सरकार का तेल बेचने का सरकारी समीकरण
पेट्रोल की कीमत 30 रूपये प्रति लीटर, फिर 70 रूपये में क्यों?
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
जब काबू में भाजपा की सरकार ही नहीं है तो कच्चा तेल से लेकर अन्य सामानों की कीमत कहां से काबू में रहेगी। वैसे भी मोदी सरकार में महंगाई को काबू करना उसके बस की बात नहीं है। भले ही कच्चा तेल काबू में है लेकिन मोदी सरकार में तेल बेकाबू ही रहेगा। आज अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चा तेल की कीमत बेहद कम होने के बाद भी देश में 70 रूपये प्रति लीटर पेट्रोल बेंचा जा रहा है। कारण यह है कि अब सरकार तेल बेंचने का नया सरकारी समीकरण बना चुकी है और इसी समीकारण के आधार पर पेट्रोल की कीमत 30 रूपये प्रति लीटर होने के बाद भी 70 रूपये में धड़ल्ले से बेंचा जा रहा है।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि बृहस्पतिवार 04 अक्टूबर 2017 को देश में पेट्रोल के दामों को लेकर जहां एक ओर हाहाकार मचा हुआ है, वहीं दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत उफान पर नहीं होने के बाद भी मोदी सरकार जनता का तेल निकाल रही है। बीते कुछ वक्त से पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के चलते मोदी सरकार को आलोचना भी सहना पड़ा है। लेकिन फिर भी सरकार है कि मानती नहीं। हद तो तब और ज्यादा बढ़ गई जब पेट्रोल की कीमतों को लेकर मोदी सरकार आधा अधूरा सच बोलने लगी। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने पेट्रोल की बढ़ी कीमतों को लेकर सफाई देने की कोशिश भी की थी, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं मिला। विशेष सूत्रों ने जानकारी देते हुए कहा कि मोदी सरकार ने एक देश, एक टैक्स की बात कह कर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू कर दिया, लेकिन सरकार ने कोई नया कार्य नहीं किया है बल्कि देश की जनता को बेवकूफ बनाया है। वास्तविक रूप से एक देश में एक टैक्स नहीं है बल्कि टैक्स कई प्रकार के हैं। इसका सबूत सामने है कि वैश्विक स्तर पर क्रूड यानी कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी तो है, लेकिन मोदी सरकार कई तरह से टैक्स लगाकर पेट्रोल को महंगा कर दिया है।
एक ताजा जानकारी के अनुसार 15 सितम्बर 2017 से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इंडियान बास्केट से जुडे कच्चे तेल के दाम 54.58 डॉलर प्रति बैरल थे। इन आंकड़ों को देखकर सवाल खड़ा होता है कि कच्चा तेल अगर सामन्य स्तर पर है तो फिर पेट्रोल इतना महंगा क्यों है? आपको जानकर हैरानी होगी कि जब पेट्रोल भारत पहुंचता है तो इतना ज्यादा महंगा हो जाता है कि जनता की कमर ही टूट जाती है। जीएसटी के हवाले यदि 19 सितम्बर 2017 की बात करें तो डेली प्राइसिंग मेथेडॉलाजी के आधार पर पेट्रोल की टें्रड पैरिटी लैंडड कॉस्ट महज 27.74 रूपये थी। इस कॉस्ट के मायने उस कीमत से है जिस पर उत्पाद आयात किया जाता है और इसमें अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट लागत और टैरिफ रखा जाता है। यदि इसी दाम में आप मार्केटिंग कॉस्ट, मार्जिन, फ्रेज सहित अन्य दूसरे शुल्क जोडे़ं दें तो पेट्रोल की कीमत वो आ जाएगी जो डीलरों को मिलता है, परन्तु सरकार ऐसा नहीं चाहती है।
पेट्रोल की कीमत 30 रूपये से शुरू हुई और 70 रूपये तक का सफर बिना किसी रोक-टोक के किया है। यहां पर पुनः सवाल खड़ा होता है कि जब डीलर को इतनी सस्ती दर पर पेट्रोल मिलता है तो फिर आम आदमी तक आते-आते इतना महंगा क्यों और कैसे हो जाता है? इसका राज यह है कि डीलरों को मिलने वाली दर और ग्राहकों को बेंची जाने वाल कीमत में अजब का फासला है। दरअसल में एक्साइज ड्यूटी और वैट लगाया जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली में आम आदमी को पेट्रोल 70.52 रूपये प्रति लीटर पर मिला। अब 30.38 रूपये में 21.48 एक्साइज ड्यूटी जोड़ दिजीए, फिर इसमें 3.57 रूपये प्रति लीटर के हिसाब से डीलर कमीशन और अंत में 14.99 रूपये प्रति लीटर के हिसाब से वैट जो दिल्ली में 27 फीसदी है। यानी सरकार एक तरफ एक टैक्स की बात कर रही है और दूसरी ओर जनता को चूना भी लगा रही है। जबकि यह भी सच्चाई है कि भले ही सरकार कमीशनखोरी का खेल खेल रही है, लेकिन पेट्रोल, डीजलों की कीमत तय करने का अधिकार सरकार का नहीं है बल्कि तेल कंपनियां ही अपने हिसाब से कीमत तय कर रही हैं।
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