रविवार, 8 अक्तूबर 2017

क्रिमीनल की लिस्ट में मोदी और योगी


गुजरात दंगों के आरोपित मोदी, मालेगांव धमाके के आरोपित योगी
नई दिल्ली/अहमदाबाद/दै.मू.समाचार
क्रिमीनल की हिट लिस्ट में केवल देश विनाशक प्रधानमंत्री का ही हाथ नहीं बल्कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का भी बहुत बड़ा हाथ है। इन दोनों बातों का खुलासा तब हुआ हुआ जब मोदी केस को लेकर गुजरात हाईकोर्ट और योगी केस को लेकर एनआईए की एक विशेष अदालत ने दोनों क्रिमीनल्स को न केवल आरोपी होने से इंकार कर दिया बल्कि योगी और मोदी के खिलाफ याचिकाओं को रद्द करते हुए दोनों को बरी भी कर दिया।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार ब्यूरो से मिली जानकारी के अनुसार जहां एक ओर गुजरात हाई कोर्ट से 2002 में हुए दंगे के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट मिल गई है। वहीं एनआईए की एक विशेष अदालत ने योगी को साल 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में बरी कर दिया। गौरतलब है कि निचली अदालत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 60 लोगों पर फिर केस चलाने की मांग वाली जकिया जाफरी की याचिका खारिज दिया और अन्य को विशेष जांच दल से मिली क्लीन चिट को बरकरार रखा था। गुजरात हाई कोर्ट ने साफ किया है कि गुजरात दंगों की दोबारा जांच नहीं होगी। हाई कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई 03 जुलाई को ही पूरी कर ली थी। इसमें मोदी और 59 अन्य लोगों को दंगों की साजिश रचने का आरोपी बनाने की मांग की गई थी। 
आपको बताते चलें कि न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी ने दंगों में बड़ी साजिश के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट संजीव भट्ट के मामले में बड़ी साजिश पर पहले ही चर्चा कर इसे खारिज कर चुका है। दिवंगत पूर्व सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जकिया और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस’ ने दंगों के पीछे ‘बड़ी आपराधिक साजिश’ के आरोपों के संबंध में पीएम मोदी और अन्य को एसआईटी द्वारा दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखने के मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। याचिका में उच्च न्यायालय से मामले की जांच नए सिरे से कराने का आदेश देने का भी अनुरोध किया गया है। साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में कारसेवकों को जलाने की घटना के एक दिन बाद पूरे राज्य में दंगा भड़क गया था। इसके एक दिन बाद 28 फरवरी 2002 को भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी में धावा बोल दिया। इस घटना में एहसान जाफरी समेत 68 लोगों की मौत हो गई थी। एसआईटी ने 08 फरवरी 2012 को दाखिल अपनी क्लोजर रिपोर्ट में मोदी और अन्य लोगों को क्लीन चिट दी है। दिसंबर 2013 में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने रिपोर्ट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद जकिया 2014 में उच्च न्यायालय पहुंची थी, लेकिन न्यायालय में बैठे ब्राह्मणवादी जजों ने न्याया का गला ही घोंट दिया।
इसी तरह से साल 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में आरोपित सुधाकर चतुर्वेदी ने बुधवार को दावा किया कि जांच अधिकारियों ने तत्कालीन बीजेपी सांसद और उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य हिंदू नेताओं को इस मामले में फंसाने की कोशिश की थी। फिलहाल जमानत पर रिहा चतुर्वेदी ने यह आरोप भी लगाया कि भगवा आतंक की बातें साबित करने और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के लिए पिछली सरकार ने हिंदू कार्यकर्ताओं को इस मामले में फंसाया था। चतुर्वेदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया है कि पूछताछ के दौरान मुझसे आरएसएस और इसके प्रमुख मोहन भागवत से मेरे जुड़ाव के बारे में सवाल किए गए। योगी आदित्यनाथ के बारे में खासकर सवाल किए गए। उन्होंने मेरे जरिए उन्हें फंसाने की कोशिश की थी। मालेगांव धमाके की जांच पहले महाराष्ट्र एटीएस ने की थी और फिर इसकी जांच एनआईए को सौंपी गई थी। पिछले महीने एनआईए की एक विशेष अदालत ने चतुर्वेदी और एक अन्य आरोपित सुधाकर द्विवेदी उर्फ शंकराचार्य को पिछले महीने जमानत दे दिया था। चतुर्वेदी एवं अन्य पर आरोप है कि उन्होंने ऐसी बैठकों में हिस्सा लिया जिनमें आतंकी हमले की साजिश रची गई। 29 सितंबर 2008 को यहां से करीब 200 किलोमीटर दूर नासिक जिले के मालेगांव में एक बाइक में हुए बम विस्फोट में छह लोग मारे गए थे जबकि 100 अन्य घायल हो गए थे। जबकि इस बात सबूत सहित बयान स्वामी असिमानन्द भी दे चुका है कि देश में आतंक फैलाने का आरएसएस करता है, इसके बाद भी योगी को आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने से इनकार करते हुए बरी कर दिया गया है जो ब्राह्मणों का देश व्यवस्था पर अनियंत्रित नियंत्रण का दुष्परिणाम है।

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