संविधान के अनुच्छेद 330-342 से प्रमाणित है की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग “हिन्दू” नहीं हैं। यदि कोई अधिक ज्ञानी है तो प्रमाणित करके बताये कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हिन्दू हैं। हिन्दू होने के कारण भारत में किसी को “आरक्षण” नहीं मिला है। सरकारी दस्तावेजों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों से, जो हिन्दू धर्म का कॉलम भरवाया जाता है, वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अधीन अवैधानिक है। जिस पर माननीय न्यायालय में वाद लाया जा सकता है।कुछ लोगों का मत है कि पहले जातिगत आरक्षण खत्म हो, तब जातिवाद अपने आप समाप्त हो जायेगा। मैं ऐसे अज्ञानी लोगों को बताना चाहूँगा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण किसी धर्म की विशेष जाति का भाग होने पर नहीं मिला है। अनु.जाति ध्जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग भारतीय मूलनिवासी हैं और उन पर “विदेशी आर्य संस्कृति” अर्थात “वैदिक संस्कृति” अर्थात “सनातन संस्कृति” अर्थात “ब्राह्मण धर्म” अर्थात “हिन्दू संस्कृति” ने इतने कहर जुल्म और अत्याचार ढाये, जिनको जानकर मन में अथाह दर्द भरी बदले की चिंगारी उठती है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। कोई धर्म अपने धर्म के लोगों पर अत्याचार जुल्म और कहर ढा सकता है, ऐसे लोग समान धर्म के अंग कैसे हो सकते हैं?
जो हिन्दू शास्त्र अनु.जातिध्जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को अपने धर्मग्रंथों द्वारा लिखित में अपमानित करते हों, ऐसे लोग (अपमान करने वाले और अपमानित होने वाले) समान धर्म का हिस्सा नहीं हो सकते हैं।हमें आरक्षण इसलिए नहीं मिला है कि हम हिन्दू वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था के अंग हैं। ये जातियाँ ब्राह्मणों ने भारतीय मूलवासियों को गुलाम बनाने के लिये जबरदस्ती थोपी हैं ब्राह्मणों ने बहुजन लोगों पर जाति एवं वर्ण के आधार पर जो अत्याचार किये, उन अत्याचारों का आंकलन संविधान निर्माण कमेटी ने किया। उस आकलन के आधार पर भारतीय मूलवासियों को आरक्षण मिला है, न कि हिंदुओं की जातिव्यवस्था का अंग होने पर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें