मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

यूएनए ने 9 अगस्त को मूलनिवासी दिवस घोषित किया है


भारत के संविधान में अनुच्छेद 340 ,341,343 और 25 से 30 यह अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाती एवम् धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक वर्ग के लिए लिखे गए है। जब हम जाति प्रमाणपत्र बनाने के लिए तहसीलदार या जिला अधिकारी के पास जाते है, तो वह हमे लिखित में प्रमाणपत्र देता है कि, आप किस जाति के है और कहा के मूलनिवासी है। ब्राह्मणों के लिए ऐसा कोई प्रमाण पत्र जरी नहीं होता है और न ही बाबा साहब ने कोई ऐसा संविधान में व्यवस्था की, क्योकि बाबा साहब जानते थे कि, ब्राम्हण यह विदेशी लोग है तो विदेशियो को प्रमाण पत्र देने की कोई जरूरत नहीं है। राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने भी कहा है कि, शुद्र और अतिशूद्र भारत के मूलनिवासी है, इसके प्रमाण आपको उनके साहित्य गुलामगिरी और किसान का कोड़ा में मिल जायेगा। यही नहीं, हरियाणा में कक्षा 8 की इतिहास कीताब में भी दिया है कि कौन भारत का मूलनिवासी है और कौन विदेशी है। भारत सरकार की मैगजीन निकलती है नाम है- संस्कृति। इसमें लिखा है कि, ऋग्वेद में जिन्हें दास, दस्यु, दानव, असुर या राक्षस कहा गया है, वही भारत के मूलनिवासी है।यूएनए ने 9 अगस्त को मूलनिवासी दिवसघोषित किया है। यूएनए के अनुसार, कोई भी विदेशी दूसरे देश पर राज नहीं कर सकता है। आर्किटेक्ट होम इन वेदाज में बाल गंगाधर तिलक ने, डिस्कवरी ऑफ इण्डिया किताब में जवाहर लाल नेहरू ने और बेंच ऑफ थॉटस में गुरु गोलवरकर ने यह सिद्ध किया है कि, बहुजन लोग भारत के मूलनिवासी है और ब्राह्मण विदेशी है। विज्ञान को तो कोई नकार ही नहीं सकता है। 21 मई 2001 को डी एन ए की रिपोर्ट टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी और यह रिपोर्ट बताती है कौन है भारत का मूलनिवासी और कौन विदेशी। अंत में व्यवहार का आधार= यदि ब्राह्मण भी भारत के होते तो वह कभी भी भारत के लोगो को अधिकार वंचित नहीं करते, मान लो थोड़े कम अधिकार देते, लेकिन जानवर से बदतर तो नहीं हालात बनाते भारत के मूलनिवासियो को।

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