्वारा किए गए छल का मुँहतोड़ और जंगी जवाब अंबेडकर थे। अंबेडकर यानि जंग, यकीनन जंग। उनके जिस्म के जर्रे-जर्रे से जंग जाहीर होती थी। अंबेडकर जुल्म के वास्ते बनी वज्र की मुट्ठी थे। अंबेडकर बनावटी और जालसाजी को कलम करने वाली गदा थे। अंबेडकर यानि जन्मभेद और नाबराबरी पर छोड़ा गया सुदर्शन चक्र। अंबेडकर जुर्म
और वर्णशाही के आतंकियों को फाड़ने वाला
शेर का नाखून
थे। अंबेडकर यानि
वतनदार और सियासतदारों के खिलाफ छेड़ा
गया संग्राम। अंबेडकर ने रब, मजहब, जातिभेदों के फंदो और बंदगी के खिलाफ रण बिगुल फूंकने वाले बुद्ध जैसे रहबरों को अपनाया। गिरी हुई औरतों को ऊपर उठाने वाले फुले को खत्म करने के लिए हिन्दू समाज ने भाड़े के हत्यारे भेजे। कबीर के हाथ पांव बाँधकर पानी में डुबो दिया गया, हाथी के पैरों तले रौंदा गया और फिर मरने के बाद हिन्दू और मुसलमानों को उनके बारे में इतना प्यार होने लगा कि उनके लाश का हक हासिल करने के लिए एक-दूसरे का सिर फोड़ने तक पर तुल गए। भगवान
बुद्ध के खून
के प्यासों ने भी उन्मत्त
नालागिरी हाथी और देवदत्त जैसे
कातिलों को छोड़े
बिना चैन नहीं
ली। मुद्दत में और उसके बाद भी जिन्हें दुःख, दर्द और छल का हलाहल पीना पड़ा ऐसे रहबरों के अंबेडकर सच्चे शागीर्द थे। हिन्दू समाज और कांग्रेस की सियासत के जरिए अंबेडकर का जितना अपमान, जितनी बुराई और जितनी धोखाधड़ी हुई शायद ही किसी के साथ हुई होगी।
टूटूंगा, सहूंगा,
मरूंगा पर झुकूंगा
नहीं, इस जिद
से उन्होंने बगावत
का जिहाद छेड़
दिया था। कुत्ते बिल्लियों से भी गिरा बर्ताव करने वाले तुम्हारे मजहब में मैं नहीं जिऊंगा। इंसान और इंसान के बीच हराकत का जहर फैलाने वाले तुम्हारे स्मृति-ग्रंथों को जला दूँगा। इस कदर
सीना ठोककर वे सनातनी हिन्दुओं
को आगाह करते
थे। इसपर हिन्दू
लोग उनपर गुस्सा
हुए। उनको लगा
अंबेडकर मोहम्मद गजनबी
से भी बहुत
बड़ा खतरनाक हमलावर
है। धर्म अख्तियार करने की पुकार करने के बाद उनका खून करने के इरादे से एक हिन्दू लीडर “लॉर्ड
कूर्त कोटी” के पास गया लेकिन डॉ. कूर्त कोटी ने उसको कहा- “खबरदार जो तुम अंबेडकर
पर हमला करने
चले हो, अंबेडकर
के हर खून
के कतरे से दस-दस अंबेडकर पैदा
होंगे।” उनके
धर्मान्तरण की घोषणा
हिन्दू धर्म के विनाश की घोषणा नहीं
थी। वह हिन्दू
धर्म को चेतावनी
थी। वर्णव्यवस्था हिन्दू धर्म और भारत के गिरावट की असली जड़ है, यह उनके लफ्ज थे। उन्होंने एक बार कहा था-“अगर किसी दुश्मन
का बदला लेना ही होता तो पाँच साल के अंदर इस देश को मैं तबाह कर दिया होता। लेकिन इस देश के इतिहास
में गद्दार की हैसियत से खलनायक दर्ज होना मेरे ख्वाब में न था। मुझे इस बात का बहुत गर्व है कि तमाम उम्र में मैने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे मुझपर कोई कलंक या लांछन आए”।
गांधी के खून से सने हुए हाथ किसी गोडसे के ही हो सकते हैं, किसी ब्राह्मण के ही हो सकते हैं, औरों के नहीं। नौ करोड़ मुसलमानों को खुश करने के लिए कांग्रेस ने इस भूमि के तीन टुकड़े कर डाले, लेकिन सात करोड़ अछूतों की मोहब्बत को हासिल करने के लिए कागजी कानून बनाने के अलावा कांग्रेस ने कुछ भी नहीं किया। तब भी देश को आजादी मिलते ही संविधान समिति में अंबेडकर ने अखंड हम वतन देश और एक जमाति संगठन का नारा बुलंद किया। मैं
जो बोलूं या लिखूं वो हकीकत नहीं
है, ऐसा कहने
की हिमाकत रब में भी नहीं, ऐसा
जोश और भरोसा
उनके दिलों-दिमाग
पर हमेशा मौजूद
रहता था।
हिन्दू धर्म में पैदा होना मेरे वश की बात नहीं थी, लेकिन उसमें मरूंगा
नहीं यह बदले की भावना से नहीं बल्कि उम्मीद और हमदर्दी रखने वाले दिल की अंदरूनी पुकार थी। इन लफ्जों से इंसान आज भी सबक सीख ले तो आज भी संसार को बैचेनी और नाबराबरी से अमन और भाईचारे का जीवन देने वाले बुद्ध को खुल्लमखुल्ला अख्तियार करने वाले इंसान के रास्ते में कौन हरकत करने का साहस करेगा…!
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