मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

हिन्दू कोड बिल


बरसों पहले हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और प्रथम कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर ने हिन्दू महिलाओं के संरक्षण के लिए और उन्हें बराबर का अधिकार देने के लिए एक बड़ी पहल की थी।
इस पहल का नाम था ‘‘हिन्दू कोड बिल’’। हिन्दू कोड बिल के माध्यम से महिला को पुरूष के बराबर अधिकार दिए गए थे। महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार दिया गया। बिल से हिन्दुओं का एक से ज्यादा विवाह करना प्रतिबंधित कर दिया गया। इस कदम का विरोध भी प्रारंभ हो गया था। विरोध करने के लिए हिन्दू कोड बिल विरोधी कमेटी बनाई गई। इस कमेटी में शामिल लोगों ने स्वयं को धर्मवीर बताया-ऐसे धर्मवीर जो एक धर्मयुद्ध लड़ने जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ न सिर्फ इस समिति में शामिल हुआ वरन् उसने अपनी पूरी ताकत बिल विरोधी आंदोलन में झोक दी। इस कमेटी के तत्वाधान में देश में सैकड़ों सभायें की गईं, जुलूस निकाले गए। इन सभाओं में अनेक साधु-संत शामिल हुए। शंकराचार्य ने भी बिल की भर्त्सना की। 11 दिसंबर, 1949 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक आमसभा का आयोजन किया गया। सभा में बोलते हुए अनेक वक्ताओं ने बिल की भर्त्सना की। एक वक्ता ने उसे हिन्दू समाज पर फेंका गया एटम बम बताया। एक वक्ता ने उसकी तुलना अंग्रेजों द्वारा बनाए गए रोलेट कानून से की। एक वक्ता ने कहा कि जैसे रोलेट कानून से अंग्रेजी साम्राज्य का पतन हुआ था वैसे ही इस कानून से नेहरू और उनकी सरकार का पतन होगा। दूसरे दिन असेम्बली की तरफ मार्च में शामिल लोग नारे लगा रहे थे ‘‘हिन्दू कोड बिल का नाश हो, नेहरू जी का नाश हो।’’ जुलूस में शामिल लोग नेहरू जी और डॉ. अम्बेडकर के पुतले जला रहे थे। जुलूस में शामिल लोगों ने शेख अब्दुल्ला की कार पर भी हमला किया।
इस आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे स्वामी करपात्री। बिल की निंदा करते हुए उन्होंने डॉ. अम्बेडकर की जाति का उल्लेख करते हुए कहा कि उसे उन मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है जिन मामलों में अंतिम निर्णय ब्राह्मणों का होता है।

स्वामी करपात्री दिल्ली और अन्य स्थानों पर अपने भाषणों के दौरान अम्बेडकर को चुनौती देते थे कि वे हिन्दू शास्त्रों की विवेचना के मामले में उनसे शास्त्रार्थ करें।

अम्बेडकर का कहना था कि हिन्दू शास्त्रों में बहु विवाह का प्रावधान नहीं है। स्वामी करपात्री ने अम्बेडकर के इस दावे को चुनौती दी थी। उन्होंने एक हिन्दू स्मृति का उल्लेख करते हुए कहा कि इस स्मृति में इस बात का प्रावधान है कि यदि पत्नी नशा करती है, अपंग है, चालाक है, बांझ है और खर्चीली है, यदि उसकी जुबान कड़वी है, यदि उसने सिर्फ कन्याओं को जन्म दिया है और उसके पुत्र नहीं हैं, वह अपने पति से घृणा करती है तो एक पत्नि के होते हुए भी उसे दूसरी शादी करने का अधिकार है। उन्होंने इन प्रावधानों का मौलिक स्वरूप भी प्रस्तुत किया था। परंतु स्वामी जी ने यह नहीं बताया कि क्या पत्नी भी ऐसी स्थिति में जब पति आदतन शराबी हो, उसकी कड़वी जुबान हो, वह खर्चीला हो तो वह भी तलाक दे सकती है कि नहीं।
स्वामी करपात्री जी के अनुसार हिन्दू परंपरा में तलाक का प्रावधान नहीं है। शास्त्रों के अनुसार दूसरी जाति के बच्चे को गोद लेना भी प्रतिबंधित है। संपत्ति के अधिकार के मामले में भी महिलाओं को सिर्फ सीमित अधिकार प्राप्त हैं। हिन्दू शास्त्रों के इन प्रावधानों के बावजूद यदि हिन्दू कोड बिल हिन्दुओं पर लादा जाता है तो यह ईश्वर द्वारा बनाए गए नियमों का उल्लंघन होगा। इससे न सिर्फ सरकार का बल्कि देश का नुकसान होगा। बिल का विरोध चालू रहा, स्वयंसेवकों के जत्थे दिल्ली आते थे और नेहरू जी के विरूद्ध नारे लगाते थे। वे साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने का प्रयत्न भी करते थे। उनके नारे होते थे पाकिस्तान तोड़ दो, नेहरू हुकूमत छोड़ दो।

मैंने यह विवरण प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी से लिया है, जो इस किताब के पृष्ठ 228 से लेकर 232 में दिया गया है।

इस तरह यह दावे से कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में वयस्क मताधिकार के द्वारा स्थापित प्रजातंत्र का विरोधी तो था ही वरन् उसके साथ-साथ वह हिन्दू समाज में किसी भी प्रकार के प्रगतिशील परिवर्तन का भी विरोधी था और इसको लेकर संघ ने नेहरू और डॉ. अम्बेडकर के विरूद्ध जहरीला प्रचार किया।
       मित्रो,आज वे पाखण्डी लोग ही इंस्टेंट तलाक रोकने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर ऐसे उछल रहे हैं ,जैसे वे खुद ही हिन्दू पुरुष नहीं ,मुस्लिम महिला हो । वे वही लोग हैं जो अपने घर में कूड़ा जमा रखे रहना चाहते हैं और दूसरों के घर में गन्दगी का शोर मचाते हैं।

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