मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई को शिक्षक दिवस पर हमारा नमन।


5 सितंबर शिक्षक दिवस 


शिक्षक दिवस पर शत शत नमन।सावित्री बाई फुले भारत देश की पहली महिला शिक्षक।जिसने धर्म के ठेकेदारों पाखंडी पुजारियों ओर मोलवियों के धर्म विरोधी समाज विरोधी करार दिए जाने के बाद लोगो के ताने सुनते हुए सार्वजनिक अपमान सहते हुए महिला शिक्षा के कार्य को आगे बढ़ाया। सावित्री देवी फूले ने पुरूष प्रधान देश की महिलाओ को सम्मान जनक जीवन जीने की बुनियाद की नीव रखी थी 
हम नमन करना चाहते इनके पति ज्योतिबा फुले को जिन्होंने पहले अपनी पत्नी को पढ़ाया इस देश मे लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला।

देश की पहली शिक्षिका

यह घटना सन् 1853 ई. की है। उस समय लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता था। ऐसे में तीन जुलाई 1853 को पूना में ज्योतिबा फूले ने लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए एक स्कूल खोला। लेकिन समस्या यह थी कि बालिकाओं को पढ़ाने के लिए स्कूल में शिक्षक की जगह शिक्षिका ही होनी चाहिए। उस समय एक शिक्षिका तलाश करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण काम था। जो लड़कियां थोड़ा-बहुत पढ़ी-लिखी भी थीं, वे भी घर के अंदर ही रहती थीं। ज्योतिबा फूले को जब शिक्षिका के रूप में कोई महिला नहीं मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फूले को इस काम के लिए राजी कर लिया।


ऐसे समय में जब लड़कियों को पढ़ाना ही गलत समझा जाता था, सावित्री बाई ने शिक्षिका बनने का फैसला कर अपने लिए मुसीबतें खड़ी कर लीं। पूरा समाज सावित्री के इस निर्णय से हिल गया। अपने को समाज का ठेकेदार मानने वालों ने उनकी बहुत निंदा की। उन्हें धमकी तक दी गई। जब वह स्कूल जाने के लिए निकलतीं तो लोग उन पर टीका-टिप्पणी करते, उन्हें तरह-तरह से परेशान करते, उन पर पत्थर फेंकते। लेकिन सावित्री बाई इन घटनाओं से बिल्कुल नहीं घबराईं। वह नियमित रूप से स्कूल जाती रहीं और आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाईं। आज उन्हें देश की प्रथम शिक्षिका के रूप में जाना जाता है।\\


*हम सभी जानते हैं कि भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में ‘शिक्षक दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन हम महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाने वाली शिक्षा का अलख जगाने वाली ज्ञान की देवी भारत की पहली शिक्षिका माता सावित्रीबाई फुले को भी याद करते हैं।*

सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ पुणे में महिलाओं के लिए पहला स्कूल शुरू किया। ये बात 1848 की है, ऐसा समय जब महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलना भी गलत समझा जाता था। सावित्री बाई ने शिक्षा के अपने इस अभियान में जात-पात और वर्ग भेद को आड़े नहीं आने दिया और सभी महिलाओं को समान शिक्षा देने के लिए समाज के तानों और प्रताड़ना को दरकिनार करते हुए इस चुनौती को स्वीकार किया।

यही नहीं, सावित्री बाई ने विधवाओं के मुंडन जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ़ अभियान चला कर उनके पुनर्विवाह कराने की पहल की। लेकिन यह बेहद दुःख कि बात है कि सावित्री बाई के इतने क्रांतिकारी और मानववादी कार्यों पर देश के सत्ताधीशों ने अनदेखी करते हुए उनके योगदान को भुला कर भूतपूर्व राष्ट्रपति के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस घोषित कर दिया।

*सावित्री बाई की नारीवादी सोच थी, इस वजह से उन्होंने शिक्षा के साथ जाति और महिलाओं के साथ होने वाले भेद भाव को संबोधित किया। हिंसा सहने वाली औरतों के लिए सावित्री बाई ने एक केंद्र भी खोला जहां वे उन महिलाओं को शरण देती थीं जिनके साथ बलात्कार हुआ था और जो अपने बच्चों को कहीं जन्म नहीं दे सकती थीं। उनकी याद में पुणे विश्वविद्यालय का नाम ‘सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय’ रखा गया है*

*उनके बारे में दस खास बातें....* 

1. इनका जन्‍म 3 जनवरी, 1831 में दलित परिवार में हुआ था.

2. 1840 में 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी 13 साल के ज्‍योतिराव फुले से हुई.

3. सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्‍होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला.

4. सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापक-नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं.

5. उन्‍होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीडि़तों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की.

6. सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया.

7. सावित्रीबाई फुले ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया.

8. महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई. तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया.
9. सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई.
10. उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं...

जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती

काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो

*ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है!!*

*इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो!!*

दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है

*इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो.*

*नोट =(विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता –विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता के समान होते हैं वे बच्चों को अपनी प्रिय संतान के समान मानते हैं  उन पर बच्चों को संस्कारित करने का दायित्व होता है इसलिए वे अच्छे कुंभकार के समान बच्चों की बुरी आदतों पर चोट करते हैं तथा अच्छी बातों की प्रशंसा करते हैं  शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों की बुरी आदतों का समर्थन न करें, अपितु उन्हें उचित मार्ग पर लाने का प्रयास करें*

*शिक्षक का दायित्व, पढ़ाना, दिशा-निर्देशन, सत्य्कार्यों की प्रेरणा – शिक्षकों का दायित्व केवल पुस्तकें पढ़ाना नहीं है  अपना विषय पढ़ाना उनका प्रथम धर्म है उन्हें चाहिए कि वे अपने विषय को सरस और सरल ढंग से बच्चों को पढाएँ  उनका दूसरा दय्तिव है – बच्चों को सही दिशा बताना  अच्छे-बुरे की पहचान करना तीसरा दायित्व है – बच्चों को शुभ कर्मों की प्रेरणा देना)*


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