रविवार, 8 अक्तूबर 2017

इंसान का इंसान होना ही बहुत है, इंसान का ब्राह्मण होना खतरे की घंटी है-वामन मेश्राम

भारत मुक्ति मोर्चा के डर से कश्मीरी टीकाधारियों में हाहाकार



कश्मीरी पंडितों ने शुरू किया बेटियों का जनेऊ उपनयन संस्कार
इंसान का इंसान होना ही बहुत है, इंसान का ब्राह्मण होना खतरे की घंटी है-वामन मेश्राम
जम्मू/दै.मू.समाचार
☞ भारत का शासक वर्ग केवल ब्राह्मण है, क्षत्रिय और वैश्य तो ब्राह्मणों को शासक वर्ग बनाने में केवल सहायता करते हैं। भारत में शासक वर्ग केवल ब्राह्मण है। महाराष्ट्र में विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े नाम का एक बहुत बड़ा इतिहासकार है और वह ब्राह्मण है। उसने सारा जीवन इतिहास लिखने में ही लगा दिया। उसने लिखा है कि वास्तविक रूप से ब्राह्मण ही भारत का शासक वर्ग है, क्षत्रिय और वैश्य तो केवल ब्राह्मणों को शासक वर्ग बनाने में सहायता करते हैं-वामन मेश्राम
यूरेशियन ब्राह्मणों में केवल लड़कों को ही जनेऊ धारण कराने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन इस बार कश्मीरी पंडितों ने बेटियों का भी जनेऊ उपनयन संस्कार शुरू कर दिया है। जिन बेटियों को पहले शूद्र घोषित कर शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया था, लेकिन आज यूरेशियन ब्राह्मणों को क्या जरूरत पड़ गई कि बेटियों का जनेऊ उपनयन संस्कार शुरू करना पड़ा है? इसका केवल एक ही कारण है कि पूरे देश में भारत मुक्ति मोर्चा महिलाओं को जागृत कर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन चला रहा है। पंडितों को इस बात का डर हो चुका है कि कही उनके घरों की महिलाएं भी अपना वास्तविक इतिहास जानकर ब्राह्मणों के खिलाफ ही न खड़ी हो जाएं। इसी डर के कारण वह अपने घरों की महिलाओं का भी उपनयन संस्कार शुरू कर दिया है। 
दैनिक मूलिनवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि यूरेशियन ब्राह्मणों को दिए जाना वाला ‘‘जनेऊ संस्कार’’ एक प्रकार का दीक्षा होती है। जनेऊ संस्कार के माध्यम से ब्राह्मणों को सबसे उच्च होने की ‘‘दीक्षा’’ दी जाती है। गौरतलब है कि भारत मुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने जनेऊ संस्कार (दीक्षा) पर विषय बनाकर पूरे देश में जन-जागृति का अभियान चलाकर पर्दाफाश किया था। इससे पूरे देश में जागृति का ऐसा सैलाब उमड़ा कि यूरेशियन ब्राह्मणों में खलबली मच गई। मालूम हो कि बामसेफ के पास कई ऑफसूट संगठन हैं, भारत मुक्ति मोर्चा भी उसी का एक महत्वपूर्ण अंग है। बामसेफ महिलाओं का ‘‘राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला संघ’ नामक राष्ट्रीय संगठन बनाकर महिलाओं को उनके वास्तविक इतिहास की जानकारी दे रहा है। इस गंभीर विषय पर वामन मेश्राम ने बताया था कि मनुस्मृति के आधार पर यूरशियन ब्राह्मणों ने अपने ही घरों की महिलाओं को शूद्र घोषित कर शिक्षा से वंचित कर दिया था। उस समय यह बात समझ में नहीं आती थी कि ब्राह्मणों ने अपनी महिलाओं को क्यों शूद्र घोषित किया? इस बात का सनसनीखेज खुलासा तब हुआ जब 21 मई 2001 ‘‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’’ में खबर छपकर आई कि उताह विश्वविद्यालय के प्रो.व वैज्ञानिक डॉ माईकल वामशाद ने डीएनए पर रिसर्च किया और साबित कर दिया कि भारत में सदियों से रहने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य विदेशी हैं। ब्राह्मणों, क्षत्रिय और वैश्यों का 99.99 प्रतिशत डीएनए यूरेशयन लोगों से मैच कर गया, जबकि यूरेशियन ब्राह्मणों के घरों की महिलाओं का डीएनए भारत के मूलनिवासियों (एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी ) के लोगों से 100 प्रतिशत मैच कर गया। इससे साबित हो गया कि ब्राह्मणों के घरों की महिलाएं ब्राह्मणों की नहीं हैं, बल्कि मूलनिवासी हैं। ब्राह्मणों ने मूलनिवासी महिलाओं को जबरन अपने पास रख लिया और अपना वंश बढ़ाया। ब्राह्मणों ने अपनी महिलाओं को इसलिए शिक्षा से दूर रखा कि कहीं उन महिलाओं को उनका वास्तविक इतिहास पता हो गया तो वे ब्राह्मणों के ही विरोध में आंदोलन छेड़ देगी। यही कारण है कि ब्राह्मणों ने अपनी महिलाओं को न केवल शूद्र घोषित किया बल्कि शिक्षा से भी वंचित कर दिया। भारत मुक्ति मोर्चा ने महिलाओं का राष्ट्रव्यापी संघगठन बनाकर पूरे देश में महिलाओं को जागृत कर रहा है और उनके वास्तविक इतिहास को बताने का काम कर रहा है। यहीं कारण है कि टीकाधारियों में खौफ का माहौल व्याप्त हो चुका है। इस खौफ में आकर ब्राह्मणों ने बेटों के अलावा अब बेटियों का भी उपनयन संस्कार शुरू कर दिया है। 
उपनयन संस्कार क्या होता है? इसका जवाब देते हुए वामन मेश्राम ने बताया कि अगर एक ब्राह्मण है और उसके नाक पर मक्खी बैठ गई। जिसको मक्खी उड़ने की ताकत नहीं है, वो भी हमारे विरोध के षड्यंत्र में सहभागी होता है। कुछ लोग भ्रम के शिकार हैं कि नहीं-नहीं सारे ब्राह्मण ऐसा नहीं होते हैं, कुछ ब्राह्मण अच्छे होते और कुछ ब्राह्मण बुरे होते हैं। मैं तो ये कहता हूँ कि इन्सान का ब्राह्मण होना ही गलत है। इंसान को इंसान होना बहुत है। इंसान जब ब्राह्मण होता है, तो ब्राह्मण होने की दीक्षा है। मुझे नहीं लगता है कि यह बात किसी को पता है। एक उदाहरण देते हुए बताया कि एक शेड्यूल्ड कास्ट के भंगी जाति का आदमी पूना यूनिवर्सिटी में संस्कृत का गोल्ड मेडलिस्ट था। एक ब्राह्मण लड़की ने उसके साथ लव मैरिज किया और उसकी शादी हो गई। शादी होने के बाद उस ब्राह्मण लड़की के भाई के बेटे का जनेऊ संस्कार का निमंत्रण आया। तब तक वह शेड्यूल्ड कास्ट का भंगी जाति का आदमी महाराष्ट्र गवर्मेन्ट में कैबिनेट मंत्री हो गया था। उसके ब्राह्मण बीवी ने उसे कहा कि मेरे भाई के बेटे का जनेऊ संस्कार है, मैं उसमें जा रही हूँ। तो उसने कहा कि तेरे भाई का है तो मैं भी चलता हूँ। उसकी बीवी ने बहुत कोशिश किया कि मत जाओ, आप जनता के सेवक हैं, आप जनता की सेवा करो। मगर आप जनेऊ संस्कार में मत जाओ। मगर वह बता नहीं रही है कि क्यों मत जाओ? उसके लाख मना करने पर वह भी जनेऊ संस्कार में गया और बैठ गया। ब्राह्मण ने उसको कहा कि शर्ट निकालो। क्योंकि जनेऊ संस्कार में कमर के ऊपर का कपड़ा निकालकर बैठना पड़ता है। जब वह कपड़ा निकालकर बैठा तो उसके गले में जनेऊ नहीं था। वह शेड्यूल्ड कास्ट का आदमी था, जनेऊ कैसे होगा? जो ब्राह्मण संस्कार कर रहा था, उसने पूछा कि अरे! तेरे गले में जनेऊ नहीं है? उसने कहा कि मैं तो शेड्यूल्ड कास्ट हूँ, तो जनेऊ कैसे होगा? अच्छा, तो यहाँ से उठो, यहाँ तुम नहीं बैठ सकते हो। उसने कहा कि तुम जानते हो मैं कौन हूँ? मैं महाराष्ट्र का कैबिनेट मीनिस्टर हूँ, तेरे को देख लूँगा। उस ब्राह्मण ने कहा कि बाद में देख लेना, मगर अभी उठ जा। उसको मालूम था कि वह कुछ देख नहीं पाएगा। ब्राह्मण तो प्रधानमंत्री के ऊपर होता है। इसलिए उस ब्राह्मण ने कहा कि बाद में देख लेना, मगर अभी जाओ। बहुत झगड़ा हुआ और उसकी ब्राह्मण पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा, अब आप जाओ, मैंने पहले ही कहा था कि मत आना।
वामन मेश्राम ने कहा कि जनेऊ संस्कार में ब्राह्मणों को दीक्षा दी जाती है कि तुम सबसे बड़े हो और बाकी सारे तुमसे नीचे हैं। अब तक तुमने इस बात को ध्यान में नहीं रखा, मगर अब जनेऊ धारण करने के बाद ध्यान रखना है। क्षत्रिय और वैश्य को भी जनेऊ धारण करवाया जाता है। दूसरा उदाहरण देते हुए बताया कि एक बार मैं रेल में बैठा था और मेरे बगल में एक ब्राह्मण लड़का बैठा था। एक भिक्षाटन करने वाला आदमी आया। उसने बदन पर जनेऊ पहना हुआ था। उस ब्राह्मण लड़के ने उसे बुलाकर अपने जेब से पाँच रूपया निकालकर दिया, फिर वह चला गया। दुबारा उस ब्राह्मण लड़के ने उसे बुलाया और उसने उससे पूछा कि तुमने कितने अंगुली वाला जनेऊ पहना है। उसने नहीं बताया और चला गया। तब ब्राह्मण लड़के ने मुझसे बोला कि ये ब्राह्मण नहीं है। मैंने उससे पूछा कि कैसे आपको पता चला? तो उसने कहा कि जो असली ब्राह्मण होता है, उसे मालूम होता है कि उसके गले में कितने अंगुली का जनेऊ डाला जाता है। मैंने उससे फिर पूछा कि इसका क्या मतलब होता है? उसने कहा कि क्षत्रिय के गले में ब्राह्मणों से दो अंगुली छोटा जनेऊ डाला जाता है। वैश्य के गले में क्षत्रिय से दो अंगुली छोटा जनेऊ डाला जाता है। सबसे बड़ा जनेऊ ब्राह्मण के गले में होता है। मैंने उससे पूछा कि क्या जनेऊ में भी ऊँच-नीच होता है। उसने कहा कि नहीं, इसको ऊँच-नीच नहीं माना जा सकता है, यह धर्म का संस्कार है। इसलिए मैं कह रहा हूँ कि इन्सान का इन्सान होना ही बहुत है, इन्सान जब ब्राह्मण हो जाता है, तब गड़बड़ी शुरू हो जाती है। यही कारण है कि कश्मीरी पंडितों ने वामन मेश्राम के इस आंदोलन से डर कर अपनी बेटियों का जनेऊ संस्कार शुरू कर रहे हैं।

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